स्वयं को ईश्वर का अंश मान ले तो जीव निहाल हो जाए: स्वामी विजयानंद गिरी, स्वर्ग लोक की प्राप्ति नहीं अपितु सत्कर्म, सत चिंतन और सत्चर्चा और सत्संग को बताया बड़ी उपलब्धि

स्वयं को ईश्वर का अंश मान ले तो जीव निहाल हो जाए: स्वामी  विजयानंद गिरी,   स्वर्ग लोक की प्राप्ति नहीं अपितु सत्कर्म, सत चिंतन और सत्चर्चा और सत्संग को बताया बड़ी उपलब्धि


स्वयं को ईश्वर का अंश मान ले तो जीव निहाल हो जाए: स्वामी  विजयानंद गिरी, 

स्वर्ग लोक की प्राप्ति नहीं अपितु सत्कर्म, सत चिंतन और सत्चर्चा और सत्संग को बताया बड़ी उपलब्धि 

डोंगरगढ़ 14 दिसंबर । धर्मनगरी डोंगरगढ़ में मां बम्लेश्वरी नीचे मंदिर प्रांगण में 17 दिसम्बर 2021 तक प्रतिदिन शाम 4 बजे से शाम 5.30 बजे तक चलने वाले दुर्लभ सत्संग के चतुर्थ दिवस प्रवचनकर्ता श्रद्वेय स्वामी श्री विजयानन्द गिरी जी (ऋषिकेश) ने कहा कि हम सब ईश्वर के ही हैं यह हम भूल गए हैं। स्वयं को ईश्वर का अंश मान ले तो जीव निहाल हो जाए। अर्जुन ने भी जब कहा कि वे भूल गए हैं थे कि वे ईश्वर के ही अंश है और अब उन्हें याद आ गया तो उसके बाद भगवन ने भी गीता उपदेश देना बंद कर दिया अर्थात् परमात्मा का उद्धेश्य भी केवल यही स्मरण करना है। सभी जीव ईश्वर के शरण में है, केवल यह स्मरण रखना है। 

यदि मानव कहें कि वे प्रभु मैं लोभी, अभिमानी, क्रोधी जैसा भी हूं, सिर्फ आपका ही हूं तो ईश्वर उन्हें अपने चरणों में स्थान देने को विवश हो जाएंगे। पिघले मोम में रंग मिलाने के बाद उस रंग को मोम से अलग नहीं किया जा सकता है उसी तरह से अपने मन को पिघलाकर उसमें ईश्वर भक्ति को मिला दे तो भक्ति को हृदय से अलग नहीं किया जा सकेगा। जिस प्रकार विवाह के बाद बेटी, मायके की नहीं अपितु ससुराल की हो जाती है और उसका व्यवहार भी स्वतः ही ससुराल अनुरूप परिवर्तित हो जाता है वैसे ही संसार में आने के बाद स्वयं को ससुराल अर्थात् ईश्वर का मान ले तो ईश्वर साधना तो स्वतः हो जाएगा। पति के नाम का जाप नहीं करने के बाद भी पत्नी को पति का सदैव स्मरण रहता है, हजारों की भीड़ में भी उन्हें केवल अपना पति दिखता है वैसे ही जीव को सदैव ईश्वर का स्मरण रहेगा और हर जगह उन्हें केवल ईश्वर ही दिखाई देगा। 

स्वर्ग लोक की प्राप्ति नहीं अपितु सत्कर्म, सत्िचंतन और सत्चर्चा और सत्संग करना बड़ी उपलब्धि है। बिना किसी कामना से किए कर्म को सत्कर्म, ईश्वर की बारे में सुनकर मन ही मन उसके चिंतन को सत्चिंतन, संतों की वाणी सुनने को सत्चर्चा और ईश्वर मैं तो आपका ही हूं मान लेने को सत्संग कहते हैं। गर्भस्थ शिशु अनेकोंनेक जन्मों का ज्ञान होता है इसलिए उसे ऋषि की संज्ञा दी गई है। गर्भवती माता को धर्मग्रंथ का अध्ययन करना चाहिए, गर्भावस्था में क्रोध नहीं करना चाहिए क्योंकि भक्त संतान को जन्म देने वाली माता का जीवन निहाल हो जाता है। किसी के शरण में जीव जाता है तो सारी चिंता उसकी हो जाती है, इसलिए यदि हम ईश्वर के शरण में चले जाए तो हमारी सारी चिंता उनकी हो जाएगी और वह जीव चिंतामुक्त हो जाएगा।

गीता प्रेस, गोरखपुर की पुस्तकों का लाभ उठाने का निवेदन करते हुए आयोजकगण मां बम्लेश्वरी मंदिर ट्रस्ट समिति डोंगरगढ़, गोवर्धन फाउंडेशन अयोध्याधाम उ.प्र. तथा दुर्लभ सत्संग परिवार, छत्तीसगढ़ ने बताया कि कार्यक्रम में मास्क के बिना प्रवेश वर्जित है। सोशल डिस्टेंसिंग सहित अन्य कोविड-19 गाईड लाईन पालन अनिवार्य है। श्रद्वापूर्वक भाग लेने के अतिरिक्त व्यास पीठ एवं आरती में किसी भी प्रकार का भेंट व रूपया-पैसा न चढ़ाने, संतों का चरण स्पर्श न करने, फोटो नही खींचने, माला नही पहनाने व जयकारा लगाना मना है।