एआईईईई का सलेक्शन छोड़कर लिया मेडिकल एंट्रेस के लिए ड्रॉप, दोस्तों को इंजीनियरिंग करते देख होती थी निराशा, टीचर्स और पैरेंट्स ने काउंसलिंग के बाद मिली सफलता

एआईईईई का सलेक्शन छोड़कर लिया मेडिकल एंट्रेस के लिए ड्रॉप, दोस्तों को इंजीनियरिंग करते देख होती थी निराशा, टीचर्स और पैरेंट्स ने काउंसलिंग के बाद मिली सफलता


एआईईईई का सलेक्शन छोड़कर लिया मेडिकल एंट्रेस के लिए ड्रॉप, दोस्तों को इंजीनियरिंग करते देख होती थी निराशा, टीचर्स और पैरेंट्स ने काउंसलिंग के बाद मिली सफलता

भिलाईनगर 26 मई । . बायो-मैथ्स लेकर पढऩे वाली भिलाई की डॉ. अंकिता बोधनकर को स्टूडेंट लाइफ में ये सोचकर काफी अच्छा लगता था कि किसी मरते हुए इंसान की धड़कन को फिर से वापस अगर कोई ला सकता है तो वो है डॉक्टर। ये सोच धीरे-धीरे मन-मस्तिष्क पर हावी होती चली गई। 12 वीं बोर्ड के बाद एआईईईई में सलेक्शन होने के बाद भी डॉ. अंकिता ने एनआईटी जैसे संस्थान में मिल रहे इंजीनियरिंग की सीट छोड़ दिया। एक साल ड्रॉप लेकर मेडिकल एंट्रेस की तैयारी की। साल 2012 में कर्नाटका पीएमटी क्वालिफाई करके मेडिकल कॉलेज पहुंच गई। डॉ. अंकिता कहती है कि जब मेडिकल एंट्रेस की तैयारी शुरू की तब बाकी दोस्तों को अच्छे-अच्छे इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ता देख एक बार मन में निराशा हावी हो गई थी। मन ही मन ये सोचने लगी थी कि कहीं मैंने ड्रॉप लेकर कोई बड़ी गलती तो नहीं कर दी। कुछ दिनों तक इसी ख्याल ने सोने नहीं दिया बाद में जब टीचर्स और पैरेंट्स ने काउंसलिंग की तब जाकर दोबारा पढ़ाई में मन लगा पाई। मेरा मानना है कि किसी भी बड़े एग्जाम को क्वालिफाई करने वाले स्टूडेंट की एक न एक बार काउंसलिंग बेहद जरूरी है। कई बार बच्चे बेवजह की बातों में आकर बेहतर करते हुए भी अपने लक्ष्य से भटक जाते हैं। 

बायो और कैमेस्ट्री में करनी पड़ी दोगुनी मेहनत

डॉ. अंकिता ने बताया कि मैथ्स-बायो बैकग्राउंड होने के बाद भी उन्हें शुरूआत में बायो और कैमेस्ट्री में खासी मेहनत करनी पड़ी। बायो के ज्यादातर स्टूडेंट को फिजिक्स डरावना लगता है पर मेरे साथ ऐसा नहीं था। फिजिक्स एक स्ट्रांग प्वाइंट था। 12 वीं बोर्ड के बाद एक साल ड्रॉप लेकर घर मैं बैठना सच में बहुत ज्यादा फ्रसटेशन से भरा हुआ था। दूसरी तरफ खुद को समझाती कि एमबीबीएस की सीट मिल जाएगी तो ये ड्रॉप भी खुशी में बदल जाएगी। हर दिन खुद को मोटिवेट करती थी कि ताकि क्लास रूम में बाकी स्टूडेंट्स के साथ कॉम्पिटिशन कर सकूं। 

जैन सर की मोटिवेशनल वीडियो देखकर होती थी मोटिवेट

डॉ. अंकिता ने बताया कि साल 2012 में भिलाई का सचदेवा कॉलेज मेडिकल एंट्रेस की तैयारी के लिए पूरे प्रदेश में फेमस था। इसलिए मैंने तैयारी के लिए सचदेवा को ही चुना। पहली बार सचदेवा के क्लास में गई तो यहां के स्टडी पैटर्न ने मुझे काफी प्रभावित किया। स्कूल और कोचिंग की पढ़ाई में जमीन आसमान का अंतर होता है। कम समय में ज्यादा सिलेबस कवर करना भी एक चैलेंज होता है। सचदेवा के टीचर्स इस काम में माहिर हैं। उन्होंने हर विषय की ऐसी तैयारी कराई कि रिविजन के लिए काफी समय मिल गया। बीच-बीच में सचदेवा के डायरेक्टर चिरंजीव जैन सर का वीडियो लेक्चर हमें दिखाया जाता था। उनकी प्रेरक कहानियां और बातें सुनकर एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार अपने आप ही हो जाता था। सचदेवा की एक बात बहुत अच्छी लगती थी यहां के टीचर्स 24 घंटे आपके सवालों का जवाब देने के लिए तैयार रहते थे। फोन कॉल पर भी वे डाउट क्लीयर कर देते थे। सवाल पूछने का हैबिट यहां डेवलप हुआ। डाउट क्लास में कन्फ्यूजन भी क्लियर हो जाता था।

न्यू टॉपिक न पढ़े

जो बच्चे नीट की तैयारी कर रहे हैं उनसे कहना चाहूंगी कि एग्जाम से ठीक पहले किसी भी तरह का न्यू टॉपिक पढऩे की कोशिश न करें। इससे कन्फ्यूजन होता है। साथ की बाकी पढ़े हुए विषयों की तैयारी को लेकर भी मन में डाउट आने लगता है। कोशिश करें की अर्ली मॉर्निंग उठकर पढ़े। रिविजन के लिए अलग से टाइम निकाले। बिना रिविजन के एग्जाम में अच्छे रिजल्ट की उम्मीद नहीं की जा सकती है। सबसे महत्वपूर्ण हमेशा पॉजिटिव रहें। अपने हेल्थ का ख्याल रखें। कई बार एग्जाम से ठीक पहले कई स्टूडेंट बीमार हो जाते हैं। इसलिए अपनी सेहत को भी अच्छा रखना जरूरी है।