*बचपन में अस्पताल में डॉक्टरों को देखकर जागी मेडिकल फील्ड में कैरियर बनाने की इच्छा, एवरेज स्टूडेंट होने के बाद भी मैंने नहीं खोया कान्फिडेंस, कड़ी मेहनत से मिली सफलता*

*बचपन में अस्पताल में डॉक्टरों को देखकर जागी मेडिकल फील्ड में कैरियर बनाने की इच्छा, एवरेज स्टूडेंट होने के बाद भी मैंने नहीं खोया कान्फिडेंस, कड़ी मेहनत से मिली सफलता*


बचपन में अस्पताल में डॉक्टरों को देखकर जागी मेडिकल फील्ड में कैरियर बनाने की इच्छा, एवरेज स्टूडेंट होने के बाद भी मैंने नहीं खोया कान्फिडेंस, कड़ी मेहनत से मिली सफलता

 

भिलाई नगर 14 मार्च । अंबिकापुर जिले से लगभग 45 किमी. दूर टीरा नामक गांव के रहने वाले डॉ. अनुज कुमार पैकरा उन पिछड़े इलाकों से ताल्लुक रखते हैं जहां डॉक्टर को देखने के लिए लोगों को महीनों इंतजार करना पड़ता है। बचपन में पिता जी के साथ कई बार अस्पताल आना-जाना हुआ। इस दौरान डॉक्टरों को मरीजों का उपचार करते देख मन में इच्छा जागी कि मैं भी बड़ा होकर डॉक्टर बनूंगा और अपने गांव के लोगों का इलाज करूंगा। बस यही सपना लेकर मैं स्कूल की एक क्लास से दूसरे क्लास तक बढ़ता चला गया। 11 वीं में बायो लेकर अपने सपनों को उड़ान देने की दिशा में आगे बढ़ा लेकिन गाइडलाइन के अभाव में ठीक से तैयारी नहीं कर पाया। जब 12 वीं बोर्ड की परीक्षा दी तब मेडिकल एंट्रेस और उससे जुड़ी बातों की जानकारी हुई। फिर क्या पेपर में सचदेवा कोचिंग का एड देखकर मैंने भिलाई जाने का फैसला किया। एक साल ड्रॉप लेकर कड़ी मेहनत की और नीट क्वालिफाई कर लिया। इस सफर में सबसे मुश्किल दौर पहली बार घर से बाहर रहकर पढऩा था। ग्रामीण परिवेश और ङ्क्षहदी मीडियम स्टूडेंट होने के कारण कई बार शहर के बच्चों के सामने झिझक होती थी। पर कहते हैं कि मेहनत हर झिझक और निराशा को दूर कर देती है। इसी बात को गांठ बांधकर बस अपनी पढ़ाई करते चला गया।

 

सीबीएसई के सिलेबस को समझने में लगा ज्यादा वक्त

डॉ. अनुज ने बताया कि उनकी 12 वीं तक की स्कूलिंग हिंदी मीडियम से हुई है। ऐसे में मेडिकल एंट्रेस के लिए सीबीएसई की किताबों को पढऩा शुरुआत में उनके लिए काफी मुश्किल भरा रहा। पहले तो कुछ भी समझ नहीं आता था। बेसिक कमजोर होने के कारण सिलेबस भी पल्ले नहीं पड़ता था। सबसे ज्यादा दिक्कत लैंग्वेज में होती थी। इन मुश्किल हालात में भी मैंने हार नहीं मानी और घंटों किताबों की खाक छानता रहता था। नीट की तैयारी के दौरान कैमेस्ट्री ने काफी रूलाया। कैमेस्ट्री की तैयारी के लिए मैं अलग से वक्त निकालता था ताकि अपने वीक सब्जेक्ट को स्ट्रांग कर सकूं।

 

टफ डिसिजन था पर सचदेवा में आकर संभव हो पाया

मीडिल क्लास फैमिली से ताल्लुक रखने वाले डॉ. अनुज कहते हैं कि उस वक्त कोचिंग का अंबिकापुर में ज्यादा चलन नहीं था। ऐसे में कोचिंग की फीस और बाहर रखकर पढऩा बहुत खर्चीला भी था। परिवार के लोगों ने बहुत हिम्मत जुटाकर मुझे सचदेवा में पढऩे के लिए भेजा। ये डिसिजन मेरे और मेरे परिवार दोनों के लिए बहुत टफ था। क्योंकि हमारे पास केवल एक ही मौका था। सचदेवा में जब आया तो यहां के टीचर्स और खासकर सचदेवा के डायरेक्टर चिरंजीव जैन सर ने भरोसा दिलाया कि कड़ी मेहनत करने से नीट क्वालिफाई किया जा सकता है। उनके लगातार मोटिवेशन और यहां के हेल्दी, काम्पिटेटिव माहौल में जल्दी ही मैं घुल मिल गया। पढ़ाई जैसे अब एक पैशन बन गई। बीच-बीच में थोड़ी निराशा होती थी। लगता था पता नहीं मैं कर पाऊंगा या नहीं। उस वक्त सचदेवा के टीचर्स मेंटर बनकर इरादा मजबूत कर देते थे। यहां पढ़कर ही मुझे भरोसा हुआ कि जीवन में कुछ भी असंभव नहीं है।

 

पढ़ाई में फोकस करने के लिए सबकुछ भूलना पड़ेगा

नीट की तैयारी करने वाले स्टूडेंट्स से कहना चाहता हूं कि यदि आप सच में डॉक्टर बनना चाहते हैं तो मेडिकल एंट्रेस की तैयारी के लिए आपको सबकुछ भूलकर केवल पढ़ाई पर फोकस करना होगा। यदि आप सोचेंगे कि मैं स्टाइलिश बन जाऊं, सोशल मीडिया पर एक्टिव रहते हुए पढ़ाई भी कर लूं या फिर फ्रेंड के साथ थोड़ा इंज्वाय करके एक दिन बाद पढ़ लूं तो ऐसा नहीं चलेगा। पढ़ाई के लिए एक फिक्स शेड्यूल बनाकर उसे रोज अमल में लाना होगा नहीं तो करोड़ों छात्रों की भीड़ में हमारी बारी कभी नहीं आ पाएगी।