भारत के इस शहर में निकलती है रावण की शोभायात्रा, सड़कों पर दिखती है दशानन की मायावी सेना

भारत के इस शहर में निकलती है रावण की शोभायात्रा, सड़कों पर दिखती है दशानन की मायावी सेना


भारत क के इस शहर में निकलती है रावण की शोभायात्रा, सड़कों पर दिखती है दशानन की मायावी सेना

सीजी न्यूज ऑनलाइन 01अक्टूबर। समूची दुनिया में विजयादशमी के मौके पर भले ही जगह-जगह रावण के पुतले जलाए जाने की परम्परा हो, लेकिन संगम नगरी प्रयागराज में दशहरा उत्सव की शुरुआत तीनो लोकों के विजेता लंकाधिपति रावण की पूजा-अर्चना और भव्य शोभा यात्रा के साथ होती है. घोडों-रथों, बैंड पार्टियों व आकर्षक रोड लाइट्स के बीच महाराजा रावण की शोभा यात्रा जब उनके कुनबे और मायावी सेना के साथ प्रयागराज की सड़कों पर निकलती है, तो उसके स्वागत में जनसैलाब उमड़ पड़ता है.

खराब मौसम और बारिश के बीच इस साल शोभा यात्रा में शामिल डेढ़ दर्जन से ज्यादा झांकियां लोगों के बीच ख़ास आकर्षण का केंद्र रहीं. रावण बारात के नाम से निकलने वाली इस शोभा यात्रा के साथ ही प्रयागराज में दशहरा उत्सव की शुरुआत हो गई है. प्रयागराज में लंकाधिपति रावण को उनकी विद्वता के कारण पूजा जाता है. यहां की श्री कटरा रामलीला कमेटी दशहरे के दिन न तो रावण का दहन करती है और न ही उनके पुतले का वध. इस बार की रावण बारात में प्रयागराज के मेयर गणेश केसरवानी और विधायक हर्षवर्धन बाजपेई समेत कई खास मेहमान भी शामिल थे.

दशहरे पर निकलती रावण की शोभायात्रा

दशहरे की शुरुआत के मौके पर संगम नगरी प्रयागराज में तीनो लोकों के विजेता लंकाधिपति रावण की शाही सवारी इस साल भी परम्परागत तरीके से पूरी सज-धज और भव्यता के साथ निकाली गयी. महर्षि भारद्वाज के मंदिर से निकाली गई शाही सवारी से पहले प्राचीन शिव मंदिर में महाराजा रावण की आरती और पूजा-अर्चना कर उनके जयकारे लगाए गए. रावण बारात के नाम से मशहूर इस अनूठी शोभा यात्रा में दशानन भव्य रथ पर बने आर्टिफिशियल हाथी पर रखे चांदी के विशालकाय सिंहासन पर सवार होकर श्रद्धालुओं को दर्शन दे रहे थे तो उनकी पत्नी महारानी मंदोदरी व परिवार के दूसरे लोग घोडों व अलग-अलग रथों पर विराजमान दिखाई दिए.

दशानन की सवारी के ठीक आगे उनकी मायावी सेना अनोखे करतब दिखाते हुए चल रही थी. फूलों की बारिश, विजय धुन बजाती बैंड पार्टियां और आकर्षक लाइट्स के बीच महाराजा रावण और उनके परिवारवालों का जगह-जगह ऐसा भव्य स्वागत किया गया मानो दशानन एक बार फिर से तीनो लोकों को जीतकर लंका वापस लौटे हों. बारिश और खराब मौसम के बीच रावण बारात इस बार सड़कों पर निकली तो दशानन व उनके कुनबे का दर्शन करने के लिए लोगों का हुजूम सड़कों पर उतर आया.

विद्या और ज्ञान की देवी सरस्वती के उदगम स्थल और महर्षि भारद्वाज की नगरी प्रयागराज में महाराजा रावण को उनकी विद्वता के कारण पूजा जाता है. यहाँ पर दशहरे के दिन रावण का पुतला भी नहीं जलाया जाता. दशहरा उत्सव शुरू होने पर यहाँ राम का नाम लेने वाले का नाक-कान काटकर शीशा पिलाने का प्रतीकात्मक नारा भी लगाया जाता है.

रावण को बनाने वाले कलाकार खुद मानते हैं कलाकार
शोभा यात्रा से पहले रावण को घंटो सजाया जाता है. यही वजह है कि यहाँ रावण बनने वाले कलाकार खुद को बेहद भाग्यशाली मानते हैं. दशहरे पर रावण की पूजा करने वाली श्री कटरा रामलीला कमेटी से जुड़े लोग खुद को महर्षि भारद्वाज का वंशज मानते हैं. कमेटी के मीडिया प्रभारी पवन प्रजापति के मुताबिक रावण पूजा के साथ दशहरा उत्सव शुरू करने की यह परम्परा यहाँ सदियों पुरानी है. दशानन की एक किलोमीटर लम्बी इस अनूठी व भव्य शोभा यात्रा में महाराजा रावण के साथ ही उनके गुरु भगवान भोले शंकर और किशन कन्हैया के जीवन पर आधारित तमाम झांकियां भी शामिल रहती हैं. इन झांकियों की सजावट और इन पर होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रम इसे शोभा यात्रा का ख़ास आकर्षण बना देते हैं.

इस साल महाराजा रावण के कुनबे के साथ ही लंकापति रावण के गुरु भगवान शिव व दूसरे देवी -देवताओं की झाकियां भी निकाली गईं. डेढ़ दर्ज़न के करीब निकली इन झांकियों को देखने के लिए प्रयागराज की सड़कों पर इतनी भीड़ उमड़ी है कि कहीं तिल रखने की भी जगह नहीं रही. इस अनूठी शोभा यात्रा और परम्परा को देखने के लिए देश के कोने-कोने से श्रद्धालु यहाँ आते हैं. दर्जन भर से ज्यादा बैंड पार्टियां और रंग बिरंगी व आकर्षक रोड लाइट्स इस रावण बारात की भव्यता में चार चांद लगा रही थी.

महाराजा रावण की यह बारात प्रयागराज की श्री कटरा रामलीला कमेटी द्वारा शहर के करनलगंज इलाके में महर्षि भारद्वाज के आश्रम से निकाली जाती है. लंकाधिपति रावण की इस अनूठी व भव्य बारात के साथ ही संगम नगरी प्रयागराज में दशहरा उत्सव की शुरुआत हो जाती है. इस उत्सव के तहत एक पखवारे तक शहर के अलग-अलग मोहल्लों इस शोभा यात्रा की तरह ही भव्य राम दल व हनुमान दल निकाले जाते हैं, जो अपनी भव्यता की वजह से समूची दुनिया में मशहूर हैं. देश के दूसरे हिस्सों में दशहरे की शुरुआत नवरात्रि से होती है लेकिन संगम नगरी प्रयागराज में दशहरा उत्सव पितृ पक्ष की एकादशी के दिन से ही शुरू हो जाता है.