
सीजी न्यूज आनलाईन डेस्क, 12 मई। छत्तीसगढ़ का बढ़ता तापमान हमारी सेहत पर कहर बरपा सकता है। दरअसल, इस मौसम में आस-पास के वातावरण में इतने बदलाव होते हैं कि उनका हमारी बॉडी पर काफी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसके सबसे जाने-माने दुष्प्रभावों में Heat Stroke और डिहाइड्रेशन शामिल है लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसकी वजह से आपके दिल को भी नुकसान पहुंच सकता है।
जी हां, बढ़ते तापमान की वजह से हार्ट से जुड़ी परेशानियां, खासकर हार्ट अटैक का जोखिम काफी बढ़ जाता है। तापमान में छोटी सी वृद्धि भी कार्डियो वास्कुलर रोगों का खतरा बढ़ा सकती है। डेटा बताते हैं कि तापमान में एक डिग्री सेंटीग्रेड का परिवर्तन भी हार्ट अटैक या स्ट्रोक के अधिक खतरे के साथ जुड़ा हुआ है। दरअसल में बढ़ा हुआ तापमान कार्डियोवेस्कुलर सिस्टम पर एक्स्ट्रा दबाव डालता है, जिससे दिल के दौरे के खतरे का खतरा बढ़ सकता है। लंबे समय तक हाई टेम्परेचर में रहने से शरीर को अंदर के तापमान को नियंत्रित करने के लिए ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है, जिससे हार्ट रेट बढ़ जाता है और गर्मी को खत्म करने के लिए त्वचा में ब्लड फ्लो बढ़ जाता है जिसके चलते स्ट्रोक और हार्ट अटैक का खतरा भी बढ़ जाता है। गर्मी का सबसे ज्यादा प्रभाव दिल पर पड़ता है, जिससे स्ट्रोक का खतरा बढ़ सकता है, जिसमें स्ट्रोक की 3.8% की वृद्धि है और हृदय रोग के 2.8% की वृद्धि है। वास्तव में, इन बीमारियों पर गर्मी के मौसम का प्रभाव मौत के खतरे को 11 से 12% तक बढ़ा सकता है। शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार के कारणों से स्ट्रोक हो सकते हैं। कुछ मुख्य कारणों में हाई ब्लड प्रेशर, अनियमित खान-पान, शराब और धूम्रपान का सेवन, डायबिटीज, अधिक वजन, और अधिक तनाव शामिल हो सकते हैं, इसके अलावा, ब्लड क्लॉट या इसमें खून का फ्लो रोकने वाली कोई अन्य समस्या भी स्ट्रोक का कारण बन सकती है। क्योंकि गर्मी में जब तापमान ज्यादा होता है, तो पसीने की मात्रा बढ़ जाती है। यह बढ़ती हुई पसीने की मात्रा पानी की कमी और तबीयत खराब कर सकती है और यह स्ट्रोक का खतरा भी बड़ा सकती है। शरीर पर थर्मल तनाव बढ़ने से भी स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है, जैसे हाइपरटेंशन , हार्ट रेट की असंतुलन जिसे एरिथमिया (arrhythmias) भी कहा जाता है और इस्केमिक हृदय रोग (ischemic heart disease) भी कहा जाता है।लोग गर्मी के दौरान हीट स्ट्रोक और स्ट्रोक के बीच कंफ्यूज हो जाते हैं। स्ट्रोक और ब्रेन स्ट्रोक तब होता है जब दिमाग डैमेज हो जाता है। ऑक्सीजन की कमी के कारण यह इसलिए होता है क्योंकि दिमाग में ब्लड की सप्लाई कम हो जाती है और दिमाग के कोशिकाएं मर जाती हैं।

आइए इनको लक्षणों पर नजर डालें तो इन मामलों में सामान्य लक्षण एक तरफ़ के शरीर में कमजोरी, बोलने या समझने में मुश्किल, संतुलन नहीं रख पाना है और भ्रम (hallucination) की परेशानी होती है।हालांकि, जब आपका शरीर का तापमान बहुत ज़्यादा गर्म हो जाता है और तापमान अत्यधिक बढ़ जाता है तो लू लग जाती है, इसे गर्मी का शॉक कहते हैं। बहुत महत्वपूर्ण है कि जब तापमान बढ़ जाए तो व्यक्ति को अधिक पानी पीना और उचित कपड़े पहनना चाहिए। यानि हल्के कपड़े, ढीले कपड़े और हलके रंग के कपड़े पहनना और उच्च तापमान या धूप में बहुत ज्यादा समय तक नहीं रहना चाहिए। धूप में बाहर जाने की बजाय घर में रहने का प्रयास करें।
गौरतलब हो कि आजकल की गलत जीवनशैली मनुष्य के लिए एक चुनौती बन गई है और गलत खानपान की वजह से कई लोगों के शरीर का वजन बहुत ज्यादा बढ़ जाता है। ऐसे लोग मोटापे की शिकार हो जाते हैं और कई लोग शरीर की कमजोरी और दुबलेपन से परेशान रहते हैं। एक हेल्दी शरीर के लिए उम्र के हिसाब से शरीर का वजन होना जरूरी होता है। उम्र के हिसाब से कितना होना चाहिए शरीर का वजन ? यह हर व्यक्ति के लिए जानना जरूरी है।
मेडिकल गाइड लाइन के अनुसार नवजात शिशु लड़के और लड़की दोनों का वजन 3.3 किग्रा, 2 से 5 महीने लड़के का 6 किग्रा, लड़की का 5.4 किग्रा, 6 से 8 महीने 7.2 किग्रा और 6.5 किग्रा, 9 महीने से 1 साल तक लड़के का वजन 10 किग्रा, लड़की का 9.5 किग्रा, 2 से 5 साल लड़के का 12. 5 किग्रा , लड़की 11. 8 किग्रा, 6 से 8 साल 14 से 18.7 किग्रा लड़का और 14 से 17 किग्रा लड़की, 9 से 11 साल लड़का 28 से 31 किग्रा, लड़की 28 से 31 किग्रा, 12 से 14 साल लड़का 32- 38 किग्रा, लड़की 32- 36 किग्रा, 15 से 20 साल लड़का 40 से 50 किग्रा, लड़की 45 किग्रा, 21 से 30 वर्ष लड़के के लिए 60 से 70 किग्रा, लड़की 50 से 60 किग्रा, 31 से 40 वर्ष पुरुष 59 से 75 किग्रा, महिला 60-65 किग्रा, 41 से 50 वर्ष पुरूष 60 से 70 किग्रा, महिला 59 से 63 किग्रा, 51 से 60 वर्ष पुरूष 60 से 70 किग्रा और महिला 59 से 63 किग्रा वजन होना चाहिए।