क्या नेता ही सर्वशक्तिमान हैं…❓एक नेताजी खुद अपनी करवा रहे आरती….‼️ दूसरे नेता कह रहे – “उठवा ले जाऊंगा” 🟦 जनप्रतिनिधि भूलने लगे कि राजनीति सत्ता पाने का मेवा नहीं सिर्फ “सेवा” है

<em>क्या नेता ही सर्वशक्तिमान हैं…❓एक नेताजी खुद अपनी करवा रहे आरती….‼️ दूसरे नेता कह रहे – “उठवा ले जाऊंगा” 🟦 जनप्रतिनिधि भूलने लगे कि राजनीति सत्ता पाने का मेवा नहीं सिर्फ “सेवा” है</em>



संतोष मिश्रा
सीजी न्यूज आनलाईन डेस्क, 24 जून। सरदार पटेल से लेकर श्यामा प्रसाद मुखर्जी तक अनेक विद्वानों ने उच्च शिक्षा हासिल करने के बाद भी राजनीति को कर्मक्षेत्र बनाया। डॉ. अम्बेडकर जैसे उच्च कोटि के विद्वानों एवं नीति-निर्माताओं ने जिन संकल्पों के साथ हमें संविधान दिया, उसमें समस्त राजनीति ने एक संरक्षक की भांति अपनी भूमिका निभाई।
धरातल पर बदलाव लाने के लिए राजनीति ही ऐसा सबसे सशक्त माध्यम जिससे समाज के दबे-कुचले लोगों और उपेक्षित समुदायों को ऊपर उठाते हुए सामाजिक-आर्थिक विषमताओं को दूर करने का भरसक प्रयास किए जा सकते हैं लेकिन आज राजनीतिज्ञों के जैसे कर्म सोशल प्लेटफार्म पर तैरने लगे हैं उसे देख यह सवाल लाजिमी है कि क्या आज नेताजी ही सर्वशक्तिमान हैं…? खबर के साथ दो प्रमाण जिसमें एक नेताजी अपनी ही आरती करवा रहे हैं तो दूसरे नेताजी इस देश के नागरिकों का पेट भरने वाले मेहनतकश किसान को जान से मारने और उठवा लेने की धमकी देते दिखाई दे रहे हैं।


🟥 जब व्यक्ति की कीमत मात्र एक वोट हो जाए तभी विकृत सोच मुमकिन है
आरती कराने वाले स्वयंभू भगवान बने नेताजी उत्तर प्रदेश की निषाद पार्टी के प्रमुख संजय निषाद हैं तो किसान और उसके परिवार की नींद हराम करने वाले दूसरे नेता छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिला सरकंडा क्षेत्र के युवा कांग्रेस शहर अध्यक्ष शेरू असलम हैं।
🟦 राजनीतिक संघर्ष बिल्कुल वैसा ही है जैसा हीरा चमकाने के लिए एक जौहरी को करना पड़ता है
गौरतलब हो कि समाज में एक व्यापक बदलाव लाने का जो कार्य, बड़े से बड़े वेतन वाली प्रतिष्ठित नौकरी करके भी नहीं किए जा सकते हैं, उसे राजनीति के माध्यम से आसानी से किया जा सकता है। राजनीति हमें सामाजिक न्याय के ऐसे बदलाव का सजग प्रहरी बना सकती है जो समस्त मानव जाति के कल्याण के लिए अत्यन्त आवश्यक भी है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि राजनीति के क्षेत्र में किया जाने वाला संघर्ष बिल्कुल वैसा ही है, जैसा हीरा चमकाने के लिए एक जौहरी को करना पड़ता है। इस संघर्ष के साथ ही आवश्यक होता है कि मन में समर्पण एवं विशुद्ध सेवा भाव रखते हुए समता के मौलिक अधिकार को जन-जन तक पहुंचाया जाए लेकिन जब भी राजनीति में व्यक्ति की कीमत मात्र एक वोट के आधार पर तय होने लगती है तो राजनीति पथ भ्रष्ट एवं दिग्भ्रमित हो जाती है और सामाजिक सरोकार के मूल उद्देश्य से हटते ही राजनीति, मात्र वोट बटोरने का एक साधन बन सेवा करने का माध्यम न रहकर, सत्ता पाने का अवसर मात्र रह जाती है और अवसर तथा पावर मिलते ही इसके दुष्प्रभाव, समाज और राष्ट्र के हितों पर पड़ने लगते हैं।
🟪 जनप्रतिनिधि का गलत मुखौटा राजनीति का नायकत्व “मतदाता” से राजनेता की ओर कर रहा ट्रांसफर
यदि हम राजनैतिक इतिहास के गर्भ में जाकर देखें तो पता चलता है कि अनेक मूर्धन्य विद्वानों ने देश एवं समाज के कल्याण के लिए अपना सम्पूर्ण जीवन, राजनीति को समर्पित कर दिया लेकिन कालांतर में राजनीति पर गलत दृष्टि डालने वालों ने जनप्रतिनिधि का मुखौटा लगाकर राजनीति का नायकत्व, मतदाता से राजनेता की ओर स्थानान्तरित कर दिया और इसी कारण राजनीति में अनेक प्रकार की विसंगतिया पैदा होने लगीं और ऐसे परिदृश्य हर रोज जनता के सामने इसलिए भी आने लगे क्योंकि अपनी बात कहने और जोर ज्यादतियों को सहते समय संचार तंत्र की शक्ति मोबाइल के रूप में हर हाथ में विद्यमान है।