क्लास में सबसे पीछे बैठता था, पढ़ते वक्त इतना कंन्फ्यूज रहता कि टीचर्स से सवाल पूछने में होती थी झिझक, कोचिंग में लग गया था बैकबैंचर का थप्पा,

क्लास में सबसे पीछे बैठता था, पढ़ते वक्त इतना कंन्फ्यूज रहता कि टीचर्स से सवाल पूछने में होती थी झिझक, कोचिंग में लग गया था बैकबैंचर का थप्पा,


क्लास में सबसे पीछे बैठता था, पढ़ते वक्त इतना कंन्फ्यूज रहता कि टीचर्स से सवाल पूछने में होती थी झिझक, कोचिंग में लग गया था बैकबैंचर का थप्पा, 

भिलाईनगर 23 अगस्त | अक्सर लोग सोचते हैं कि पीछे बैठने वाले स्टूडेंट पढ़ाई में कमजोर होते हैं, वे केवल क्लासरूम में सिर्फ भीड़ बढ़ाते है|असल में ऐसा नहीं है आज हम आपको एक ऐसे डॉक्टर से मिला रहे जो एक नहीं पूरे दो साल कोचिंग के क्लासरूम में सबसे पीछे की सीट पर बैठते थे। हालात ये थे दोस्त उन्हें बैकबैंचर कहने लगे थे बावजूद डॉक्टर बनने का जुनून उन्हें कॉम्पिटिशिन में सबसे आगे ले आया। कान्फिडेंस की कमी के कारण टीचर्स से सवाल पूछने में भी बहुत झिझकते थे। कहते हैं कड़ी मेहनत का कोई विकल्प नहीं। भिलाई के रहने वाले डॉ. देवग्य चंद्राकर ने भी अपना लक्ष्य पूरा करने के लिए दो साल कड़ी मेहनत की। दो साल के ड्रॉप के बाद फाइनली ऑल इंडिया पीएमटी क्वालिफाई करके चंदू लाल चंद्राकर मेडिकल कॉलेज की सीट हासिल कर ली। अपने स्टूडेंट लाइफ का अनुभव झासा करते हुए डॉ. देवग्य ने बताया कि उन्हें सामने बैठने में डर लगता था। सोचता था कि टीचर ने कोई सवाल पूछ दिया और मैं नहीं बता पाया तो क्लास में लोग हंसेंगे। मेडिकल एंट्रेस की तैयारी के दौरान काफी कंन्फ्यूज रहता था, लेकिन इतनी हिम्मत नहीं होती थी कि क्लास में खड़े होकर सवाल पूछ सकूं। इसलिए क्लास खत्म होने के बाद दोस्तों से डाउट क्लीयर करता था। मां जब भिलाई के सेक्टर 9 हॉस्पिटल जाया करती थी तब वहां डॉक्टरों को देखकर उन्होंने बेटे के लिए भी डॉक्टर बनने का सपना सजाया। शुरूआत से ही पापा-मम्मी इसके लिए गाइडेंस देना शुरू कर दिया था। 

नहीं होता था कॉन्सेप्ट क्लीयर

मेडिकल बैकग्राउंड परिवार से ताल्लुक रखने वाले डॉ. देवग्य ने बताया कि पढ़ते वक्त कॉन्सेप्ट क्लीयर नहीं होता था। इसलिए एक ही चीज को मैं बार-बार पढ़ता था। परिवार में कई लोग डॉक्टर है इसलिए समय-समय पर उनका मार्गदर्शन भी मिला। साथ ही सफल होने का एक प्रेशर भी हमेशा बना रहता। फस्र्ट ड्रॉप में तैयारी अच्छी थी लेकिन एग्जाम से ठीक पहले पीलिया हो गया। ऐसा लगा जैसे एक पल में सारी मेहनत जाया हो गई। बीमारी की हालत में किसी तरह एग्जाम दिया। जिसका असर रिजल्ट में फेल्यिर के रूप में दिखा। उसके बाद लगातार पढ़ाई के बीच-बीच में तबीयत बिगड़ते रहते थी। हेल्थ प्राब्लम के चलते हमेशा डिस्टर्ब रहता। एक दिन पापा ने समझाया कि हेल्थ की समस्या चलते रहते ही, खुद को मोटिवेट रखोगे को सफलता का रास्ता आसान हो जाएगा। उनकी बात पर अमल करके आगे और भी ज्यादा उत्साहित होकर पढ़ता गया। 

चिरंजीव जैन सर ने कई बार पर्सनल काउंसलिंग की

सचदेवा में दो साल कोचिंग करके साल 2014 में ऑल इंडिया पीएमटी क्वालिफाई करने वाले डॉ. देवग्य ने बताया कि सचदेवा के डायरेक्टर चिरंजीव जैन सर ने उनकी कई बार पर्सनल काउंसलिंग की। वो हमेशा कहते हैं कि हारना नहीं है, सिर्फ हेल्थ इश्यु की वजह से खुद को कमतर नहीं आंकना है। प्रैक्टिस करते रहो तुम जरूर डॉक्टर बनोगे। उनकी मोटिवेशनल बातें सुनकर मैं सबकुछ भूलकर सिर्फ पढ़ाई में जुट जाता था। फैमिली मेंबर की तरह सचदेवा में हर टीचर ने काफी सपोर्ट किया। बायो-मैथ्स लेकर 12 वीं बोर्ड देने के बाद भी मेरा बेसिक कमजोर था। ऐसे में सचदेवा के टीचर्स ने सबसे पहले बेसिक स्ट्रंाग करवाया। एग्जाम प्रेशर को हैंडल करना सिखाया। फिजिक्स के शॉर्ट ट्रिक्स तो अपने आप में लाजवाब थे। सचदेवा की सबसे अच्छी चीज ये है कि यहां हर बच्चे को एक सामान मानकर सब पर बराबर फोकस किया जाता है। मैं भले ही बैकबैंचर था लेकिन टीचर्स बराबर मेरी ओर फोकस रहते थे। टीचर्स हमेशा कहते थे कि खुद को अपनी कमजोरी की बजाय खुद का स्ट्रेंथ याद दिलाओ। इससे आगे बढऩे में मदद मिलेगी। 

अपने आप पर भरोसा करना सीखे

उतई सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में मेडिकल ऑफिसर के रूप में पदस्थ डॉ. देवग्य नीट की तैयारी कर रहे स्टूडेंट से कहते हैं कि अपने आप पर भरोसा करना सीखना चाहिए। हर पढ़े हुए टॉपिक का रिविजन बहुत जरूरी है। इसलिए रिविजन के लिए अलग से टाइम निकाले। हेल्थ पर भी ध्यान दे। सिर्फ पढ़ाई करने से काम नहीं चलेगा आपका मेंटल और फिजिकल हेल्थ भी अच्छा होना जरूरी है बेहतर परफार्मेंस के लिए। डाउट पूछने में कभी नहीं झिझके।