गांव में लोग कहते थे मेडिकल कॉलेज की सीट बहुत कम है तुमसे नहीं हो पाएगा, ओएमआर सीट में कर बैठता था छोटी-छोटी गलतियां, आंसर चेंज होने से नहीं होता था सलेक्शन, चार बार फेल होकर भी सफल होने वाले डॉक्टर संगम की पढे सफलता की कहानी

गांव में लोग कहते थे मेडिकल कॉलेज की सीट बहुत कम है तुमसे नहीं हो पाएगा, ओएमआर सीट में कर बैठता था छोटी-छोटी गलतियां, आंसर चेंज होने से नहीं होता था सलेक्शन, चार बार फेल होकर भी सफल होने वाले डॉक्टर संगम की पढे सफलता की कहानी


गांव में लोग कहते थे मेडिकल कॉलेज की सीट बहुत कम है तुमसे नहीं हो पाएगा, ओएमआर सीट में कर बैठता था छोटी-छोटी गलतियां, आंसर चेंज होने से नहीं होता था सलेक्शन, चार बार फेल होकर भी सफल होने वाले डॉक्टर संगम की पढे सफलता की कहानी

भिलाई नगर 14 जुलाई । महासमुंद जिले के सराईपाली से लगे ग्राम बलौदा के रहने वाले डॉ. संगम स्वाइन के माता-पिता चाहते थे कि उनका बेटा बड़ा होकर डॉक्टर बने। जब बेटे को इस सपने के बारे में पता चला तो उसने भी डॉक्टर बनने का फैसला किया। सबसे बड़ी दिक्कत ये थी कि गांव में कोई बताने वाला नहीं था कि डॉक्टर बनने के लिए कैसे पढ़ाई करनी पड़ती है। कौन-कौन सी परीक्षाएं देने पड़ती है। गाइडेंस के अभाव में डॉ. संगम भिलाई आ गए और यहां उन्हें कोचिंग सेंटर में पूरी जानकारी मिली। जिसके बाद उन्होंने तैयारी शुरू की पर बहुत छोटी-छोटी गलतियों के कारण चार बार मेडिकल एंट्रेस क्लीयर करने से चूक गए। चार ड्रॉप ने उन्हें अंदर तक तोड़ दिया फिर भी हार मानने की बजाय उन्होंने अपनी तैयारी को और पुख्ता किया और अंतत: मेडिकल कॉलेज पहुंचने में कामयाब रहे। अपने संघर्ष के दिनों को याद करते हुए डॉ. संगम स्वाइन कहते हैं कि अगर सही समय पर गाइडेंस मिलता तो शायद सफलता के लिए इतना इंतजार नहीं करना पड़ता। मैं हर बार एग्जाम में बहुत छोटी-छोटी गलतियां कर बैठता था जैसे ओएमआर सीट में ए, बी, सी ऑप्शन में किसी और प्रश्न का आंसर किसी और रो में भर देता था। जिससे तैयारी होते हुए भी सलेक्शन से चूक जाता था। शुरुआत में टाइम मैनेज नहीं कर पाने के कारण भी सलेक्शन नहीं हुआ। इन सभी गलतियों से सीख लेते हुए मैंने आगे बढ़ते रहने का फैसला किया जिसका ही परिणाम है कि आज मैं स्पेशलिस्ट डॉक्टर बन पाया। 

गांव में लोग कहते थे नहीं हो पाएगा तेरा सलेक्शन

मेडिकल एंट्रेस के बारे में जानकारी का अभाव और मेडिकल कॉलेज की सीमित सीट के कारण गांव के बहुत सारे लोग कहते थे कि तेरा सलेक्शन नहीं हो पाएगा। बेवजह अपना साल खराब कर रहा है। पिता जी हमेशा मुझे प्रोत्साहित करते हुए कहते थे कि नकारात्मक विचार हर जगह है तुम्हें उनसे दूर रहकर खुद को सकारात्मक रखना है। ड्रॉप इयर में डिप्रेशन और निराशा के दौर में परिवार मेरा सबसे बड़ा सहारा बना। मेरे घर वालों को लगता था कि मैं उनका सपना जरूर पूरा करूंगा। जब 12 वीं बोर्ड के बाद ड्रॉप लेकर तैयारी शुरू की तो पहले बहुत ज्यादा दिक्कत हुई। गांव के स्कूल से पढऩे के कारण लैंग्वेज प्राब्लम हुआ। बेसिक कमजोर था। पहले साल तो कोचिंग में क्या पढ़ा रहे हैं यही समझने में पूरा साल निकल गया। जब दूसरे साल तैयारी से उतरा तो सिली-सिली मिसटेक कर बैठा। तीसरे और चौथे साल लक ने साथ नहीं दिया। मैं भी जिद्दी था अपने सपने के लिए इसलिए जूझता रहा जब तक सफलता नहीं मिल गई। 

सचदेवा में मिला सही गाइडेंस

मेडिकल एंट्रेस की तैयारी सचदेवा न्यू पीटी कॉलेज से करने वाले डॉ. संगम स्वाइन ने बताया कि सचदेवा आकर ही उन्हें सही गाइडलाइन मिला। यहां के टीचर्स हर बच्चे की तैयारी की बारीकी से निगरानी करते हैं। सिलेबस के हिसाब से पढ़ाई और रिविजन कराया जाता है। बीच-बीच में बच्चों को मोटिवेट करने के  लिए सचदेवा के डायरेक्टर चिरंजीव जैन सर स्वयं उनसे मिलकर उनकी काउंसलिंग करते हैं। पढ़ाई के साथ-साथ यहां के बच्चों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर भी पूरा ध्यान दिया जाता है। यहां का माहौल बहुत अच्छा है। एक ही छत के नीचे सभी विषयों की पढ़ाई हो जाने से स्टूडेंट का टाइम बचता है। ज्यादा भटकना भी नहीं पड़ता है। टेस्ट सीरिज में हम कितने गहरे पानी में है इसका भी खुलासा हो जाता है। ओवरऑल यह एक बेस्ट संस्था है। जहां बच्चे को हर चीज समय पर मुहैय्या कराई जाती है। 

नेगेटिव बात करने वाले दोस्तों को खुद से रखें दूर

नीट की तैयारी करने वाले स्टूडेंट्स से कहना चाहता हूं कि आप अपने आस-पास हमेशा पॉजिटिव लोगों को ही रखें। कई बार हमारे साथ रहने वाले दोस्त इतनी नेगेटिव बातें करते हैं कि हम निराशा में डूबने लगते हैं। इसलिए नेगेटिव बात करने वाले दोस्तों से दूरी बनाकर रखें। अपनी मेहनत पर भरोसा करें। ड्रॉप इयर में अक्सर निराशा हावी होती है ऐसे में अपने पैरेंट्स से बात करें। वो आपके वैलविशर हैं आपकी मदद करेंगे। 

————