मुन्नाभाई एमबीबीएस फिल्म देखकर हुआ मोटिवेट, मन में जागी डॉक्टर बनने की इच्छा, पहले ड्रॉप इयर में कैमेस्ट्री, फिजिक्स निकल जाता था दिमाग के ऊपर से

मुन्नाभाई एमबीबीएस फिल्म देखकर हुआ मोटिवेट, मन में जागी डॉक्टर बनने की इच्छा, पहले ड्रॉप इयर में कैमेस्ट्री, फिजिक्स निकल जाता था दिमाग के ऊपर से


मुन्नाभाई एमबीबीएस फिल्म देखकर हुआ मोटिवेट, मन में जागी डॉक्टर बनने की इच्छा, पहले ड्रॉप इयर में कैमेस्ट्री, फिजिक्स निकल जाता था दिमाग के ऊपर से

भिलाईनगर 31 जुलाई । राजनांदगांव जिला मुख्यालय से लगभग 60 किमी. दूर बेहद पिछड़े हुए गांव गोरटोला का बेटा अपनी कड़ी मेहनत से आज डॉक्टर बन गया है। गांव से निकलकर एमबीबीएस की सीट हासिल करने का तक सफर किसी फिल्मी स्टोरी से कम नहीं है। बचपन से मूवी देखने के शौकीन डॉ. दिवाकर भुआर्य को लगता था कि जिंदगी भी फिक्चर की तरह आसान होती है। जब मेडिकल एंट्रेस की तैयारी शुरू की तो पहले ड्रॉप इयर में फेल्यिर का सामना करके वे पूरी तरह से टूट गए। मैं इतना हार गया था कि गिवअप करने का सोच लिया। गनीमत रही मेरी असफलता ने पैरेंट्स को टूटने नहीं दिया, उन्होंने न सिर्फ मुझे संभाला बल्कि आगे बढ़कर एक और ड्रॉप लेने का हौसला दिया। दूसरे ड्रॉप में किस्मत और मेहनत दोनों काम आई और सीजी पीएमटी क्वालिफाई करके रायपुर मेडिकल कॉलेज की सीट हासिल करने में कामयाब रहा। डॉ. दिवाकर ने बताया कि उन्हें बचपन से बायो  में दिलचस्पी थी, लेकिन डॉक्टर बनना है ये तय हुआ मुन्नाभाई एमबीबीएस मूवी देखकर। सच बताऊं इस फिल्म को देखकर मैं अंदर से इतना इंस्पायर हुआ कि मन ही मन ठान लिया अब डॉक्टर बनकर लोगों की सेवा करूंगा। माता-पिता को भी जब मैंने डॉक्टर बनने की इच्छा जाहिर की तो उन्होंने भी लक्ष्य तक पहुंचने में भरपूर सहयोग किया। 

मेडिकल एंट्रेस के बारे में नहीं थी ज्यादा जानकारी

डॉ. दिवाकर ने बताया कि उनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव के स्कूल से हुई। थोड़ी समझ आई तो जवाहर नवोदय का एग्जाम देकर वहां के लिए सलेक्ट हो गया। 12 वीं बोर्ड तक की पढ़ाई डोंगरगढ़ नवोदय विद्यालय से की। 11 वीं में जब विषय चयन की बारी आई तो मैंने बायो लिया। उस वक्त सिर्फ इतना पता था कि डॉक्टर बनने के लिए कोई एग्जाम देना पड़ता है। बाकी अन्य मेडिकल एंट्रेस के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। 12 वीं बोर्ड के बाद पहली बार मेडिकल एंट्रेस दिया लेकिन उसमें रैंक इतना पीछे आया जिसे देखकर यकीन ही नहीं हुआ। टीचर्स ने कहा कि ड्रॉप लेकर भिलाई में तैयारी करो। मैं किसी तरह पैसों का इंतजाम करके भिलाई के सचदेवा कोचिंग में पढऩे के लिए पहुंच गया। यहां का माहौल देखकर पहले साल तो खुद को बाकी बच्चों के लेवल में लाने में ही निकल गया। फिजिक्स, कैमेस्ट्री दोनों ही मेन विषय बेहद कमजोर थे। जिस पर काफी मेहनत करनी पड़ी। 

सचदेवा में पहुंचकर मिला सही मार्गदर्शन

दोस्तों और पेपर कटिंग्स से जानकारी जुटा सचदेवा पहुंंचे डॉक्टर दिवाकर ने बताया कि गांव के बच्चे सही गाइडलाइन नहीं मिलने के कारण भटक जाते हैं। यही मेरे साथ भी हुआ। पहले साल क्या पढऩा है, कैसे पढऩा है, किस तरह से रूटीन मेनटेन करना है इन्हीं बातों में उलझा रहा। जब दूसरे साल सचदेवा कोचिंग ज्वाइन किया तब यहां के टीचर्स के सही मार्गदर्शन की बदौलत धीरे-धीरे खुद में सुधार महसूस करने लगा। फस्र्ट ड्रॉप में सिर्फ पढ़ता गया जिसके कारण बोरिंग सा महसूस होने लगा था। सचदेवा के टीचर्स ने समझाया कि सिर्फ पढऩा काफी नहीं है पढऩे के साथ सब्जेक्ट को इंज्वाय भी करना है। इसलिए बीच-बीच में ब्रेक लेकर खुद को रिफ्रेश करो। यहां के टेस्ट सीरिज में डायरेक्टर चिरंजीव जैन की मोटिवेशनल स्पीच सुनकर और भी ज्यादा रिफ्रेश हो जाता था। वो हमेशा कहते हैं कि जीतने वाले कुछ नया या अलग नहीं करते बस अपनी उन गलतियों को सुधार लेते हैं जो उन्हें आगे बढऩे से रोकती है। 

सिलेबस ध्यान में रखकर पढ़ें

नीट की तैयारी कर रहे स्टूडेंट्स से कहना चाहंूगा कि सारे बुक्स पढऩे की बजाय केवल सिलेबस को ध्यान में रखकर चुनिंदा बुक्स ही पढऩा चाहिए। कोशिश करें कि कोई ऐसा संस्थान ज्वाइन करें जहां एक ही छत के नीचे सभी विषय और सिलेबस की पढ़ाई हो जाए। दिनभर की भाग दौड़ में शरीर और मन दोनों थक जाता है। जब आपको लगे कि आपसे नहीं हो रहा तो उसे छोडऩा नहीं है बल्कि उसके साथ तब तक जूझते रहना है जब तक वो बात आपके दिमाग में फिट न हो जाए। अपना कॉन्फिडेंस लेवल हमेशा हाई रखना है।