सीजी न्यूज ऑनलाइन, 21 अगस्त। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने एक प्रकरण में स्पष्ट किया है कि हिंदू दत्तक ग्रहण एवं भरण-पोषण अधिनियम, 1956 की धारा 19 के तहत विधवा बहू को तब तक ससुर से भरण-पोषण पाने का अधिकार है, जब तक वह पुनर्विवाह नहीं कर लेती। आदेश जस्टिस रजनी दुबे और जस्टिस अमितेंद्र किशोर प्रसाद की खंडपीठ ने कोरबा फैमिली कोर्ट के फैसले के खिलाफ की गई अपील पर सुनाया। हाई कोर्ट ने ससुर की अपील को खारिज करते हुए फैमिली कोर्ट का आदेश बरकरार रखा।
प्रकरण कोरबा का है। चंदा यादव का विवाह वर्ष 2006 में गोविंद प्रसाद यादव से हुआ था, लेकिन 2014 में सड़क हादसे में गोविंद की मौत हो गई। इसके बाद विवाद के चलते चंदा अपने बच्चों के साथ अलग रहने लगी। उसने ससुर तुलाराम यादव से हर माह 20 हजार रुपये भरण-पोषण की मांग करते हुए फैमिली कोर्ट में याचिका दाखिल की।
अदालत ने उसकी मांग आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए 6 दिसंबर 2022 को आदेश दिया कि ससुर अपनी बहू को हर महीने 2500 रुपये भरण-पोषण देगा। यह आदेश तब तक लागू रहेगा, जब तक बहू पुनर्विवाह न कर ले।
इस फैसले के खिलाफ तुलाराम यादव ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उन्होंने दलील दी कि वह पेंशन पर आश्रित हैं और उनकी आय सीमित है। बहू खुद भी नौकरी कर सकती है। साथ ही उन्होंने बहू पर चरित्र को लेकर आरोप भी लगाए। दूसरी ओर बहू की ओर से कहा गया कि उसके पास कोई नौकरी नहीं है और बच्चों की जिम्मेदारी भी उसी पर है। चरित्र को लेकर आरोप झूठा है।
हाई कोर्ट ने सभी दलीलें सुनने और दस्तावेज देखने के बाद कहा कि तुलाराम यादव को करीब 13 हजार रुपये पेंशन मिलती है और परिवार की जमीन में भी उनका हिस्सा है। वहीं बहू के पास न नौकरी है, न संपत्ति से कोई अधिकार। ऐसे हालात में कानूनन बहू को भरण-पोषण का अधिकार है और ससुर को यह जिम्मेदारी निभानी होगी।
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि हिंदू दायित्व और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 की धारा 19 विधवा बहू को सुरक्षा कवच प्रदान करती है। अगर पति की संपत्ति या अन्य साधनों से उसका भरण-पोषण संभव न हो, तो ससुराल पक्ष पर यह दायित्व आता है। हालांकि यह अधिकार सशर्त है और तभी लागू होगा जब ससुर की संपत्ति से बहू को पहले कोई हिस्सा न मिला हो।