बचपन में सोचती थी कैसे डॉक्टर्स याद रखते हैं होंगे इतनी सारी दवाइयों के नाम ,जिस चीज ने रास्ता रोका उसे चैंलेज बनाकर जिंदगी में उतारा पढ़ें डॉ. दीप्ति खलखो की सफलता की कहानी

बचपन में सोचती थी कैसे डॉक्टर्स याद रखते हैं होंगे इतनी सारी दवाइयों के नाम ,जिस चीज ने रास्ता रोका उसे चैंलेज बनाकर जिंदगी में उतारा पढ़ें  डॉ. दीप्ति खलखो की सफलता की कहानी


पैरेंट्स चाहते थे मैं इंजीनियर बनूं, फैसले के खिलाफ जाकर किया मेडिकल एंट्रेस की तैयारी, लोग कहते थे मेडिकल ही करना है तो बीएसएसी नर्सिंग कर लो…

भिलाईनगर 26 जुलाई | इम्युनिटी कम होने के कारण बचपन में हर दूसरे दिन मैं अस्पताल के बिस्तर पर होती थी। कई सालों तक अस्पताल एक तरह से मेरा दूसरा घर और डॉक्टर्स फ्रेंड्स बन गए थे। उस वक्त मैं सोचती थी कि आखिर ये डॉक्टर्स ऐसा क्या करते हैं कि बीमारी झट से दूर हो जाती है। इन्हें कैसे पता कि कौन सी बीमारी के लिए कौन सी दवाई देनी है। सबसे ज्यादा आश्चर्य तो ये सोचकर होता था कि आखिर डॉक्टर इतनी सारी दवाइयों के नाम कैसे याद रख लेता है। इन सब जिज्ञासाओं और सवालों का जवाब ढूंढने मेडिकल फील्ड की ओर आ गई। स्वास्थ्यगत परेशानियों को देखते हुए पैरेंट्स चाहते थे कि मैं इंजीनियर बनूं लेकिन मैंने उनके फैसले के खिलाफ जाकर मेडिकल एंट्रेस की तैयारी शुरू कर दी। शुरूआत में पैरेंट्स का सपोर्ट नहीं मिला। रिश्तेदार और पड़ोसी भी कहते थे क्यों ड्रॉप लेकर अपना साल खराब कर रही है। इन सभी बातों को सिरे से नकारकर बस तैयारियों में जुटी रही। साल 2013 में नीट क्वालिफाई करके अपनी सफलता से उंगली उठाने वालों को जवाब दे दिया। ये कहानी है भिलाई की रहने वाली डॉ. दीप्ति खलखो की जो फिलहाल जशपुर जिले के कुनकुरी सरकारी अस्पताल में मेडिकल ऑफिसर के पद पर काम करते हुए अपनी सेवाएं दे रही हैं। डॉ. दीप्ति कहती है कि जो चीज मुझे रोकता था मैंने हमेशा उसे चैलेंज के रूप में स्वीकार किया है। इंजीनियरिंग के अलावा एग्रीकल्चर के एंट्रेस में मैंने पूरे प्रदेश में टॉप किया था लेकिन मन डॉक्टरी में रम गया था। इसलिए सारी सफलता को एक तरफ रखकर वो किया जो मैंने तय किया था। रिस्क फैक्टर की वजह से ही शायद सबसे लडऩे की हिम्मत जुटा पाई। 

बायो में आते थे बहुत कम नंबर

बीएसपी सेक्टर 10 स्कूल से पढ़ाई करने वाली डॉ. दीप्ति ने बताया कि उन्होंने 11 वीं में बायो-मैथ्स लेकर पढ़ाई की। मैथ्स पंसदीदा सब्जेक्ट था इसलिए उसमें नंबर बहुत अच्छे आता था, लेकिन बायो में मेरा स्कोर हमेशा पासिंग रहा। 12 वीं बोर्ड के बाद जब घर में मेडिकल एंट्रेस की तैयारी की बात कही तो सब खफा हो गए। किसी तरह उन्हें समझाकर कोचिंग क्लास ज्वाइन किया। यहां आई तो देखा कि सिर्फ फिजिक्स स्ट्रांग होने से काम नहीं चलेगा। फिजिक्स के साथ कैमेस्ट्री और बायो भी स्ट्रांग करना पड़ेगा। इसलिए स्कूल की पढ़ाई को भूलकर नए सिरे से तीनों सब्जेक्ट की पढ़ाई शुरू की। जो मेरे एग्जाम में प्लस प्वाइंट बना। नए चीजों को नए सिरे से सीखना और पढऩा थोड़ा कठिन जरूर रहा लेकिन समय के साथ सब ठीक हो गया। 

जैन सर से पूछा था सर मैं कितने घंटे पढ़ाई करूं

नीट की तैयारी के लिए भिलाई के सचदेवा कॉलेज को कोचिंग के लिए चुनने वाली डॉ. दीप्ति ने बताया कि एक दिन सचदेवा के डायरेक्टर चिरंजीव जैन सर काउंसलिंग क्लास ले रहे थे। मैंने सैकड़ों की भीड़ में खड़े होकर उनसे पूछ लिया कि सर कितने घंटे पढ़ाई करूंगी तब मेरा सलेक्शन हो जाएगा। मैं बहुत डरी हुई और नर्वस थी। सवाल सुनकर मुस्कुराते हुए जैन सर ने कहा कि घंटे मायने नहीं रखते स्मार्ट वर्क मायने रखता है। आपका स्टडी ऑवर काफी ज्यादा है बस स्मार्ट स्टडी और जरूरत की चीजों को ध्यान लगाकर पढ़ो। तुम्हें सफल होने से कोई नहीं रोक सकता। उस दिन जैन सर की बातें सुनकर एक अजीब सी पॉजिटिव एनर्जी मिली। सचदेवा के टीचर्स भी हर दिन क्लास में मोटिवेट करते थे। उनके पढ़ाने का तरीका गजब का है। शॉर्ट नोट्स, ट्रिक्स तो बेहद लाजवाब हैं। सचदेवा के टेस्ट सीरिज में जब अच्छे नंबर आते तो स्टेज में बुलाकर उन्हें पुरस्कार दिया जाता था। मुझे ये स्टेज बहुत आकर्षित करता था। इसलिए मैं हर टेस्ट को बहुत गंभीरता से लेती थी। 

डिमोटिवेट करने वाले दोस्तों और लोगों से रहें दूर

जो बच्चे नीट की तैयारी कर रहे हैं उनसे यही कहना चाहूंगी कि आप डिमोटिवेट करने वाले दोस्तों और लोगों से दूरी बनाकर रखें। कई बार आपके दोस्त बेवजह के ऐसे सजेशन और रास्ते सुझा देते हैं जो आपके लिए हानिकारक होता है। दोस्तों की सफलता से खुद की तुलना कभी मत कीजिए। हर इंसान की अपनी डेस्टिनी होती है। इसलिए खुद पर भरोसा रखें। गु्रप स्टडी तभी करें जब आपका कॉन्सेप्ट क्लीयर हो नहीं तो गु्रप स्टडी में काफी समय बर्बाद हो जाता है।