दो साल ड्रॉप में नहीं हुआ सलेक्शन तो तीसरे साल पढ़ाई छोड़कर करने लगा दुकानदारी, हारने के बाद जीतने वाले डॉ कृष्णा के डॉक्टर बनने की पढ़े सफलता की कहानी

दो साल ड्रॉप में नहीं हुआ सलेक्शन तो तीसरे साल पढ़ाई छोड़कर करने लगा दुकानदारी, हारने के बाद जीतने वाले डॉ कृष्णा के डॉक्टर बनने की पढ़े सफलता की कहानी


दो साल ड्रॉप में नहीं हुआ सलेक्शन तो तीसरे साल पढ़ाई छोड़कर करने लगा दुकानदारी, हारने के बाद जीतने वाले डॉ कृष्णा के डॉक्टर बनने की पढ़े सफलता की कहानी

भिलाई नगर 16 जून। हारकर भी जीत का जुनून रखना जिंदगी इसी का नाम है। इसी पॉजिटिव थिकिंग के चलते रायगढ़ जिले के छोटे से गांव नंदली बरपाली के रहने वाले डॉ. कृष्णा पटले आज सफलता की सीढिय़ा चढ़ रहे हैं। सीजी बोर्ड, सरकारी स्कूल में पढ़कर डॉक्टर बनने का ख्वाब सजाना जितना आसान था। उससे कहीं ज्यादा मुश्किल बदले हुए पैटर्न के साथ एग्जाम क्वालिफाई करना रहा। अपनी स्टूडेंट लाइफ का जिक्र करते हुए डॉ. कृष्णा ने बताया कि 12 वीं बोर्ड के बाद लगातार दो साल ड्रॉप लेकर मेडिकल एंट्रेस की तैयारी की पर सलेक्शन नहीं हुआ। ऐसे में तीसरे साल मैंने गिवअप कर दिया और पापा के छोटे से दुकान में बैठकर दुकानदारी करने लगा। इसी बीच एक दिन लगा कि दो साल की पढ़ाई को शायद मैं जाया कर रहा हूं, अगर अभी नहीं किया तो जिंदगीभर दुकानदारी ही करता रह जाऊंगा। यही सोचकर तीसरे साल वापस भिलाई आ गया। खुद को एक आखिरी मौका देते हुए पढ़ाई में मन लगाया। साल 2014 में नीट क्वालिफाई कर लिया। मुझे लगता है अगर उस दिन मैंने फिर से पढऩे की हिम्मत नहीं जुटाई होती तो आज इस मुकाम पर नहीं पहुंच पाता। अपनी सफलता का श्रेय परिवार को देते हुए डॉ. कृष्णा कहते हैं कि हारकर बैठने से अच्छा है जब तक लक्ष्य न मिले तब तक कोशिश करते रहें। एक दिन यही छोटी-छोटी कोशिशें हमें मंजिल तक लेकर जाती है।

कैमेस्ट्री को देखकर लगता था डर

डॉ. कृष्णा ने बताया कि जब उन्होंने मेडिकल एंट्रेस की तैयारी शुरू कि उस वक्त डॉक्टर बनने के लिए कौन-कौन सी परीक्षाएं देते हैं ये भी उन्हें नहीं पता था। कैमेस्ट्री को देखकर ही डर लगता था। फिजिक्स और बायो का बेसिक भी काफी वीक था। ऐसे में कोचिंग में आकर दूसरे बच्चों के साथ कॉम्पिटिशन करना अपने आप में बड़ा चैलेंज था। मन को दृढ़ करते हुए ये चैलेंज स्वीकार किया। धीरे-धीरे अपनी क्षमता के अनुरूप मेहनत करते चला गया। जब लगा कि अब एग्जाम के लिए पूरी तरह तैयार हूं उसी साल पैटर्न चेंज हो गया। सीजी पीएमटी की जगह नीट आ गया। सीजी बोर्ड स्टूडेंट के लिए अचानक सीबीएसई कोर्स को पढ़कर नीट क्वालिफाई करना बेहद मुश्किल था। इसलिए दूसरे साल ड्रॉप के बाद गिवअप कर दिया था। अंदर से पढऩे की इच्छा ही खत्म हो गई थी। लगने लगा था कि मेडिकल की पढ़ाई मेरे बस की बात नहीं है। इसलिए सबकुछ छोड़कर वापस गांव चला गया। एक दिन पिता जी ने कहा कि जब इतने साल मेहनत की है तो एक बार और कोशिश करो। उनकी बात मानकर तीसरी बार कोशिश की और सलेक्शन हो गया।

जैन सर की पर्सनल काउंसलिंग से टूटा हुआ विश्वास जुड़ा

दो लगातार असफलता के बाद मैं अंदर से टूट गया था। ऐसे में सचदेवा के डायरेक्टर चिरंजीव जैन सर ने न सिर्फ पर्सनल काउंसलिंग की बल्कि जीतने का हौसला भी दिया। उनकी बदौलत ही टूटा हुआ विश्वास फिर से जुड़ा। एग्जाम प्रेशर को झेलने का कॉन्फिडेंस भी आया। सचदेवा के टीचर्स ने भी काफी सपोर्ट किया। क्लास में घुसते ही टीचर्स की मोटिवेशनल स्माइल देखकर एनर्जी दोगुनी हो जाती थी। यहां का सलेक्टिव स्टडी मटेरियल और बेसिक से पढ़ाई काफी असरदार है। जब टेस्ट सीरिज में रैंक पीछे आया तब समझा कि कमी बाहर नहीं मेरे अंदर है। एग्जाम पैटर्न चेंज होने के कारण टीचर्स हिंदी मीडियम के स्टूडेंट के साथ दोगुनी मेहनत करते ताकि हम पीछे न रह जाए। सबसे बड़ी चीज सचदेवा का पॉजिटिव माहौल था, जिससे जीवन में आगे बढऩे की प्रेरणा मिलती थी।

नेगेटिव थीकिंग को रखना है खुद से दूर

जो बच्चे नीट की तैयारी कर रहे हैं उनसे कहना चाहूंगा कि आपको हर दिन लगेगा कि पता नहीं सलेक्शन होगा या नहीं। ये सोच पढ़ते वक्त हर समय हावी रहेगी। फिर भी इस नेगेटिव थीकिंग को खुद से दूर रखकर मेहनत करते रहना है। अगर आपने एक बार जेहन में बैठा लिया कि सलेक्शन नहीं हो पाएगा तो सच में नीट क्वालिफाई करना मुश्किल हो जाएगा। ड्रॉप इयर में निराश होने की जरूरत नहीं है। अपनी पढ़ाई पर हमेशा फोकस करके आगे बढऩा है।