जब बेटों ने कराई विधवा मां की शादी, कहा, ‘मां को भी साथी की ज़रूरत है’

<strong><em>जब बेटों ने कराई विधवा मां की शादी, कहा, ‘मां को भी साथी की ज़रूरत है’</em></strong>


सीजी न्यूज़ ऑनलाइन डेस्क 20 मार्च । यह एक सदमे जैसा था जब विवाह की उम्र वाले मेरे बेटे ने मुझसे दोबारा शादी करने को कहा.”
फिर सेल्वी कहती हैं, “साथ ही, मुझे यह सोचकर भी गर्व होता था कि मेरे बेटों जैसी सोच इस समाज में किसी और के पास नहीं थी. यहां कई महिलाएं हैं जो अपने पति को खो चुकी हैं, और अकेले अपने बच्चों की परवरिश कर रही हैं.”
तमिलनाडु के कल्लाकुरिची के प्रांगमपटु पंचायत के रहने वाले हैं भास्कर और उनकी मां हैं सेल्वी.
भास्कर और उनके छोटे भाई विवेक दोनों जब कम उम्र के ही थे तब उनके पिता का निधन हो गया था. 2009 में जब पिता का निधन हुआ तो भास्कर वेल्लौर में अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई के पहले ही साल में थे जबकि छोटे भाई विवेक ग्याहरवीं में पढ़ रहे थे.

भास्कर ने बताया, “उस समय तो हमने मां की दूसरी शादी के बारे में नहीं सोचा था. कई महिलाओं को अपने पति के निधन के बाद अकेले बच्चों की परवरिश करते देखा था. तो ऐसी ही सोच थी.”

लेकिन जब मैं इंजीनियरिंग कॉलेज के तीसरे साल में था तो मैं अपने एक शिक्षक से मिलने गया था. तब उन्होंने कहा था कि तुम्हारी मां इतने लंबे समय से अकेली रह रही हैं, दूसरी शादी क्यों नहीं कर सकतीं? बात आयी गई हो गई, मां से बात करने का सवाल ही नहीं था.”

मां से शादी की बात कैसे शुरू हुई?

भास्कर इस बारे में लंबे समय तक कुछ नहीं सोच पाए. उनकी कॉलेज की पढ़ाई पूरी हो गई, वे नौकरी करने लगे. किताब पढ़ने के शौक़ की वजह से दुनिया भर की बातों को जानने भी लगे थे. उन्होंने पेरियार के पुनर्विवाह संबंधी लेखों को पढ़ा. फिर दोस्तों से इस मुद्दे पर बात भी होने लगी.
तब भास्कर ने सोचा कि मां भी अकेली हैं, वो दोबारा शादी क्यों नहीं कर सकतीं? ये विचार आने के बाद उन्होंने अपने छोटे भाई से बात की. छोटे भाई को इस पर कोई आपत्ति नहीं हुई.
फिर दोनों भाइयों ने मिलकर मां को मनाने का काम शुरू किया. भास्कर ने बताया, “मां का जीवन हमारे इर्द-गिर्द ही घूमता था. इसलिए उन्होंने इस पर बात करने में अनिच्छा ज़ाहिर की.”
“इसके बाद हमने इस बातचीत को आगे बढ़ाना शुरू किया. एक दिन मेरी मां मुझसे शादी की बात कहने लगीं कि तेरी शादी करने की उम्र हो गई है. तब मैंने कहा कि अगर तुम शादी करोगी, तो मैं भी कर लूंगा.”

भास्कर कहते हैं, “इसके बाद मैं अक्सर ही अपनी मां से इस बारे में बात करने लगा. उनसे कहने लगा कि आप लंबे समय से अकेली ही संघर्ष कर रही हैं, आपको शादी करनी चाहिए, फिर मैं भी करूंगा.”