तलाक के लिए 6 महीने का इंतजार अब खत्म ✅ सुलह की गुंजाइश नहीं तो सुप्रीम कोर्ट से मिलेगा डिवोर्स

<em>तलाक के लिए 6 महीने का इंतजार अब खत्म ✅ सुलह की गुंजाइश नहीं तो सुप्रीम कोर्ट से मिलेगा डिवोर्स</em>



सीजी न्यूज आनलाईन डेस्क, 2 मई। तलाक को लेकर सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजय किशन कौल, संजीव खन्ना, ए एस ओका, विक्रम नाथ और जे के महेश्वरी की संवैधानिक बेंच ने बड़ा अहम फैसला सुनाया है कि अगर पति-पत्नी का रिश्ता इतना खराब हो चुका है कि सुलह होने की गुंजाइश बची ही नहीं है, तो कोर्ट भारत के संविधान के आर्टिकल 142 के तहत तलाक को मंजूरी दे सकता है। इसके लिए उन्हें फैमिली कोर्ट नहीं जाना होगा और न ही तलाक लेने के लिए 6 महीने का इंतजार करना होगा। यह फैसला 2014 में दायर शिल्पा शैलेश बनाम वरुण श्रीनिवासन केस में आया है, जिन्होंने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत तलाक मांगा था।
आपको बता दें कि हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 के सेक्शन 13बी में आपसी सहमति से तलाक का प्रावधान है। सेक्शन 13 बी (1) में कहा गया है कि पति-पत्नी तलाक के लिए डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में अर्जी दे सकते हैं। इसका आधार यह होना चाहिए कि दोनों साल भर या इससे ज्यादा वक्त से अलग रह रहे हों या उनका साथ रहना संभव न हो अथवा दोनों ने आपसी सहमति से अलग होने का फैसला लिया हो। हिंदू मैरिज एक्ट के सेक्शन 13बी (2) में कहा गया है दोनों पक्षों को तलाक की अर्जी दाखिल करने की डेट से 6 से 18 महीने के बीच इंतजार करना होगा। इस समय को कूलिंग पीरियड कहते हैं। तलाक का फैसला जल्दबाजी में तो नहीं लिया जा रहा, इस पर विचार करने के लिए यह समय मिलता है। इस दौरान दोनों तलाक की अर्जी वापस ले सकते हैं। अगर ऐसा नहीं होता, तब निर्धारित वेटिंग पीरियड बीतने के बाद और दोनों पार्टी को सुनने के बाद अगर कोर्ट को लगता है तो वह जांच कर तलाक को मंजूरी दे सकती है क्योंकि कानून के नजरिए से शादी कोई मजाक नहीं होता है। जिसमें 1 या 2 महीने साथ रहने के बाद तलाक ले लें। इसमें दो फैमिली के इमोशन जुड़े होते हैं। तलाक के लिए शादी के 1 साल बाद ही अर्जी कर सकते हैं।
नॉर्मल तलाक के केस से शिल्पा शैलेश बनाम वरुण श्रीनिवासन केस कितना अलग था। इस मामले में पति पत्नी दोनों शादी के बाद सिर्फ 4 साल तक साथ रहे। दोनों ने आपसी सहमति से तलाक लेने का फैसला 2014 में किया था। तब से ये मामला कोर्ट में चल रहा था। सुनवाई के दौरान दोनों एक-दूसरे पर आरोप लगाते रहे। इस तरह दोनों ही पार्टी के साथ क्रूरता हो रही थी। ऐसे में 142 का इस्तेमाल करते हुए कोर्ट की 5 जज की बेंच ने तलाक को मंजूरी देने का फैसला ‘सुनाया। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस संजय किशन कौल की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि यदि शादी में सुलह की कोई गुंजाइश नहीं बची हो तो कोर्ट इसे भंग कर सकती है। यह मौलिक सिद्धांतों का उल्लंघन नहीं होगा। आसान शब्दों में समझें तो संविधान का अनुच्छेद 142 सुप्रीम कोर्ट को एक स्पेशल पॉवर है जिसके तहत कोर्ट न्याय संबंधी मामले में जरूरी निर्देश दे सकता है। जब तक किसी अन्य कानून को लागू नहीं किया जाता, तब तक सुप्रीम कोर्ट का आदेश सर्वोपरि होगा। इस तरह कोर्ट ऐसे फैसले दे सकता है जो लंबित पड़े किसी भी मामले को पूर्ण करने के लिए जरूरी हों।