बचपन से डॉक्टर चाचा को देखकर सोचती थी बड़ी होकर मैं भी उनकी तरह डॉक्टर बनूगी, मेडिकल फील्ड से जुड़ा परिवार बना प्रेरणा
भिलाईनगर 12 अगस्त । बचपन में डॉक्टर चाचा को मरीजों का इलाज करते हुए देखकर सोचती थी कि बड़ी होकर मैं भी इनकी तरह सबको दवाई दूंगी। हर दिन दिमाग में यही चलता था कि कब जल्दी से बड़ी होऊ और अस्पताल में मरीजों को इंजेक्शन लगाऊं। बचपन का सपना धीरे-धीरे मेरा पैशन बन गया। मन में दृढ़ निश्चय कर लिया कि अगर जीवन में कुछ बनना है तो वो है डॉक्टर। इसलिए 10 क्लास से ही मेडिकल एंट्रेस की तैयारी शुरू कर दी थी। साल 2013 में पहली बार नीट को लॉन्च किया गया था, तब काफी कम स्टूडेंट इसके पैटर्न को समझकर खरा उतर पाए। मैं बहुत लक्की रही की उसी साल ही अपने सेकंड अटेम्ट में नीट क्वालिफाई कर लिया। भिलाई की रहने वाली डॉ. दीक्षा चंद्राकर ने बताया कि उन्होंने एक साल ड्रॉप लेकर सालभर मेहनत की। जिसके बाद ही बिलासपुर मेडिकल कॉलेज की सीट हासिल कर पाई। अपना अनुभव साझा करते हुए कहतीं हंै कि टॉपर स्टूडेंट हर एग्जाम में टॉप करे जरूरी नहीं है। कई बार पूरी तैयारी के बाद भी सक्सेस नहीं मिल पाता। ऐसे में निराश होने की बजाय मेहनत दोगुनी करना चाहिए। मेडिकल एंट्रेस एक ऐसा प्लेटफार्म है जो ये नहीं देखता कि कौन सा बच्चा टॉपर है कौन सा नहीं। जिसने एग्जाम में तीन घंटे अपने दिमाग पर कंट्रोल करके ज्यादा सवाल साल्व किया वही विजेता बनता है। इसलिए ओवर कॉन्फिडेंस कभी नहीं होना चाहिए।
निगेटिव मार्किंग से रैंक आ गया पीछे
एम्स रायपुर से एमडी बायो कैमेस्ट्री की पढ़ाई कर रही डॉ. दीक्षा ने बताया कि पहले अटेम्ट में उन्होंने निगेटिव मार्किंग को हल्के में ले लिया। 12 वीं बोर्ड के बाद पहली बार मेडिकल एंट्रेस दिया उस वक्त टाइम ठीक से मैनेज नहीं कर पाई। बहुत सारे सवाल तो निगेटिव मार्किंग के चलते गलत हो गए। जिसका सीधा असर रैंक पर पड़ा। मेडिकल एंट्रेस का जब रिजल्ट आया तो रैंक काफी पीछे आया था। पैरेंट्स और परिवार के बाकी डॉक्टर्स ने कहा कि एक साल ड्रॉप लेकर अच्छे से तैयारी करो सलेक्शन जरूर होगा। मैंने भी एक साल ड्रॉप लिया और परिवार के पहले सलेक्ट हो चुके डॉक्टर्स के अनुभवों से सीख लेते हुए गलतियों को दोबारा नहीं दोहराया। जैसा सोचा था उससे कहीं बेहतर रिजल्ट आया।
परिवार के ज्यादातर लोग सचदेवा से पढ़कर बने डॉक्टर
सचदेवा कॉलेज भिलाई से मेडिकल एंट्रेस की पढ़ाई करने वाली डॉ. दीक्षा ने बताया कि उनके परिवार के कई सदस्य सचदेवा से ही पढ़कर डॉक्टर बने हैं। जिसमें चाचा, बुआ, बहन और भाई शामिल है। इसलिए उन्होंने बिना कुछ सोचे पूरे विश्वास के साथ सचदेवा को ही कोचिंग के लिए चुना। सचदेवा में फैमिली जैसा माहौल मिलने के कारण पढ़ाई और भी ज्यादा इंटरेस्टिंग हो गई थी। यहां के टीचर्स के सलेक्टिस स्टडी मटेरियल और पढ़ाने का नायाब तरीका पढ़ाई को बोरिंग नहीं होने देता। छह घंटे की क्लास के बाद भी क्लासरूम से जाने का मन नहीं करता था। सबसे बड़ी बात आपको एक ही छत के नीचे सारे सब्जेक्ट फिजिक्स, कैमेस्ट्री, बायो की बेहतरीन फैकल्टी प्रोवाइड कराई जाती है। टीचर्स भी ऐसे हैं जो कई सालों से मेडिकल एंट्रेस की पढ़ाई करवा रहे हैं उनके अनुभवों का लाभ स्टूडेंट्स को मिलता है। बायो-मैथ्स स्टूडेंट होने के बाद भी मेरा फिजिक्स और कैमेस्ट्री दोनों सब्जेक्ट वीक था। सचदेवा के टीचर्स ने एक ही साल में ही बेसिक स्ट्रांग करके एग्जाम के लिए तैयार कर दिया। टेस्ट सीरिज के दौरान सचदेवा के डायरेक्टर चिरंजीव जैन सर की मोटिवेशन बातें अक्सर दिल-दिमाग पर हावी रहती थी। वो कुछ ऐसी रोचक कहानियां और सक्सेस स्टोरी सुनाते जो पढऩे की दिलचस्पी अपने आप ही बढ़ा देता था।
निगेटिव मार्किंग को ध्यान में रखकर करें पेपर साल्व
नीट की तैयारी कर रहे स्टूडेंट्स से कहना चाहूंगी कि पढ़ाई के साथ एग्जाम से जुड़ी टेक्निकल बातों की भी जानकारी होनी चाहिए। कई बच्चे तुक्का मारकर निगेटिव मार्किंग कर लेते हैं। जो आपके सही दिए उत्तर पर भारी पड़ जाता है। केवल वही सवाल पर टिक करे जिसका जवाब आपको आता है। तुक्का मारेंगे तो निगेटिव मार्किंग से रैंक और पीछे चली जाएगी। ओवर कॉन्फिडेंस नहीं हो कि मुझे सब आता है। एग्जाम से पहले कम से कम दो बार रिविजन जरूर करें। ओमएमआर शीट को अच्छी तरह फिल करें, उसे एग्जाम से पहले कई बार प्रैक्टिस करनी चाहिए।