🛑 रोज पड़े तो बहुत अच्छा है’
सीजी न्यूज ऑनलाइन 02 जनवरी 2025 । यदि आप भी अपने बच्चे के साथ डांट-डपट करते हैं और फिर आपको अपने इस रवैये के लिए अफसोस होता है, तो आप एक बार श्री श्री रविशंकर की कही बात सुन लीजिए। उन्होंने बताया है कि बच्चों को डांटना सही होता है या इससे नुकसान हो सकते हैं।
ये कहना गलत नहीं होगा कि बच्चों का पालन-पोषण करना किसी भी मां-बाप के लिए मुश्किल और चुनौतियों से भरा काम होता है। इस जर्नी में उन्हें कई तरह की परेशानियां आ सकती हैं और पेरेंट्स सबसे ज्यादा जिस बात की शिकायत करते हैं, वो यह है कि बच्चे के साथ डील करते समय उनके लिए अपने गुस्से को कंट्रोल करना और शांत रहना बहुत मुश्किल हो जाता है।
श्री श्री रवि शंकर जी से भी एक महिला ने भी यही सवाल पूछा कि वो बहुत कोशिश करती है कि अपने बच्चों के साथ शांत रहे लेकिन ऐसा हो नहीं पाता है। ऐसे में उसे क्या करना चाहिए? आगे जानिए कि इस महिला के सवाल पर श्री श्री रवि शंकर ने क्या जवाब दिया।
मां के इस सवाल पर गुरुदेव ने कहा कि मां का कभी-कभी अपने बच्चों पर गुस्सा करना सही है और इसमें कोई बुराई नहीं है। यह उनके विकास का एक हिस्सा है। बच्चे अपनी डेवलपमेंट के दौरान नई-नई चीजें सीखते हैं और इस बीच उन्हें कई चीजों के बारे में पता नहीं होता है, जिससे वो गलतियां कर बैठते हैं और उन्हें अपने पेरेंट्स के गुस्से का सामना करना पड़ता है।
गुरुदेव ने कहा कि आजकल के मां-बाप अपने बच्चों को अच्छे माहौल में पालना ही नहीं चाहते बल्कि उनकी हर एक ख्वाहिश को पूरा करना चाहते हैं और उन्हें बहुत संभालकर रखते हैं। इसके चक्कर में बच्चे भावनात्मक रूप से कमजोर बनते जा रहे हैं। जब वो बड़े होते हैं, तब वो किसी की भी आलोचना को सहन नहीं कर पाते हैं।
मां का डांटना और आलोचना करना
श्री श्री रवि शंकर ने कहा कि ऐसे में मां का डांटना और आलोचना करना, बच्चों के लिए वैक्सीनेशन का काम कर सकता है। इससे बच्चे सख्त रवैये के प्रति इम्यून बन पाते हैं और उन्हें समझ आता है कि जब कोई उनके साथ कठोरता के साथ व्यवहार करता है, तब उन्हें इस परिस्थिति के साथ कैसे डील करना चाहिए।
ज्यादा ना करें
गुरुदेव का कहना है कि ये दुनिया बहुत बेदर्द है और इसका सामना करने के लिए आपको अपने बच्चे को तैयार करना होगा। इसका एक मार्ग उसे अपने माता-पिता से गलती करने पर डांट पड़ना भी है। हालांकि, आपको बच्चे को बहुत ज्यादा डांटना नहीं है या उसके साथ अत्यधिक सख्ती से पेश नहीं आना है।