राजधानी के सबसे बडे़ सरकारी हास्पिटल 🛑 ने जिंदा बच्ची को 🛑 मरा बता कार्टून बाक्स में पैक कर परिजनों को दे दिया…‼️

<em>राजधानी के सबसे बडे़ सरकारी हास्पिटल 🛑 ने जिंदा बच्ची को 🛑 मरा बता कार्टून बाक्स में पैक कर परिजनों को दे दिया…‼️</em>



सीजी न्यूज आनलाईन डेस्क, 23 फरवरी। दिल्ली के सबसे बड़े सरकारी हॉस्पिटल लोकनायक जयप्रकाश नारायण हॉस्पिटल ने जिंदा बच्ची को मरा बताते हुए कार्टून बाक्स के भीतर रख परिजनों को दे दिया है।
मिली जानकारी के अनुसार नॉर्थ-ईस्ट दिल्ली के भजनपुरा में रहने वाले 40 वर्षीय अब्दुल मलिक और उनकी पत्नी रुखसार को दूसरा बच्चा होना था। 17 फरवरी को रुखसार को लेबर पेन हुआ तो परिजनों ने उसको LNJP हॉस्पिटल में एडमिट करवाया। अब्दुल के मुताबिक रुखसार करीब 29 हफ्तों की प्रेग्नेंट थीं। 19 फरवरी शाम करीब साढ़े 6 बजे हॉस्पिटल के इमरजेंसी वॉर्ड में रुखसार की प्रीमैच्योर डिलिवरी हुई।

हॉस्पिटल स्टाफ ने अब्दुल और परिवार को बताया कि बेटी मरी हुई पैदा हुई है। हॉस्पिटल वालों ने नवजात बच्ची की लाश एक गत्ते के डिब्बे में पैक करके घर वालों को सौंप दी। अब्दुल ने घर फोन कर सभी को बुरी खबर सुना दी और कफन-दफन का इंतजाम करने के लिए कहा। करीब 1 घंटे में ही परिवार, आस-पड़ोस, रिश्तेदार सब मातम मनाने के लिए अब्दुल और रुखसार के घर के बाहर जुट गए। जनाजे के लिए तैयारी कर ली गई, क्रबगाह में नवजात के लिए कब्र खोद ली गई और तो और कफन के लिए कपड़ा भी लाया जा चुका था। इतने में ही अब्दुल हॉस्पिटल का दिया हुआ बॉक्स लेकर घर पहुंचे। शाम करीब 7:30 बजे थे, घर आकर अब्दुल से लोगों ने कहा- ‘डिब्बा खोलो, टॉर्च जलाकर दिखाओ’।

डिब्बा खोलकर जैसे ही कपड़ा हटाया तो गुलाबी रंग की बच्ची का पैर हिलता नजर आया। इस पूरी घटना का एक वीडियो भी वायरल हुआ है। इस वीडियो में आवाज हाती है ‘वीडियो बनाओ। कमबख्तों ने क्या कर दिया ये। दो घंटे पहले मरा बोलकर बच्चा दिया और अब इसके हाथ-पैर हिल रहे हैं।’ वीडियो में दिख रहा था कि परिवार के लोगों ने डिब्बा पैक किया और वापस अस्पताल की तरफ भागे। रात करीब 8 बजे अब्दुल नवजात वाला डिब्बा लेकर भजनपुरा के अपने घर से स्कूटी पर ही अस्पताल की तरफ भागे। करीब 8:30 तक हॉस्पिटल पहुंचे और एंट्री के साथ ही वीडियो बनाना भी शुरू किया, ताकि अगर कुछ गड़बड़ी हो तो सबूत रहे। अब्दुल ने पहले ही फोन करके हॉस्पिटल स्टाफ को बता दिया था कि बच्ची जिंदा है और वो उसे लेकर हॉस्पिटल आ रहे हैं। LNJP हॉस्पिटल के गेट नंबर-2 से एंट्री करते हुए व गाइनोलॉजी डिपार्टमेंट पहुंचे।
अब्दुल बताते हैं- ‘पहले से हॉस्पिटल स्टाफ को सूचना देने के बावजूद डिपार्टमेंट में सभी डॉक्टर और स्टाफ ने अपने दरवाजे बंद कर लिए थे। हमने जब शोर मचाया तब वे आकर बच्ची को देखने लगे। लेकिन फिर भी कुछ नहीं किया। इतने में ही हॉस्पिटल के गार्ड्स ने हमें धमकाना शुरू कर दिया। वे कह रहे थे कि ज्यादा बोले तो 100 नंबर डायल करके पुलिस को बुला लेंगे। 22 फरवरी को शाम 4 बजे अस्पताल में अब्दुल को बताया कि बच्ची नहीं रही। परिवार बच्ची की डेड बॉडी लेकर घर लौट आया है, खबर लिखे जाने तक अंतिम संस्कार की तैयारियां शुरू हो गई थीं। इस हादसे के तीन दिन बीत जाने के बाद भी परिवार अनजान है कि अस्पताल में बच्ची का क्या ट्रीटमेंट किया गया?
LNJP हॉस्पिटल की तरफ से अब तक उन्हें न तो प्रिस्क्रिप्शन दिया गया, न ही ये बताया गया है कि किस मेडिकल स्टाफ ने डिलिवरी में गड़बड़ी की थी। कागज के नाम पर परिवार को सिर्फ एक कागज दिया गया, इस पर भी किसी डॉक्टर का नाम या दस्तखत नहीं है। ये कागज नवजात को हॉस्पिटल में वापस ले जाने के बाद दिया गया। इस कागज पर ऊपर ‘रेफरल’ लिखा है। 23 महीने का बच्चा, जिसका वजन बहुत कम है, सिर्फ 470 ग्राम है, जो अभी LNJP में CPAP सपोर्ट पर एडमिट है। लेकिन, हॉस्पिटल में वेंटिलेटर बेड उपलब्ध नहीं है, नवजात को तुरंत वेंटिलेटर की जरूरत है। इसे एम्स, सफदरजंग, RML हॉस्पिटल के लिए रेफर किया जाता है। अस्पताल में हुआ क्या ये जानने के लिए LNJP हॉस्पिटल के मेडिकल डायरेक्टर डॉक्टर सुरेश कुमार से बात की गई तो उन्होंने बताया कि हमारे हॉस्पिटल में 19 जनवरी को करीब 23 हफ्तों फीट वाली प्री-टर्म डिलिवरी हुई थी। डिलिवरी के बाद फीटस में कोई एक्टिविटी नहीं दिख रही थी। इसके करीब एक घंटे बाद गाइनोलॉजी टीम ने हमें बताया कि फीटस में हलचल देखी गई। हमने बच्चे को वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखा है। विशेषज्ञ डॉक्टर्स की टीम बेबी की देखभाल में लगे हैं। इस हादसे की विस्तार से जांच का आदेश दिया है। इसकी डीटेल्ड रिपोर्ट मिल जाएगी। अब तक इस मामले में कोई पुलिस शिकायत दर्ज नहीं कराई गई है।
24 घंटे बीत जाने के बाद भी अब तक LNJP हॉस्पिटल की तरफ से कोई रिपोर्ट जारी नहीं की गई है। इस घटना में परिजनों के सवाल का किसी के पास जवाब नहीं है। हॉस्पिटल में उस वक्त गाइनोलॉजी डिपार्टमेंट में इंचार्ज कौन था और किस डॉक्टर या मेडिकल स्टाफ ने डिलिवरी की ?डिलिवरी के बाद क्या फीटस को ठीक से नहीं देखा गया, अगर डिब्बे में बंद करने के बाद भी फीटस में मूवमेंट हो रहा था, तो क्यों हॉस्पिटल स्टाफ ने नवजात को बचाने की कोशिश नहीं की?24 घंटे में जांच की रिपोर्ट आने की बात कही गई थी। उस रिपोर्ट में क्या सामने आया है, इसकी जानकारी अब तक परिवार को क्यों नहीं दी गई? परिवार का आरोप है कि हॉस्पिटल प्रशासन उन पर बच्ची को मरा हुआ मान लेने के लिए दबाव बना रहा है, क्या ये बात सही है? परिवार का ये भी आरोप है कि हॉस्पिटल में गार्ड्स ने परिवार के साथ बदतमीजी की, वो भी तब जब वो नवजात को लेकर हॉस्पिटल पहुंचे थे। नवजात को एडमिट कराने में ही करीब आधा घंटे का समय लग गया। क्या ये हॉस्पिटल की लापरवाही नहीं है?
रुखसार की डिलिवरी के वक्त उनके पति अब्दुल पूरे टाइम साथ थे। 22 फरवरी की सुबह अब्दुल ने बताया कि पूरे वाकिये को 3 दिन हो गए। मेरी नन्हीं सी जान की जिंदगी खतरे में है और अभी तक हमें हॉस्पिटल नहीं बता रहा कि मेरी बच्ची को वेंटिलेटर पर रखा गया या नहीं। 19 फरवरी को जब मेरी पत्नी रुखसार ने बेटी को जन्म दिया तो उसने बताया कि पैदा होने के बाद उसने भी बच्ची के हाथ-पैर हिलते देखे थे, लेकिन मेडिकल स्टाफ ने उसे बचाने की कोशिश नहीं की। प्रिमैच्योर डिलवरी का मामला देखकर उन्होंने बच्ची को पहले ही मरा हुआ मान लिया था। अगर ये किसी अमीर आदमी का केस होता तो यही हॉस्पिटल और यही डॉक्टर पूरी जान लगाकर आखिरी दम तक नवजात को बचाते, लेकिन इन्होंने सोचा ये गरीब हैं। मरी हुई बच्ची का डिब्बा घर लेकर जाकर दफना देंगे, देखेंगे भी नहीं लेकिन अब मुझे साफ चाहिए, अगर मेरी बेटी की मौत होती है तो इसके लिए सीधे-सीधे हॉस्पिटल ही जिम्मेदार है। हम पुलिस के पास जाएंगे और केस दर्ज कराएंगे। सरकार का कहना है कि बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, मेरी बेटी को बचाने की कोशिश डॉक्टर्स को करनी चाहिए थी।