फस्र्ट ड्रॉप में सलेक्शन नहीं तो लगा सबकुछ खत्म हो गया, छोड़ दिया दोबारा पढऩे की उम्मीद, पिता नहीं चाहते थे सेकंड ड्रॉप लूं, तब मां बनी हिम्मत, बैग पैककर भेज दिया कोचिंग

फस्र्ट ड्रॉप में सलेक्शन नहीं तो लगा सबकुछ खत्म हो गया, छोड़ दिया दोबारा पढऩे की उम्मीद, पिता नहीं चाहते थे सेकंड ड्रॉप लूं, तब मां बनी हिम्मत, बैग पैककर भेज दिया कोचिंग


फस्र्ट ड्रॉप में सलेक्शन नहीं तो लगा सबकुछ खत्म हो गया, छोड़ दिया दोबारा पढऩे की उम्मीद, पिता नहीं चाहते थे सेकंड ड्रॉप लूं, तब मां बनी हिम्मत, बैग पैककर भेज दिया कोचिंग

भिलाईनगर 4 अगस्त | फस्र्ट ड्रॉप में सलेक्शन नहीं होने का गम इतना बड़ा था कि मुझे लगा अब सबकुछ खत्म हो गया। जीवन में कुछ बचा ही नहीं, चाहकर भी दोबारा पढऩे की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी। उम्मीद टूट गई थी खुद को एक कमरे में बंदकर दिन रात यही सोचती थी कि कहां कमी रह गई। कुछ दिनों तक ऐसे ही चला फिर एक दिन मां कमरे में आई उन्होंने समझाया कि ये सिर्फ तुम्हारे साथ नहीं बल्कि दुनिया में लाखों-करोड़ों बच्चों के साथ होता है। हार मानने के बजाय दोबारा पढ़ाई शुरू करो। उन्होंने मेरा बैग पैक करके दोबारा कोचिंग के लिए भिलाई भेज दिया। वहां भी शुरूआत करना काफी मुश्किल रहा। कुछ दिनों तक पढ़ाई में मन नहीं लगता लेकिन धीरे-धीरे खुद को संभाला और नए सिरे से पढ़ाई करके फाइनली दो साल ड्रॉप के बाद साल 2014 में नीट क्वालिफाई किया। जिला अस्पताल मुंगेली में मेडिकल ऑफिसर के रूप में पदस्थ बिलासपुर की डॉ. सुचिता दानीकर ने बताया कि उनकी जर्नी फिल्मी स्टाइल में है। जहां पिता नहीं चाहते थे कि बेटी सेकंड ड्रॉप ले, लेकिन मां को लगता था मैं अपने सपने को यूं बीच में नहीं छोड़ सकती। लंबी फाइटिंग के बाद आखिकर अपने सपनों के मेडिकल कॉलेज सिम्स बिलासपुर पहुंच ही गई। इन सब चीजों ने एक बात जरूर सिखाई के बिना संघर्ष के तख्तो ताज नहीं मिलता। सफलता के लिए मन मजबूत करना भी आना चाहिए। 

ट्रेन में बैठने से पहले पापा ने बदल दिया फैसला, नहीं जाएगी बेटी बाहर

डॉक्टर बनने का सपना मुझे मेरी मां से जन्मजात मिला था। मां डॉक्टर बनना चाहती थी लेकिन वो बन नहीं पाई। इसलिए वो मुझे डॉक्टर के रूप में देखना चाहती थी। बचपन से ही मुझे भी बायो इंटरेस्टिंग लगता था। इसलिए 11 वीं में बायो लेकर पढऩा शुरू किया। 12 वीं बोर्ड के बाद जब मेडिकल एंट्रेस की तैयारी की बारी आई तो मैं छत्तीसगढ़ की जगह कोटा जाकर पढ़ाई करना चाहती थी। इस बात के लिए पैंरेट्स राजी भी हो गए। मेरे साथ एक और फ्रेंड का भी ट्रेन का टिकट हो गया। ट्रेन में चढऩे से पहले ही पापा ने डिसिजन बदल दिया। उन्होंने कहा कि मैं अपनी बेटी को अकेले इतना दूर नहीं भेज सकता। इसलिए उन्होंने छत्तीसगढ़ के ही किसी शहर में पढऩे का ऑप्शन दिया। काफी दिनों तक मन मुटाव चलता रहा। बाद में मैंने भिलाई के सचदेवा कॉलेज में एडमिशन ले लिया। आज डॉक्टर बनने के बाद जब भी उस वाकिए को याद करती हूं तो पूरा परिवार हंस पड़ता है।

 सचदेवा के टीचर्स ने किया मोटिवेट

डॉ. सुचिता ने बताया कि जब उन्होंने दूसरे ड्रॉप इयर में सचदेवा कॉलेज भिलाई में मेडिकल एंट्रेस की तैयारी शुरू की तब काफी डिप्रेस थी। ऐसे समय में सचदेवा के टीचर्स और डायरेक्टर चिरंजीव जैन सर ने काफी मोटिवेट किया। जैन सर ने तो कई बार पर्सनल काउंसलिंग की। वो हमेशा अच्छा करने के लिए मोटिवेट करते थे।  मुझे फिजिक्स बिल्कुल पसंद नहीं था। ऐसे लगता था कि कब डॉक्टर बनूं और इस फिजिक्स से पीछा छूटे। फिजिक्स की वीकनेस नीट में बड़ी बाधा बन सकती थी। ऐसे में सचदेवा के टीचर्स ने एग्जाम के पैटर्न को समझकर फिजिक्स की अलग से तैयारी करवाई। केवल वही टॉपिक पढऩे की सलाह दी जिससे कटअफ का स्कोर हो जाए। कैमेस्ट्री और बायो हमेशा से स्ट्रांग रहा इसलिए इन दोनों सब्जेक्ट में ज्यादा स्कोर करने के लिए डबल मेहनत की। फिजिक्स में पूरा सब्जेक्ट की बजाय सलेक्टिव टॉपिक पढऩे का फैसला काम आया। एग्जाम में इससे मदद भी मिली। 

एनसीईआरटी की बुक्स से करें पढ़ाई

नीट की तैयारी कर रहे स्टूडेंट्स से कहना चाहूंगी कि दुनियाभर की किताबें पढऩे की बजाय एनसीईआरटी की किताबें पढ़ें। नीट का सिलेबस भी एनसीईआरटी की बुक्स कवर करती है। एग्जाम से पहले रिविजन जरूर करें। बिना रिविजन के अच्छे रिजल्ट की उम्मीद करना गलत है। पढ़ाई के लिए फोकस रहे। खासकर आप ड्रॉप इयर में हो तब हर पल खुद को मोटिवेट करते रहे। कठिन विषय को स्ट्रांग करने के चक्कर में सारा टाइम बर्बाद न करे। इससे दूसरे विषय जिसमें आप बेहतर कर सकते हैं उसकी पढ़ाई प्रभावित होती है।