लोक आस्था का महापर्व छठ नहाय खाय के साथ शुरू हुआ, तालाबों में वेदी निर्माण के बाद पूजन सामग्री की खरीदी शुरू, चार दिनों तक होगी छठी मैया और सूर्य देव की आराधना

लोक आस्था का महापर्व छठ नहाय खाय के साथ शुरू हुआ, तालाबों में वेदी निर्माण के बाद पूजन सामग्री की खरीदी शुरू, चार दिनों तक होगी छठी मैया और सूर्य देव की आराधना


लोक आस्था का महापर्व छठ नहाय खाय के साथ शुरू हुआ, तालाबों में वेदी निर्माण के बाद पूजन सामग्री की खरीदी शुरू, चार दिनों तक होगी छठी मैया और सूर्य देव की आराधना

भिलाई नगर 8 नवंबर । लोक आस्था का महापर्व छठ सोमवार को नहाय खाय से आरंभ हो गया है। पर्व की तैयारी भी अंतिम चरण में पहुँच गई है। घाट की सफाई के साथ ही प्रसाद बनाने के लिए गेहूँ चुनने और सुखाने का काम भी शुरू हो गया है। व्रतियों के घर से घाट तक उत्सवी माहौल है, बाजारों में रौनक बढ़ गई है। व्रत को लेकर खूब खरीददारी की जा रही है।  इस बार महापर्व पर ग्रह-गोचरों का शुभ संयोग बना हुआ है। आचार्य पं. ओम प्रकाश द्विवेदी ने बताया कि, सुकर्मा योग में नहाय खाय के दिन व्रती प्रसाद ग्रहण करेंगी वहीं मंगलवार 9 नवंबर को खरना एवं 10 नवंबर बुधवार को सांयकालीन अध्र्य होगा, 11 नवंबर को उगते सूर्य को अध्र्य देकर व्रती महापर्व का समापन करेंगी। मंगलवार को खरना का प्रसाद खीर ग्रहण करेंगी। व्रती सोमवार को नहाय खाय के बाद कार्तिक शुक्ल की पंचमी मंगलवार को व्रती पूर्वाषाढ़ से नक्षत्र व रवि योग में खरना का प्रसाद खीर रोटी ग्रहण करने के बाद 36 घंटे का   निर्जला व्रत करेंगी। बुधवार 10 नवंबर को सूर्यापासन के तीसरे दिन छठ व्रती डूबते सूर्य को अध्र्य देंगी। डूबते सूर्य को अध्ये देने से मानसिक शांति, उन्नति और प्रगति होगी वहीं गुरूवार को  छठ व्रती उगते सूर्य को अध्र्य देने के साथ महापर्व का समापन करेंगी।

संतान प्राप्ति और परिवार के सुखए शांति व समृद्धि की कामना के साथ मनाए जाने वाले छठ महापर्व का आगाज आज नहाय खाय के विधान के साथ हो गया। चार दिनों तक चलने वाले इस महापर्व  में छठी मैया और सूर्य देव की आराधना होगी। आस्था और श्रृद्धा के इस पारम्परिक पर्व के लिए तालाबों में पूजा वेदी निर्माण के साथ ही पूजन सामग्री खरीदने बाजार में भीड़ दिखने लगी है।

छठ के महापर्व की शुरुआत आज यानी 8 नवंबर से हो रही है। यह पर्व चार दिन मनाया जाता है। पहले दिन नहाय-खाय दूसरे दिन खरना, तीसरे और चौथे दिन क्रमश: अस्त होते और उदय होते सूर्य को नदी या तालाब में खड़े होकर अघ्र्य देते हैं। भिलाई-दुर्ग में बिहार व पश्चिमी उत्तर प्रदेश मूल के निवासियों की अच्छी खासी तादाद है। इसके चलते छठ महापर्व का उत्साह यहां के तालाबों में देखते बनता है। पिछले साल कोरोना संक्रमण के चलते घरों में जल कुंड बनाकर छठ पूजा की गई थी। लेकिन इस बार फिर से इस महापर्व को मनाने तालाबों में व्रती परिवार की भीड़ जुटने से मेले जैसा माहौल बनेगा।

छठ महापर्व में 10 नवंबर की शाम को अस्त होते सूर्य देव को प्रथम अध्र्य दिया जाएगा। वहीं अगली सुबह 11 नवंबर को उगते सूर्य देव को द्वितीय अध्र्य देने के साथ ही इस चार दिनी महापर्व का समापन होगा। इसके लिए नगर निगम के द्वारा सभी छठ मनाए जाने वाले तालाबों की साफ  सफाई और प्रकाश की व्यवस्था की गई है। व्रती परिवारों के द्वारा अपनी-अपनी पूजा वेदियों का निर्माण व संधारण कर रंग रोगन किया जा रहा है।

आज नहाय-खाय में व्रती पुरुष व महिलाओं ने सुबह स्नान कर नई साड़ी या अन्य वस्त्र पहनें। महिलाओं ने माथे पर सिंदूर लगाकर साफ  सफाई किया। छठ के प्रसाद और पकवान के लिए मिट्टी लेपकर चूल्हा बनाया या गैस चूल्हे को साफ किया। कठिन व्रत की शुरुआत में व्रती पुरुष व महिलाओं आज आखिरी बार नमक खाया। चावल का भात बनाया और सेंधा नमक से कद्दू यानी लौकी की सब्जी बनायी। घर के सभी लोगों ने यही भोजन किया। इसी विधान को नहाय-खाय कहा जाता है। इसके बाद छठ का मुख्य प्रसाद ठेकुआ बनाया जा रहा है।

बाजारों में फिर से बिखरी रौनक

दीपावली मनाने के बाद बाजार में शांति छा गई थी। लेकिन छठ महापर्व का आगाज होने के साथ फिर से बाजार में पूजन सामग्री खरीदने वालों की भीड़ नजर आने लगी है। छठ पूजा में बांस की टोकरी, लोटा, फल, मिठाई, नारियल, गन्ना, सब्जी आदि की आवश्यकता होती है। इसके अलावा दूध-जल के लिए एक ग्लास, शकरकंदी और सुथनी, पान, सुपारी और हल्दी, मूली और अदरक का हरा पौधा, बड़ा मीठा नींबू, शरीफा केला और नाशपाती, पानी वाला नारियल, मिठाई, गुड़, गेहूं, चावल और आटे से बना ठेकुआ, चावल, सिंदूर, दीपक, शहद और धूप, नए वस्त्र, जैसे सूट या साड़ी की जरूरत पड़ती है। इसके चलते भिलाई दुर्ग के सभी बाजारों में फिर से रौनक बिखरने लगी है।