संस्कृत में निहित हैं स्वाधीनता के बीजमन्त्र, छत्तीसगढ़ के कवि त्रिपाठी जी ने रचा नेहरूमहाकाव्यम् , आचार्य शर्मा

संस्कृत में निहित हैं स्वाधीनता के बीजमन्त्र, छत्तीसगढ़ के कवि त्रिपाठी जी ने रचा नेहरूमहाकाव्यम् , आचार्य शर्मा


खैरागढ़ में राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी सम्पन्न

भिलाई नगर 23 फरवरी । वैदिकसाहित्य , रामायण , महाभारत और श्रीमद्भगवद्गीता के बिना स्वाधीनता की कल्पना नहीं कीजासकती ।वेदों के पृथिवीसूक्त और संगठनसूक्त राष्ट्रभक्ति और देश की स्वतन्त्रता के मूलमन्त्र हैं। महाकवि कालिदास पर्वतराज हिमालय की वन्दना देवतात्मा के रूप में करते हैं। आज़ादी के इस अमृत महोत्सव वर्ष में राष्ट्रीय भावना के बीज मन्त्रों भूलना चाहिये । रामायण जननी और जन्मभूमि को स्वर्ग से भी बढ़कर बताती हैं। बाद के समूचे भारतभक्तिपूर्ण साहित्य इन्हीं से प्रेरित है।महर्षि अरविन्द घोष, लोकमान्य पं. बालगंगाधर तिलक , महात्मा गान्धी और नेताजी सुभाषचन्द्र बोस आदि को श्रीमद्भगवद्गीता से अंग्रेजों को परास्त करने की प्रेरणा मिली। ये प्रामाणिक और प्रेरक विचार आचार्य डा.महेशचन्द्र शर्मा ने स्वातंत्र्योत्तर संस्कृत काव्यों में राष्ट्रीय चेतना पर केंद्रित राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी के सत्र के अध्यक्ष के रूप में व्यक्त किये। इन्दिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ में इस्पात नगरी भिलाई के साहित्याचार्य डा.शर्मा विशेषज्ञ के रूप में आमन्त्रित थे।इस विश्वविद्यालय को एशिया के प्रथम कला संगीत विश्वविद्यालय होने का गौरव प्राप्त है।पूरे देश और दुनिया के अनेक विद्यार्थियों को इससे शिक्षा प्राप्त होरही है।नैक से इसे ए-ग्रेड प्राप्त है। डा.शर्मा ने यहाँ विशेषज्ञ के रूप में स्वातंत्र्योत्तर संस्कृत कवियों और उनके काव्यों के बड़ी संख्या में प्रामाणिक उदाहरणों से उपस्थित विद्वानों, शोधकर्ताओं , विद्यार्थियों और श्रोताओं को प्रभावित किया। आचार्य डा.शर्मा ने एक मौलिक शोधालेख भी प्रस्तुत किया।

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) के आचार्य डा.राजाराम त्रिपाठी विरचित नेहरूमहाकाव्यम् में कुल 16 सर्ग और 1215 श्लोक हैं। काव्यशास्त्र के सभी नियमों का कवि ने पालन किया है ।भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू महाकाव्य के नायक हैं। महारानीलक्ष्मीबाई, तिलक जी, महात्मा गान्धी जी और नेता जी सुभाषचन्द्र जी बोस आदि का भी इसमें अच्छा वर्णन है। शोधालेख की नवीनता, मौलिकता और प्रामाणिक प्रस्तुति की सभी ने सराहना की।

विश्वविद्यालय द्वारा आचार्य डा.शर्मा का शाल-श्रीफल प्रदान कर सम्मान भी किया गया । ज्ञातव्य है डा.शर्मा देश-विदेश के अनेक सफल शैक्षणिक-सांस्कृतिक भ्रमण करचुके हैं । वे अनेक पुस्तकों और बड़ी संख्या में शोधालेखों के भी प्रसिद्ध लेखक भी हैं। इस समारोह की मुख्यअतिथि डा.इला घोष जबलपुर, मुख्यवक्ता डा.मधुसूदन पेन्ना कुलपति कालिदास संस्कृत विश्वविद्यालय रामटेक महाराष्ट्र,डा.नौनिहाल गौतम सागर,अध्यक्षता डा.इन्द्रदेव तिवारी कुलसचिव खैरागढ़ विश्वविद्यालय, विशेष अतिथि डा.काशीनाथ तिवारी अधिष्ठाता कलासंकाय एवं संस्कृत विभागाध्यक्ष एवं संयोजिका डा.पूर्णिमा केलकर संस्कृत विभाग समेत खैरागढ़ विश्वविद्यालय के साहित्य प्रेमी बड़ी संख्या में उपस्थित रहे।कार्यक्रम गरिमामय रहा।