मीलों में फैली वो आधुनिक प्रिंटिंग प्रेस, जहां छापे जाते हैं दुनियाभर के नोट, चप्पे – चप्पे में रहती है कड़ी सुरक्षा

मीलों में फैली वो आधुनिक प्रिंटिंग प्रेस, जहां छापे जाते हैं दुनियाभर के नोट, चप्पे – चप्पे में रहती है कड़ी सुरक्षा


सीजी न्यूज ऑनलाइन डेस्क 26 मार्च । ब्रिटेन में एक ऐसा आधुनिक प्रिंटिंग प्रेस है, जो बहुत बड़ा है और उसके चप्पे – चप्पे में रहती है सुरक्षा, वहां दुनियाभर के बहुत से देशों की नोट करेंसी छापी जाती है. जानते हैं कैसा है ये प्रेस और कैसे यहां नोटों को छापते हैं और फिर उन देशों को भेजे जाते हैं.

दुनिया में नोट छापने की बड़ी कंपनी है ‘दे ला रुए’. ये ब्रिटिश कंपनी है. इसका हेडक्वार्टर इंग्लैंड में बेसिंगस्टोक में है. ये तमाम देशों के नोट और स्टांपपेपर छापने का काम करती है. लंदन स्टॉक एक्सचेंज में दर्ज इस कंपनी की फैक्ट्रियां इंग्लैंड में कई स्थानों पर है.

यह नोट, स्टैंप पेपर, पासपोर्ट, सिक्युरिटी प्रोडक्ट्स छापती है. इसकी बड़ी बड़ी फैक्टिर्यों की अलग यूनिट्स देशों के करेंसी नोट और स्टांप पेपर के अलावा, पासपोर्ट, चेकबुक, डाकटिकट और सेक्युरिटी प्रिंटिंग का काम करती हैं. ये सारे काम यहां जबरदस्त सुरक्षा के बीच होते हैं.

इस कंपनी की शुरुआत बहुत मामूली तरीके से हुई. इसके पास अपना एक छोटा छापाखाना था, जिस पर प्लेइंग कार्ड्स छापकर बेचती थी. साथ ही हैट्स बनाती थी. कंपनी की शुरुआत 200 साल पहले 1821 में हुई थी.

इंग्लैंड के बेसिंगस्टोक में लेदारूए कंपनी का विशाल हेडक्वार्टर इस तरह दिखता है. इसमें कंपनी के कई प्रिंटिंग यूनिट्स और प्रशासनिक के साथ अलग अलग अमले काम करते हैं. ये हरी भरी जगह के बीच बना हुआ मुख्यालय है.

ये इस कंपनी का लोगो है. ये लोगो इसके संस्थापक थामस दे ला रुए का चित्र है. कंपनी ने अपना कामकाज 1821 गर्नसे से शुरू किया लेकिन फिर वो अपना कामकाज लंदन ले गए. कंपनी सबसे पहले हैट मेकर के तौर पर जानी जाती थी. फिर उसने रॉयल वारंट लाइसेंस के तहत प्लेइंग कार्ड्स छापना शुरू किया. उन दिनों कंपनियां यूं ही ताश के पत्ते नहीं छाप सकती थीं. इसके लिए उन्हें बकायदा सरकार से अधिकार हासिल करने होते थे.

कंपनी ने जब ताश के पत्ते छापने के लिए छापाखाना लगाया तो उसने प्रिंटिंग के दूसरे विकल्प भी देखने शुरू किये. 1855 में उसने स्टांप टिकट की प्रिंटिश शुरू की. हालांकि ये कंपनी अब भी एक परिवार द्वारा चलाई जाती थी.

डाक टिकट उन दिनों सेक्युरिटी प्रिंटिंग से जुड़ा मामला था. इसके बाद कंपनी को लगा कि वो करेंसी प्रिंटिग के बिजनेस में उतर सकती है. क्योंकि तब बहुत कम देशों में उन्नत किस्म के प्रिंटिंग प्रेस थे. लिहाजा कंपनी को सबसे पहले 1955 में मॉरीशस औऱ फिर ईरान से करेंसी छापने का आदेश मिला. इसके बाद तो कंपनी की गाड़ी दौड़ पड़ी दूसरे देश भी उसके पास करेंसी प्रिंटिंग से लेकर डाकटिकट प्रिंटिंग के लिए आने लगे. इस दौरान कंपनी में आमूलचूल बदलाव हुए. ये कंपनी पार्टनरशिप में चली गई.

2003 में ये इंग्लैंड, इराक के नोट छापने लगी. अब तक कंपनी का काम इतना बढ़ चुका था कि करीब आधी दुनिया के देश उसके पास नोट छपवा रहे थे. इसकी वजह भी थी कि ना केवल ये कंपनी उनकी करेंसी को सुरक्षित तरीके से छापकर उनके पास पहुंचा रही थी और उसने करेंसी डिजाइनिंग में बड़े सुरक्षा मानक में तैयार किए थे. लिहाजा कंपनी दुनिया की जानी मानी कंपनी बन गई. उसका बड़े पैमाने पर विस्तार भी हुआ.

हालांकि डिजिटल दौर आने के बाद कंपनी के कामकाज पर भी असर पड़ा है. बहुत से देशों के पास उन्नत करेंसी प्रिंटिग तकनीक आने के बाद वो अपना काम खुद कर रहे हैं. कभी कंपनी 100 से ज्यादा देशों के नोट छापती थी लेकिन अब भी 70 देशों का काम उसके पास है. जिसमें ज्यादातर छोटे अफ्रीकी देश हैं.

देलारुए नाम की ये कंपनी केवल करेंसी ही नहीं छापती बल्कि वो डाक टिकट, स्टांप पेपर, पासपोर्ट और नोट से जुड़े तमाम मटीरियल्स भी बेचने का काम करती है. भारत लंबे समय तक हाई सिक्युरिटी पेपर सप्लाई इसी कंपनी से करता था. अब तो ये पेपर भारत खुद ही बना रहा है.