लगातार तीन असफलताओं के बाद बना लिया पढ़ाई छोडऩे का मन, पिता ने कहा एक कोशिश और करो, कैमेस्ट्री लगती थी खिचड़ी, न सवाल बनते थे न फंडा समझ में आता

लगातार तीन असफलताओं के बाद बना लिया पढ़ाई छोडऩे का मन, पिता ने कहा एक कोशिश और करो, कैमेस्ट्री लगती थी खिचड़ी,  न सवाल बनते थे न फंडा समझ में आता


लगातार तीन असफलताओं के बाद बना लिया पढ़ाई छोडऩे का मन, पिता ने कहा एक कोशिश और करो, कैमेस्ट्री लगती थी खिचड़ी,  न सवाल बनते थे न फंडा समझ में आता

भिलाईनगर 14अगस्त |  बचपन में मां बीमार हुई तो उसे इलाज के लिए कोई बड़ा डॉक्टर नहीं मिल पाया। पिता ने आननफानन में गांव के डॉक्टर को बुलाकर किसी तरह मां की तबीयत सुधारने की कोशिश कीजान बचाने की इस जद्दोजहद ने कोरबा के धीरेंद्र के बाल मन में इतना गहरा असर किया कि उन्होंने उसी पल तय कर लिया कि वह डॉक्टर बनेंगे।पिता भी जब हर बार मां को यूं बीमारी से जूझता हुए देखते तो कह पड़ते कितना अच्छा होता अगर हमारे परिवार का कोई सदस्य डॉक्टर होता। अस्पतालों के चक्कर काटने से बच जाते। इन्हीं बातों को सुनकर धीरेंद्र ने बचपन में ही ठान लिया कि वे डॉक्टर बनकर जरूरतमंदों की सेवा करेंगे। शुरू से होनहार स्टूडेंट रहे धीरेंद्र जानते थे कि गांव के स्कूल में रहकर पढ़ाई ठीक से नहीं हो सकती इसलिए जवाहर नवोदय के एग्जाम की तैयारी शुरू कर दी। सलेक्शन क बाद पढऩे चले गए। 11 में बायो लेकर पढऩे के साथ-साथ अपने स्तर पर मेडिकल एंट्रेस की तैयारी भी शुरू कर दी। कहते हैं कि कभी-कभी सफलता आपकी हर कसौटी की परीक्षा लेती है। एक के बाद एक असफलता ने धीरेंद्र को तोड़ दिया। तीन साल ड्रॉप के बाद उन्होंने पढ़ाई छोडऩे का भी मन बना लिया लेकिन पिता ने कहा कि एक कोशिश और करो। आखिरकर चौथे प्रयास में नीट क्वालिफाई करके धीरेंद्र ने अपने सपनों को नई उड़ान दी। बिलासपुर मेडिकल कॉलेज में जूनियर रेसीडेंट के रूप में मरीजों की नब्ज टटोलने वाले डॉ. धीरेंद्र कुमार गुप्ता कहते हैं कि हर बार लक्ष्य आसानी से नहीं मिलता। कई बार आपके धैर्य की वक्त कठिन परीक्षा लेता है। ऐसे हालातों में टूटने की बजाय अपना मनोबल बनाकर रखना है। क्योंकि यही वो वक्त होता है जब हम सक्सेस से मात्र एक कदम की दूरी पर खड़े होते हैं। 

पिता ने कहा जब तुम्हारे दोस्त कर सकते हैं तो तुम क्यों नहीं 

डॉ. धीरेंद्र ने बताया कि पहले दो साल में मेडिकल एंट्रेस में फेल्यिर से वे टूट गए थे। तीसरे ड्रॉप में किसी तरह हिम्मत जुटाकर एग्जाम दिलाया लेकिन उसमें भी फेल्यिर ही मिला। चौथे साल उन्होंने पूरी तरह से पढ़ाई छोड़कर किसी दूसरे कोर्स में एडमिशन लेने का फैसला कर लिया था। पिता को जब इस बात की जानकारी मिली तो उन्होंने कहा कि जब तुम्हारे दोस्त कर सकते हैं तो तुम क्यों नहीं। एक आखिरी कोशिश करो। इस बार सफलता जरूर मिलेगी। पिता के वो शब्द शायद किसी संजीवनी से कम नहीं थे। मैं डिप्रेशन से निकलकर पढ़ाई में जुट गया और साल 2013 में नीट क्वालिफाई कर लिया। आज जब उस वक्त को याद करता हंू तो लगता है कि जीवन में पेशेंस कितना जरूरी है। 

कई बार चला गया डिप्रेशन में चिरंजीव जैन सर ने की काउंसलिंग

डॉ. धीरेंद्र ने बताया कि सचदेवा में मेडिकल एंट्रेस की तैयारी करते हुए जब बार-बार असफलता मिलने लगी तो वे काफी डिप्रेशन में चला गया था। ऐसे समय में सचदेवा के डारेक्टर चिरंजीव जैन सर ने न सिर्फ काउंसलिंग की बल्कि एक आत्मविश्वास भी जगाया कि जीवन में सबकुछ खत्म नहीं हुआ है। वो हमेशा कहते थे कि जब तक दर्द नहीं होगा तब तक जीवन में कुछ नहीं मिलेगा। इसलिए खुद को दर्द सहने के लायक बनाओ। जिसने इस मुश्किल घड़ी में संभाल लिया वो जरूर सफल होगा। उनकी मोटिवेशन बातों को सुनकर मैंने डिप्रेशन में भी रिचार्ज हो जाता था। क्लासरूम में भी सचदेवा के टीचर्स ने काफी सपोर्ट किया। मैं जब पहली बार कोचिंग आया तो कैमेस्ट्री मेरे लिए किसी खिचड़ी से कम नहीं थी। कैमेस्ट्री के न सवाल साल्व होते थे और न ही कुछ समझ में आता। ऐसे में सचदेवा के टीचर्स ने ऐसे ट्रिक्स और मैथड बताए जिससे कैमेस्ट्री मेरे लिए इंटेरिस्टंग बन गई। यही वीक पार्ट धीरे-धीरे स्ट्रांग प्वाइंट में बदल गया। यहां का स्टडी मटेरियल काफी अच्छा है। हर तरह के बच्चे आने के कारण पढ़ाई का बहुत अच्छा माहौल मिलता है। 

कोशिश करना न छोड़े

नीट की तैयारी कर रहे स्टूडेंट्स से कहना चाहूंगा कि फेल्यिर के बिना आगे बढऩा संभव नहीं है। जिस एग्जाम में एक साथ लाखों लोग बैठकर रहे हैं वहां कोई पास होगा तो कोई फेल ऐसे में कोशिश करना न छोड़े। ड्रॉप इयर में हमेशा खुद को मोटिवेट करते रहिए। जब लगे पढ़ा हुआ सब भूलते जा रहे तो एक बार रिविजन करे। पढ़ाई के साथ-साथ हेल्थ का भी ख्याल रखना है। बीच-बीच में ब्रेक जरूर लें। इससे दिमाग शांत होता है और नए सिरे से मेहनत करने के लिए एनर्जी मिलती है। एग्जाम प्रेशर को हावी न होने दे।