चार साल में एक बार भी नहीं आया लक्ष्य बदलने का ख्याल खुद पर था भरोसा इसलिए पढ़ता चला गया, परिवार का मिला साथ, मेडिकल शॉप चलाने वाले पिता चाहते थे बड़ा होकर बेटा बने डॉक्टर
भिलाई नगर 3 अक्टूबर । छोटी सी मेडिकल शॉप चलाने वाले पिता जब डॉक्टरों की लिखी पर्ची देखकर लोगों को दवाई बेचते थे तब मन में सोचते थे कि काश मेरा बेटा भी बड़ा होकर डॉक्टर बने। पिता ने अपनी इसी सोच को साकार करने के लिए बचपन से बेटे को बताया कि उसे डॉक्टर बनना है। जैसे-जैसे बेटे की उम्र बढ़ती गई वह मेडिकल स्टोर में पिता का हाथ बंटाने भी लगा। साथ ही साथ दवाई और मेडिकल फील्ड में इंटरेस्ट आने लगा। 11 वीं में विषय चयन की बारी आई तो बिलासपुर के नेरटू गांव के रहने वाले गुलशन ने बायो लिया ताकि आगे मेडिकल एंट्रेस देकर डॉक्टर बन सके। ये सफर इतना आसान नहीं था जितना सोचा था। सीजी बोर्ड और सरकारी स्कूल से पढ़ाई के कारण जब मेडिकल एंट्रेस की तैयारी शुरू की तो एनसीइआरटी की किताबों से जूझना पड़ा। कुछ करने का जुनून इस कदर हावी था कि तीन लगातार असफलताओं के बाद चौथे साल में नीट क्वालिफाई किया। डॉ. गुलशन पटेल ने बताया कि कई परिवार बेटे को लगातार असफलत होता देख लक्ष्य बदलने या फिर कोई दूसरा कोर्स ज्वाइन करने की सलाह देते हैं। मेरे साथ ऐसा नहीं हुआ मेरी हर असफलता में परिवार खड़ा रहा। उन्होंने कहा कि जब तब आप खुद गिवअप नहीं कर देंगे तब तक कोशिश करते रहो। यही कारण था कि मैंने चार साल ड्रॉप के बाद भी हार नहीं मानी और साल 2013 में मेडिकल एंट्रेस क्लीयर कर बिलासपुर मेडिकल कॉलेजत में एडमिशन लिया। अपनी सफलता का श्रेय पिता को देते हुए डॉ. गुलशन पटेल ने बताया कि हमेशा पॉजिटिव रहने के चलते वे कभी निराश नहीं हुए और सफलता की पहली सीढ़ी चढ़ पाए।
हिंदी मीडियम स्टूडेंट होने के कारण हुई काफी दिक्कत
डॉ. गुलशन पटेल ने बताया कि उन्होंने 12 वीं तक की पढ़ाई हिंदी मीडियम से की है। जब मेडिकल एंट्रेस की तैयारी शुरू की तो यहां हर दिन अंग्रेजी से पाला पडऩे लगा। पहले दो साल सीजी पीएमटी की तैयारी की फिर अचानक नीट आने के बाद एनसीइआरटी की किताबों और सिलेबस को नए सिरे से पढऩे में काफी दिक्कत हुई। दो अलग-अलग पैटर्न के एग्जाम की दो अलग-अलग तरह से तैयारी करने के लिए खुद को मेंटली प्रिपेयर करना पडऩा। शुरू में सबकुछ खिचड़ी की तरह लगता था। पहले दोनों साल में मिली असफलता से सबक लेते हुए नोट्स बनाकर पढऩा शुरू किया। टीचर्स ने भी गाइड किया कि किस सिलेबस को किस तरह से पढऩा है। तब जाकर दिमाग में चल रही उथल-पुथल शांत हुई और तैयारी में मन लग पाया।
सचदेवा में आकर मिला प्रॉपर गाइडेंस
लगातार तीन साल सचदेवा न्यू पीटी कॉलेज से मेडिकल एंट्रेस की तैयारी करने वाले डॉ. गुलशन ने बताया कि उन्हें सचदेवा में आकर ही प्रॉपर गाइडेंस मिला। 12 वीं बोर्ड के बाद मन में कई तरह के सवाल और कंन्फ्यूजन थे। अलग-अलग विषयों की तैयारी कैसे की जाए। सचदेवा में एक छत के नीचे हर मोड की हर सब्जेक्ट की पढ़ाई होने से यह दुविधा भी खत्म हो गई। बेसिक भी काफी वीक था। सचदेवा के टीचर्स ने बेसिक को ऐसा पढ़ाया कि आज भी दिमाग में फिट है। यहां के टेस्ट सीरिज से कॉम्पिटिशन के लेवल का पता चलता था। जब कभी निराश होते तो सचदेवा के डायरेक्टर चिरंजीव जैन सर हमारी काउंसलिंग करते। उनकी प्रेरक कहानियां हारे हुए इंसान को भी जीतने के लिए खड़ा कर सकती है। टेस्ट सीरिज में भी जब टॉप 10, टॉप 5 में रैंक आने लगा तो मेडिकल एंट्रेस क्लीयर करने का कॉन्फिडेंस भी आया। हिंदी मीडियम स्टूडेंट के लिए छत्तीसगढ़ में सचदेवा से बेहतर कोई कोचिंग नहीं है।
इंग्लिश- हिंदी को एक साथ पढ़े
नीट की तैयारी कर रहे स्टूडेंट्स से कहना चाहूंगा कि हिंदी और अंग्रेजी को साथ-साथ लेकर पढऩा सीखे। खासकर हिंदी मीडियम स्टूडेंट अंग्रेजी से भागने की कोशिश न करे क्योंकि एमबीबीएस का पूरा सिलेबस अंग्रेजी में होता है। इसलिए आपको एक न एक दिन अंग्रेजी से जूझना ही पड़ेगा। जब भी गिवअप करने का मन करे तो एक बार अपने पैरेंट्स से बात करें। स्टूडेंट तभी हारता है जब उसका परिवार साथ छोड़ देता है। अगर परिवार जीतने का हौसला दे तो कोई भी लक्ष्य मुश्किल नहीं होता। ड्रॉप इयर में हमेशा पॉजिटिव रहें।