समान नागरिक संहिता जिसे यूनिफॉर्म सिविल कोड के नाम से भी जाना जाता है कि आजकल काफी चर्चा में है भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 27 जून 2023 को भोपाल में भाजपा के कार्यकर्ताओं को किए गए अपने संबोधन में यूनिफॉर्म सिविल कोड को जरूरी बताते हुए कहा कि एक घर एक परिवार दो कानून ऐसी व्यवस्था से देश कैसे चलेगा
प्रधानमंत्री की इस टिप्पणी ने देश की राजनीति में एक जबरदस्त हलचल मचा दी है , इस टिप्पणी ने विपक्षी दलों की एकजुटता के प्रयासों में भी सेंध लगा दी है , आम आदमी पार्टी ने इसके समर्थन की घोषणा कर दी है , उद्धव ठाकरे की शिव सेना भी इसके समर्थन में आ सकती है जबकि जनता दल यूनाइटेड और एनसीपी ने समान नागरिक संहिता के विषय पर एक तटस्थ रुख अपना लिया है ।
प्रधानमंत्री ने यह टिप्पणी भारत के 22 वें न्यायिक आयोग के द्वारा जारी एक सूचना के संदर्भ में की गई थी ।
भारत के 22वें न्यायिक आयोग ने 14 जून को एक सूचना जारी की तथा सभी हित धारकों से समान नागरिक संहिता के संबंध में उनके सुझाव आमंत्रित किए और इसके लिए उन्होंने 1 महीने का समय दिया अभी तक की जानकारी के अनुसार लगभग 900000 सुझाव न्यायिक आयोग के पास पहुंच चुके है ।
भारत के 21 वें लॉ कमीशन ने भी 7 अक्टूबर 2016 को समान नागरिक संहिता के संबंध में एक प्रश्नावली जारी कर लोगों से सुझाव आमंत्रित किए थे उसके बाद तीन अलग-अलग तिथियों को पुनः अपील जारी की गई थी जिसका भी बहुत अच्छा परिणाम 21 वें लॉ कमीशन को मिला था ।
31 अगस्त 2018 को 21 वें लॉ कमीशन ने रीफॉर्म्स ऑफ़ फैमिली लॉ विषय पर एक परामर्श पत्र भी जारी किया था जिसमें समान नागरिक संहिता से संबंधित सारी बातें शामिल थी ।
साथियों हम भारत के कानून को दो वर्गों में बांट सकते हैं क्रिमिनल और सिविल जिसे हम दीवानी और फौजदारी मामले भी कहते हैं इसमें क्रिमिनल अथवा फौजदारी मामलों जैसे हत्या , चोरी , डकैती , लूट , बलात्कार धोखधड़ी के लिए सभी नागरिकों के ऊपर बिना किसी धर्म और लैंगिक भेदभाव के सभी कानून समान रूप से लागू होंगे लेकिन सिविल या दीवानी मामलों के कुछ व्यक्तिगत और पारिवारिक मामलों में यह कानून अलग अलग है ।
हिंदू , सिख और बौद्ध से संबंधित व्यक्तिगत और पारिवारिक विषय जैसे विवाह , तलाक , संपत्ति और उत्तराधिकार , गोद लेने और देने, भरणपोषण , माइनोरिटी और अभिभावक से संबंधित विषय हिंदू कोड बिल , जिसके अंतर्गत 4 कानून आते है , से नियंत्रित होता है , वे चार कानून है हिंदू मैरिज एक्ट 1955 ,हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 ,हिंदू अप्राप्तव्यता और संरक्षकता अधिनियम 1956 और हिंदू दत्तक ग्रहण एवं पोषण अधिनियम 1956 ।
मुसलमान समाज में इन सारे विषयों को नियंत्रित करने के लिए अंग्रेजों ने एक मुस्लिम पर्सनल लॉ एप्लीकेशन एक्ट 1937 बनाया था जिसे शरीयत एप्लीकेशन एक्ट 1937 भी कहा जाता है ।
क्रिश्चियन समुदाय के मामले में यह सारे विषय इंडियन क्रिश्चियन मैरिज एक्ट 1872 और इंडियन सक्सेशन एक्ट 1925 से नियंत्रित होते हैं।
अलग-अलग धर्म ,मत , संप्रदायों के बीच अलग-अलग कानून होने से देश में एक तरह की विषमता बढ़ रही है जिससे एक असंतोष उत्पन्न हो रहा है उस असंतोष को नियंत्रित करने के लिए हि समान नागरिक संहिता का विचार लाया गया है ।
साथियों यह विचार नया नहीं है , 23 नवंबर 1948 को संविधान सभा की बैठक में बहस के दौरान बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने यह कहा था कि “मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि सभी भारतीय नागरिक के लिए एक समान कानून क्यों नहीं लागू हो सकता है”, 1951 में एक विशेष अधिवेशन में श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने इस विषय को प्रमुखता से उठाया , उसके बाद 1989 में स्वर्गीय लालकृष्ण आडवाणी ने भी रथ यात्रा के समय इस विषय को काफी प्रभावशाली तरीके से लोगों के सामने रखा तथा 1967 में भारतीय जनसंघ और 2014 में भारतीय जनता पार्टी ने अपने लोकसभा चुनाव के घोषणा पत्र में भी इस मुद्दे को शामिल किया ।
साथियों संविधान का अनुच्छेद 44 में भी समान नागरिक संहिता का उल्लेख है तथा समान नागरिक संहिता देश में प्रभावशाली ढंग से लागू हो यह अनुच्छेद इसका समर्थन करता है ।
माननीय सुप्रीम कोर्ट भी समान नागरिक संहिता के महत्व और जरूरत को रेखांकित कर चुका है कम से कम पांच बार अलग अलग प्रकरण की सुनवाई के समय समान नागरिक संहिता को लागू करने के पक्ष में अपना विचार रख चुका है , ये पांच प्रकरण है
- मोहम्मद अहमद खान विरुद्ध शाहबानो (1985)
- सरला मुद्गल विरुद्ध यूनियन ऑफ इंडिया (1995)
- लिली थॉमस विरुद्ध यूनियन ऑफ़ इंडिया (2000)
- जॉन वल्लमत्तोम विरुद्ध यूनियन ऑफ़ इंडिया (2003)
- जोस पाउलो कुटिन्हो विरुद्ध मारिया लुजिया वेलेंटीना परेरिया (2019)
कुछ धर्म और समुदाय विशेष समान नागरिक संहिता को अपने धर्म पर आक्रमण मानते हैं लेकिन ऐसा नहीं है समान नागरिक संहिता केवल कुछ ऐसे पारिवारिक और व्यक्तिगत कानून जो कि शासन द्वारा नियंत्रित होने हि चाहिए , उन कानूनों को हि संबोधित करता है तथा यह संहिता उन सभी विषयों से संबंधित कानूनों को देश के सभी नागरिकों के ऊपर समान रूप से लागू करने का प्रयास करता है।
समान नागरिक संहिता किसी भी धर्म विशेष की न तो पूजा पद्धति , उपासना पद्धति को नियंत्रित करती है और ना हि उन्हें स्वतंत्र रूप से अपने उपासना स्थलों में आने जाने , उनमें किए जा रहे धार्मिक क्रियाकलापों पर रोक लगाती है।
कुछ लोगों का ऐसा मानना है समान नागरिक संहिता संविधान के अनुच्छेद 25 जो की धर्म के आचरण और प्रचार की स्वतंत्रता प्रदान करता है , उसका उल्लंघन है ।
कुछ मतों के अनुसार समान नागरिक संहिता संविधान के अनुच्छेद 26 जो कि किसी भी नागरिक को धार्मिक कार्यों के प्रबंधन की स्वतंत्रता देता है , उसका उल्लंघन है।
लेकिन साथियों समान नागरिक संहिता अनुच्छेद 25और 26 का उल्लंघन नहीं है , समान नागरिक संहिता के बाद भी भारत का प्रत्येक नागरिक अपने धर्म या स्वतंत्र और निर्बाध रूप से पालन कर सकता है , उसका प्रचार कर सकता है तथा अपने सभी धार्मिक कार्यों का उचित प्रबंधन भी कर सकता है ।
और अगर समान नागरिक संहिता संविधान के किसी भी अनुच्छेद का उल्लंघन करता प्रतीत होता तो माननीय सुप्रीम कोर्ट इसे लागू करने के पक्ष में अपना विचार नहीं रखता ।
लेकिन एक प्रश्न फिर भी उत्पन्न होता है कि क्या समान नागरिक संहिता बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक के भेद को खत्म करेगी , अनुच्छेद 30 जो कि अल्पसंख्यकों को उनके शिक्षा संस्थान खोलने और प्रबंधन का अधिकार देता है , क्या समान नागरिक संहिता उनके इस अधिकार को खत्म करेगी ।
हिंदू धर्म को बहुत बड़ा लाभ यह हो सकता है कि वर्तमान में हिंदू धर्म के लगभग सभी बड़े मंदिरों का नियंत्रण और प्रबंधन सरकारों ने अपने हाथ में लिया हुआ है जो कि संविधान के अनुच्छेद 26 का सीधा उल्लंघन भी है , मेरा मत किया है कि समान नागरिक संहिता लागू होने के बाद सारे मंदिर सरकार के नियंत्रण से मुक्त होंगे ।
समान नागरिक संहिता न तो किसी नागरिक के जीवन के अधिकार , भाषाई अधिकार , धार्मिक और सांस्कृतिक स्वतंत्रता को बाधित करता है और ना हि किसी नागरिक को मिले इन अधिकारों को रोकने का प्रयास करता है।
सरकार अगर समान नागरिक संहिता लागू करने का प्रयास करती है तो यह इतना आसान भी नहीं होगा , मुस्लिम समाज तो विरोध कर ही रहा है साथ ही साथ बौद्ध समाज भी विरोध में आगे आ गया है उनका भी कहना है कि एक अलग से बौद्ध मैरिज एक्ट बनाया जाए , बौद्ध समाज को समान नागरिक संहिता से बहुत सारी आशंकाएं हैं ।
बहुत सारे विपक्षी राजनीतिक दल तो इसके विरोध में है हि , लेकिन राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के एक घटक दल मेघालय के मुख्यमंत्री कोनार्ड संगमा भी इसका विरोध कर रहे हैं , सरकार को यह प्रयास जरूर करना चाहिए कि जिन्हें भी इस संहिता के बारे में आशंका है उनकी आशंकाओं को संबोधित करते हुए उनका उचित समाधान करके सबको सहमत करने का प्रयास करना चाहिए ।
अभी तो यह केवल एक शुरुआत है जिसमें न्यायिक आयोग ने हितधारकों से सुझाव मांगे हैं , आगे आने वाले समय में सरकार को इस कानून के मसौदे को लोकसभा और राज्यसभा में पेश करना होगा , यह देखना दिलचस्प होगा कि वर्तमान सरकार इसे मई 2024 के लोकसभा चुनाव के पहले या चुनाव के बाद पास कराने की कोशिश करती है ।
लेकिन यहां पर यह भी उल्लेख करना जरूरी है गोवा में समान नागरिक संहिता लागू है तथा उत्तराखंड और गुजरात में लागू करने की तैयारी हो रही है , लेकिन अलग अलग राज्य में लागू करने से इसका प्रभाव इतना व्यापक नहीं होगा , इसलिए अगर लागू करना हि है तो इसे केंद्र के स्तर पर ही लागू करना चाहिए ।
लेकिन इतना निश्चित है समान नागरिक संहिता का विषय आने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव और मई 2024 के लोकसभा चुनाव तक काफी प्रमुखता से उठाया जाता रहेगा और सभी राजनीतिक दल इसे अपने-अपने ढंग से प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे ताकि उनके पक्ष में लोगों का मत हस्तांतरित हो सके ।
अगर आपके पास कोई सुझाव है तो आप जरूर उसे 22वें न्यायिक आयोग के पास जरूर भेजें, आप अपने सुझाव इस ईमेल आईडी membersecretary-lci@gov.in के माध्यम से या https://legalaffairs.gov.in/law_commission/ucc/ इस लिंक को क्लिक करके अपना व्यक्तिगत विवरण के साथ 2 एमबी तक की पीडीएफ फाइल या वर्ड फाइल संलग्न कर के भेज सकते हैं