*मंजिल उन्हीं को मिलती है जिसके सपनों में जान होती है…हार मानकर लौट गया गांव, पढ़ाई छोड़कर खेतों में चलाने लगा ट्रेक्टर, पांचवें साल एग्जाम देने वाले डॉक्टर की पढ़िए सफलता की कहानी*

*मंजिल उन्हीं को मिलती है जिसके सपनों में जान होती है…हार मानकर लौट गया गांव, पढ़ाई छोड़कर खेतों में चलाने लगा ट्रेक्टर, पांचवें साल एग्जाम देने वाले डॉक्टर की पढ़िए सफलता की कहानी*


मंजिल उन्हीं को मिलती है जिसके सपनों में जान होती है…हार मानकर लौट गया गांव, पढ़ाई छोड़कर खेतों में चलाने लगा ट्रेक्टर, पांचवें साल एग्जाम देने वाले डॉक्टर की पढ़िए सफलता की कहानी

 

भिलाई नगर 21 जनवरी । बचपन से कुछ अलग बनने की चाहत रखने वाले गरियाबंद जिले के छोटे से गांव कुरूद के डॉ. श्याम किशोर साहू आज अपने क्षेत्र में किसी पहचान के मोहताज नहीं है। कहते हैं सफलता अपने साथ ढेर सारे संघर्ष भी लेकर आती है। कुछ ऐसा ही हुआ जब डॉ. श्याम ने डॉक्टर बनने की ठानी। गांव के सरकारी स्कूल में पढऩे वाले श्याम को तब ये नहीं पता था कि डॉक्टर बनने के लिए कौन-कौन सी परीक्षाएं देनी पड़ती है। किसी तरह जानकारी जुटा जब मेडिकल एंट्रेस की तैयारी करने भिलाई पहुंचे तो यहां स्टूडेंट के भीड़ में कहीं खो गए। वक्त गुजरने के साथ जब खुद को संभालकर पढ़ाई शुरू की तो एक के बाद एक फेल्यिर ने उनका मनोबल तोड़ दिया। एक वक्त ऐसा भी आया जब उन्होंने असफलताओं के आगे घुटने टेक दिए। मेडिकल एंट्रेंस की तैयारी छोड़कर वापस गांव लौटकर खेतों में ट्रेक्टर चलाने लगे। टीचर पिता बेटे की ये मायूसी देखकर खुद को समझा नहीं पा रहे थे। ऐसे में उन्होंने बेटे से कहा कि एक बार फिर कोशिश करो। क्या पता इस बार तुम्हारी मेहनत से किस्मत की लकीरें बदल जाए। डॉ. श्याम ने पिता की बात का मान रखते हुए पांचवीं बार मेडिकल एंट्रेंस दिया। साल 2014 में ऑल इंडिया पीएमटी क्वालीफाई करके बिलासपुर मेडिकल कॉलेज पहुंच गए। अपने कठिन सफर की यादें ताजा करते हुए डॉ. श्याम कहते हैं कि मंजिल उन्हीं को मिलती है जिनके सपनों में जान होती है।

12 वीं बाद नहीं पता था कैसे करते हैं मेडिकल एंट्रेंस की तैयारी

डॉ. श्याम ने बताया कि उनकी 12 वीं तक की स्कूलिंग गांव के हिंदी मीडियम सरकारी स्कूल से हुई है। यहां ये तो बताया गया कि डॉक्टर बनने के लिए बायो लेना पड़ता है पर किसी ने ये नहीं बताया कि कौन-कौन सी परीक्षाएं देनी पड़ती है। ऐसे में 12 वीं के बाद एक साल तक यही पता करने में निकल गया कि आखिर मेडिकल एंट्रेस होता क्या है और इसकी तैयारी कैसे करते हैं। पिता और बड़ी बहन ने किसी तरह जानकारी जुटाई और अगले साल पढऩे के लिए भिलाई भेज दिया। गांव से निकलकर भिलाई जैसे शहर में खुद को एडजेस्ट करना काफी मुश्किल रहा। यहां की दौड़ती भागती जिंदगी और अंग्रेजी मीडियम में पढऩे वाले एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी बच्चों की भीड़ देखकर डर गया। धीरे-धीरे खुद को याद दिलाया कि आखिर भिलाई किस मकसद से आया हूं। कोचिंग में अपने जगह बनाना शुरू किया। शुरूआत में बेसिक पूरा जीरो था। इसलिए फिजिक्स, कैमेस्ट्री और बायो तीनों की मेन सब्जेक्ट की जीरो से पढ़ाई शुरू करनी पड़ी। जब पैटर्न समझ आया तब सीजी पीएमटी की जगह ऑल इंडिया पीएमटी और नीट आ गया। उस दौरान फिर से सिलेबस को नए सिरे से पढऩा काफी कठिनाइयों से भरा रहा।

पहले हुई झिझक, बाद में हर डाउट पूछता था सचदेवा के टीचर्स से

सचदेवा कोचिंग से मेडिकल एंट्रेंस की तैयारी करने वाले डॉ. श्याम ने बताया कि शुरुआत में उन्हें डाउट पूछने में बहुत ज्यादा झिझक होती थी। सचदेवा के टीचर्स इतने फ्रेंडली और मोटिवेट करते हैं कि ये झिझक भी ज्यादा दिन टिक नहीं पाई। बेसिक कमजोर होने के कारण बाकी बच्चों से ज्यादा मेहनत करनी पड़ी और इस काम में सचदेवा के टीचर्स ने काफी सपोर्ट किया। सचदेवा के डायरेक्टर चिरंजीव जैन सर की मोटिवेशन और काउंसङ्क्षलग क्लास मैं कभी मिस नहीं करता था। एक दिन उन्होंने कहा कि इंसान चाहे तो अपनी मेहनत से किस्मत भी बदल सकता है। ये बात मन में उसी वक्त बैठ गई थी। चार साल तक लगातार असफलता ने तोड़ दिया था। तब सचदेवा के टीचर्स ने मोटिवेट करते हुए टेस्ट सीरीज ज्वाइन करके एक और कोशिश की