मेडिकेडेट ऑक्सीजन प्लांट की स्थापना के लिए मातृ-शिशु अस्पताल में तैयारी पूरी, 150 मरीजों को मिल सकेगी ऑक्सीजन
दुर्ग, 23 अगस्त । कोरोना की तीसरी लहर से पहले जिला अस्पताल, सिविल अस्पताल सुपेला और चंदूलाल चंद्राकर मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन प्लांट की स्थापना की जा रही है। प्लांट लगने से जिला अस्पताल परिसर स्थित मातृ-शिशु अस्पताल में प्रति मिनट 960 लीटर ऑक्सीजन की आपूर्ति होगी। प्लांट बनाकर तैयार करने वाली कंपनी द्वारा शिशु वार्ड के लगभग 100 बेड में पाइप लाइन बिछाने का काम किया जा रहा है। पिछले दिनों से लगातार ऑक्सीजन प्लांट स्थापित करने के लिए कार्य चल रहा था। दो दिन पहले ही ऑक्सीजन प्लांट लगाने के लिए टैंक के साथ ही अन्य उपकरण जिला अस्पताल पहुंचे थे।
जिला अस्पताल के सिविल सर्जन सह अस्पताल अधीक्षक डॉ पीआर बालकिशोर ने बताया, “पीएम केयर्स फंड की पहल पर लगभग एक करोड़ रुपए की लागत से डीआरडीओ ने ऑक्सीजन प्लांट लगाने की जिम्मेदारी ट्राइडेंट कंपनी को सौंपी थी। कंपनी से आए इंजीनियर दिन-रात काम में लगे थे। सोमवार को प्लांट करीब-करीब बनकर तैयार हो गया। कंपनी अब ट्रायल करने जा रही है। साथ ही ऑक्सीजन प्लांट को संचालित करने के लिए अस्पताल के स्टाफ को भी ट्रेनिंग दी जाएगी। प्लांट से मातृ-शिशु अस्पताल में बनाए गए चिल्ड्रेन वार्ड में ऑक्सीजन सप्लाई के लिए पाइप लाइन बिछाई जा चुकी है। डॉ. बालकिशोर ने बताया, पीएसए ऑक्सीजन जनरेशन प्लांट से एक मिनट में 960 लीटर ऑक्सीजन उपलब्ध होगी। तीसरी लहर से निपटने के लिए स्वास्थ्य विभाग व जिला प्रशासन के सहयोग से लगभग सभी प्रकार की तैयारियां की जा रही है। उन्होंने बताया, जिला अस्पताल के लिए जीएनएम बिल्डिंग के पास ही कोरोना की दूसरी लहर शुरु होने से पहले एक ऑक्सीजन प्लांट की स्थापना हो चुकी है। जिला प्रशासन और पीडब्लूडी द्वारा प्लांट को 24 घंटे बिजली की सुविधाएं प्रदान करने के लिए भी तैयारी की जा रही है। पीएसए प्लांट अस्पताल परिसरों में ही ऑक्सीजन तैयार कर देता है इससे सिलेंडर की जरूरत ही नहीं रह जाती है”।
हवा से ऑक्सीजन तैयार करेगा पीएसए प्लांट
इस तरह के प्लांट में प्रेशर स्विंग एड्जॉर्ब्शन (PSA) टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जाता है। यह इस सिद्धांत पर काम करता है कि उच्च दबाव में गैस सॉलिड सरफेस की तरफ आकर्षित होते हैं और अवशोषित हो जाते हैं। पीएसए प्लांट में हवा से ही ऑक्सीजन बनाने की अनूठी टेक्नोलॉजी होती है। इसमें एक चैम्बर में कुछ एड्जॉर्बेट डालकर उसमें हवा को गुजारा जाता है, जिसके बाद हवा का नाइट्रोजन एडजार्बेंट से चिपककर अलग हो जाता है और ऑक्सीजन बाहर निकल जाती है। इस कॉन्सेंट्रेट ऑक्सीजन की ही अस्पताल को आपूर्ति की जाती है। इसके लिए दबाव काफी उच्च रखना होता है। एड्जॉर्बेट मटेरियल के रूप में जियोलाइट, एक्टिवेटेड कार्बन, मॉलिक्यूलर सीव्स आदि का इस्तेमाल किया जाता है। तो जब किसी चैम्बर या वेसल से हवा को उच्च दबाव से गुजारा जाता है और उसमें जियोलाइट जैसे कुछ एड्जॉर्बेट डाल दिए जाते हैं तो वे ऑक्सीजन की जगह नाइट्रोजन को ज्यादा आकर्षित करते हैं। इस तरह नाइट्रोजन वेसल के पेड़ में चिपका रह जाता है और हवा में ऑक्सीजन बचा रहता है। इस तरह की प्रक्रिया कई बार करके ऑक्सीजन से भरी हवा को बाहर निकाल दिया जाता है।
साल भर में हो जाता है इतना खर्च –
पीएसए के 1,000 लीटर के एक प्लांट से हर दिन 100 से 150 मरीज की जरूरतों की पूर्ति हो सकती है। ऐसा माना जाता है कि आम दिनों में 40 आईसीयू और कुल 240 बेड वाले एक अस्पताल को हर महीने ऑक्सीजन पर 5 लाख रुपये खर्च करने होते हैं। यानी एक से डेढ़ साल के खर्च में ही कोई अस्पताल चाहे तो अपना कैप्टिव प्लांट लगा सकता है।