दो नंबर से चूका तो नहीं मिली मेडिकल कॉलेज की सीट, डिप्रेशन में बीते कई महीने, दो ड्रॉप के बाद डॉक्टर बनकर मेडिकल कॉलेज राजनांदगांव में पदस्थ राजेंद्र की पढ़ें सफलता की कहानी

दो नंबर से चूका तो नहीं मिली मेडिकल कॉलेज की सीट, डिप्रेशन में बीते कई महीने, दो ड्रॉप के बाद डॉक्टर बनकर मेडिकल कॉलेज राजनांदगांव में पदस्थ राजेंद्र की पढ़ें सफलता की कहानी


दो नंबर से चूका तो नहीं मिली मेडिकल कॉलेज की सीट, डिप्रेशन में बीते कई महीने, दो ड्रॉप के बाद डॉक्टर बनकर मेडिकल कॉलेज राजनांदगांव में पदस्थ राजेंद्र की पढ़ें सफलता की कहानी

भिलाई नगर 24 जून । बेमेतरा के सरकारी स्कूल में पढऩे वाले डॉ. राजेंद्र जायसवाल ने अपने स्कूल के सीनियर्स को मेडिकल एंट्रेस की तैयारी करते देख स्वयं भी डॉक्टर बनने का फैसला लिया। 12 वीं बोर्ड के बाद ड्रॉप लेकर जब मेडिकल एंट्रेस की तैयारी शुरू की तो पहाड़ जैसा सिलेबस देखकर घबरा गए। शुरुआत में एग्जाम का पैटर्न भी उन्हें समझ नहीं आ रहा था। किसी तरह खुद को संभाल कर पहले साल तैयारी की लेकिन रिजल्ट असफलता लेकर आया। ऐसे में उन्होंने खुद को दूसरा चांस दिया इस बार तैयारी तो पूरी थी पेपर भी अच्छा गया लेकिन जब रिजल्ट आया तो महज दो नंबर से मेडिकल कॉलेज की सीट हासिल करने से वे चूक गए। दूसरी बार मिली इस असफलता ने उन्हें डिप्रेशन के द्वार पर खड़ा कर दिया। डॉ. राजेंद्र कहते हैं कि दूसरे साल पैरेंट्स ने भी हार मानकर कह दिया कि अब कोई दूसरा कोर्स ज्वाइन कर लो पर मेरा मन मानने को तैयार नहीं था। इसलिए किसी तरह डिप्रेशन के दौर से निकलकर मैंने तीसरा ड्रॉप लिया और कड़ी मेहनत का परिणाम है कि तीसरे साल मैंने सीजी पीएमटी क्वालिफाई कर लिया। आज जब तीसरे ड्रॉप के बारे में सोचता हूं तो खुद के फैसले को सही ठहराता हूं। अगर मैंने गिवअप कर दिया होता तो शायद बीएएमएस या फिर डेंटल से संतोष करना पड़ता। 

प्रैक्टिस के अभाव में पेपर देखकर होने लगी घबराहट

डॉ. राजेंद्र ने बताया कि पहले ड्रॉप में जब मेडिकल एंट्रेस का पेपर देने गया तो  प्रैक्टिस के अभाव में पेपर देखकर ही घबराहट होने लगी थी। किसी तरह धैर्य से काम लेते हुए मैंने तीन घंटे पेपर साल्व किया। पहले साल की गलतियों को दूसरे ड्रॉप में दोहराना नहीं चाहता था इसलिए हर सप्ताह रिविजन के साथ टेस्ट दिलाता और पुराना पेपर साल्व भी करता। इस बार किस्मत ने साथ नहीं दिया। अपने साथ पढऩे वाले बाकी दोस्तों का सलेक्शन देखकर अपने आप को हारा हुआ महसूस करता था। तब जीजा जी ने मोटिवेट करते हुए तीसरे ड्रॉप के लिए तैयार किया। इस बार पढ़ाई में कोई कसर नहीं छोड़ी और सलेक्शन लेकर ही दम लिया। मेरा फिजिक्स वीक था। फिजिक्स को कोचिंग के नोट्स के अलावा सेल्फ स्टडी करके स्ट्रांग किया। जहां डाउट रहता था उसे नोट कर क्लासरूम में पूछता था। इस तरह घबराहट पर भी काबू पाना सीखा। साथ ही एग्जाम प्रेशर को हैंडल करना सीखा। 

जैन सर ने कहा आग में तपकर सोना चमकता है

सचदेवा न्यू पीटी कॉलेज से मेडिकल एंट्रेस की कोचिंग करने वाले डॉ. राजेंद्र कहते हैं कि कई लोग असफल होने पर कोचिंग को दोष देकर उसे छोड़ देते हैं लेकिन मुझे सचदेवा पर पूरा भरोसा था। यहां के टीचर्स का नॉलेज बहुत अच्छा है। अगर कमी रहती है तो स्टूडेंट के मेहनत में इसलिए मैंने तीन साल तक सचदेवा का टेस्ट सीरिज भी ज्वाइन किया था। सचदेवा के डायरेक्टर चिरंजीव जैन सर अक्सर मोटिवेशनल सेशन में कहा करते थे कि सोना अगर में तपकर ही चमकता है। इसलिए कड़ी मेहनत से मत घबराओ जितना खुद को तपाओगे परिणाम उतना ही सुखद होगा। मैं उनके मोटिवेशनल लाइनों को कॉपी में लिखकर रखता था ताकि निराश होने पर खुद को मोटिवेट कर सकूं। सचदेवा के नोट्स भी मेडिकल एंट्रेस में काफी काम आए। 

अपनी क्षमताओं पर करे भरोसा

नीट की तैयारी करने वाले स्टूडेंट्स से कहना चाहता हूं कि अपनी क्षमताओं पर आपको स्वयं भरोसा होना चाहिए। अगर आपको लगता है कि आप मेडिकल एंट्रेस क्लीयर करके डॉक्टर बन सकते हो तो कभी भी गिवअप मत करिए। चाहे कितने ही ड्रॉप क्यों न हो जाए मेहनत करते रहिए, सफलता जरूर मिलेगी। नोट्स ध्यान से पढ़कर इसे बार-बार रिवाइज करते रहिए।