टॉपर दोस्तों को देखकर पहुंचा कोचिंग शुरूआत में नहीं पड़ता था कुछ भी पल्ले. जानिए एवरेज स्टूडेंट के नीट क्वालिफाई करने के सफर को
भिलाईनगर 12 जुलाई । कबीधाम जिले के छोटे से गांव डोमाटोला में रहने वाले किसान के बेटे ने नीट क्वालिफाई किया है। रायपुर मेडिकल कॉलेज में एडमिशन लेकर अब डालेश्वर अपने परिवार के पहले डॉक्टर बनेंगे। बचपन से एवरेज स्टूडेंट रहे डालेश्वर साहू ने बताया कि वह मैथ्स लेकर इंजीनियर बनना चाहते थे। इसलिए 11 वीं मैथ्स ले लिया। दो महीने तक पढ़ाई भी कि लेकिन एक दिन दसवीं पास पिता लीला राम ने समझाया कि इंजीनियर बनकर तुम अपना भला करोगे, लेकिन अगर तुम एक डॉक्टर बनते हो तो पूरे समाज का भला होगा। हमारे देश में वैसे भी डॉक्टरों की बहुत कमी है। उनकी ये बात दिल पर लग गई। अगले ही दिन स्कूल जाकर वाइस प्रिंसिपल सर से रिक्वेस्ट करके बायो में एडमिशन ले लिया। शुरूआत में बहुत दिक्कत हुई धीरे-धीरे बायो में भी इंटरेस्ट आने लगा। पिता के सपने को पूरा करने के लिए दिन रात मेहनत में जुट गया। 12 वीं बोर्ड में मेरे केवल 71 प्रतिशत आए। पर्सेंटेज से निराश होने की बजाय मैंने नीट की तैयारी शुरू कर दी। दो साल ड्राप लेकर अंतत: दूसरे अटेम्ट में नीट क्वालिफाई कर लिया। अच्छी रैंक होने की वजह से रायपुर मेडिकल कॉलेज में एडमिशन मिला तो पिता खुशी से झूम गए।
पढ़ाई डिस्टर्ब न हो इसलिए चलाया की-पैड वाला फोन
डालेश्वर ने बताया कि नीट के लिए लगातार दो साल ड्रॉप लेकर पढ़ाई की। ऐसे में पढ़ाई प्रभावित न हो इसलिए केवल की-पैड वाला फोन इस्तेमाल करता था। उसमें भी सिर्फ मिस कॉल करने के लिए बैलेंस रखता था ताकि केवल पैरेंट्स से बात कर सकूं। दोस्त मुझे चिढ़ाते थे कि स्मार्ट फोन के दौर में क्या डब्बा लेकर घूमता है पर मैं उनकी बातों को नजरअंदाज करता था। सोशल मीडिया में आज तक अपना प्रोफाइल भी नहीं बनाया है, क्योंकि मुझे लगता था कि अब डॉक्टर ही मेरा प्रोफाइल है। पहली बार कोचिंग मैं दोस्तों के साथ पहुंचा तब नीट के बारे में भी कोई आइडिया नहीं था। शुरूआत के कई महीने तो कुछ भी पल्ले ही नहीं पड़ता था। धीरे-धीरे मेहनत करता गया और सफलता हाथ लगी।
क्रैश कोर्स से मिला बहुत लाभ
डालेश्वर ने बताया कि 12वीं के बाद उन्होंने सचदेवा से क्रैश कोर्स किया। यहां टीचर्स ने जिस तरीके से सलेक्टिव मटेलियल की स्टडी कराई वो नीट के फाइनल अटेम्ट तक बहुत काम आया। कम समय में पूरे सिलेबस को भी कवर किया। टीचर्स हमेशा डाउट पूछने के लिए मोटिवेट करते थे। इसी वजह से गांव से आकर मैं शहर बच्चों के बीच थोड़ा खुल पाया। सचदेवा की सबसे अच्छी बात यह है कि यहां टेस्ट सीरिज में स्टूडेंट अपनी तैयारी को खुद ब खुद परख सकता है। साथ सलेक्टिव स्टडी मटेरियल मिलने से ज्यादा की जगह केवल जरूरी पढऩे पर स्टूडेंट अपना समय देता है। इससे टाइम मैनेंजमेंट की बेहतर सीख मिली।
बिजली चली जाती थी तो पिता ने लगवा दिया घर में इनवर्टर
कोरोना की वजह से अचानक लॉकडाउन हो गया तब कोचिंग की पढ़ाई छोड़कर गांव वापस लौटना पड़ा। डालेश्वर ने बताया कि वे पूरे एक महीने तो क्वारंटाइन सेंटर में रहे। इसके बाद भी जब तक नीट की परीक्षा नहीं हो गई वे घर से बाहर नहीं निकले। गांव में बार-बार बिजली कट हो जाती थी। रात में ठीक से पढ़ नहीं पाता था तब पापा ने घर में एक इनवर्टर भी लगा दिया। अपनी हैसियत से ज्यादा खर्च करके उन्होंने मेरी पढ़ाई की हर जरूरत पूरी की। उनकी बदौलत ही आज मैं डॉक्टर बनने जा रहा हूं। सचदेवा के डायरेक्टर चिरंजीव जैन सर का एक वीडियो देखा था जिसमें उन्होंने कहा था कि असफलता केवल दिमाग की उपज है। इंसान चाह ले तो उसे कभी भी सफलता में बदल सकता है। उनकी इस बात से बहुत प्रेरणा मिली। इस साल जो बच्चे नीट की तैयारी कर रहे हैं उनसे यही कहना चाहूंगा कि ज्यादा की जगह केवल सलेक्टिव पढ़ें। टाइम मैनेंजमेंट करना सीखें।(