भाषा संस्कृति की संचारक, सभी भाषा की अस्मिता का सम्मान करें – प्रोफेसर बलदेव भाई शर्मा, साईंस कालेज, दुर्ग में भारतीय भाषायें एवं उनकी एकात्मता पर कार्यशाला आयोजित

भाषा संस्कृति की संचारक, सभी भाषा की अस्मिता का सम्मान करें – प्रोफेसर बलदेव भाई शर्मा, साईंस कालेज, दुर्ग में भारतीय भाषायें एवं उनकी एकात्मता पर कार्यशाला आयोजित


दुर्ग, 12 दिसंबर। भाषा संस्कृति की संचारक है, हम सभी को भाषा की अस्मिता का सम्मान करना चाहिए। आज का कार्यकम भाषा, उत्सव की तरह प्रतीत हो रहा है। ये उद्‌गार कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, रायपुर के कुलपति प्रोफेसर बलदेव भाई शर्मा ने आज व्यक्त किये। श्री शर्मा शासकीय विश्वनाथ यादव तामस्कर स्नातकोत्तर स्वशासी महाविद्यालय, दुर्ग के राधाकृष्णन हॉल में अपर संचालक, उच्चशिक्षा, दुर्ग संभाग द्वारा आयोजित भारतीय भाषायें एवं उनकी एकात्मता पर कार्यशाला में अध्यक्ष एवं मुख्य वक्ता के रूप में अपने विचार व्यक्त कर रहे थे।

श्री शर्मा ने कहा कि भाषाओं के नाम पर किसी भी प्रकार का विभेद नही होना चाहिए। देश के किसी भी कोने के किसी भी भाषा को बोलने वाले हर व्यक्ति हमें गले लगाना चाहिए। तमिल के प्रसिध्द कवि सुब्रमण्यम स्वामी ने पूरे देश को एकता के सूत्र में पिरोने का कार्य किया है। उनकी नजर में हर भाषा राष्ट्र भाषा है। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि दुर्ग के संभाग आयुक्त एवं हेमचंद यादव विश्वविद्यालय, दुर्ग के कुलपति सत्यनारायण राठौर ने कहा कि प्रत्येक भारतीय भाषा समृध्द है। कई भाषाओं के शब्दों में समानता है। समूचे विश्व को भारतीय भाषाओं के महत्व का एहसास है। अपना दीया खुद बनो, कहावत को चरित्रार्थ करने की सलाह देते हुए कुलपति श्री राठौर ने सभी भाषाओं का सम्मान करने का आग्रह किया।

महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. अजय कुमार सिंह ने अपने स्वागत भाषण में सभी उपस्थित अतिथियों एवं प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए कहा कि प्रत्येक भाषा का अपना महत्व है, उसे यदि उचित रूप से उच्चारित किया जाये, तो उसका अलग आनंद है। हमको प्रत्येक भाषा एवं उस भाषा को बोलने वाले का सम्मान करना चाहिए। संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भाषायें हैं। डॉ. अजय सिंह ने भारतेन्दु हरिशचंद्र की कविता का भी उल्लेख किया। भाषा और संस्कृति की जितनी विविधता भारत में पायी जाती है, उतनी अन्य देशों में दुर्लभ है। भारतीय भाषायें प्रायः सहोदर भाषायें है। भारत की सभी भाषायें समाज को एकता के सूत्र में जोड़ने का कार्य करती है। हमें अपनी भाषायी विविधता पर गर्व होना चाहिए। कार्यक्रम के संयोजक अपर संचालक, उच्चशिक्षा दुर्ग संभाग डॉ. राजेश पाण्डेय ने विषय का प्रतिवेदन प्रस्तुत करते हुये कार्यशाला की प्रांसगिकता पर विस्तार से प्रकाश डाला। विभिन्न संस्मरणों के माध्यम से डॉ. पाण्डेय ने भाषायी, महत्व एवं उसके प्रभाव का विश्लेषण किया। डॉ. पाण्डेय ने कहा कि मातृभाषा में किया जाने वाला शोध कार्य अपेक्षाकृत अधिक आसान एवं प्रभावशाली होगा। केन्द्र सरकार द्वारा इंजीनियरिंग एवं मेडिकल की पढ़ाई भी हिन्दी भाषा में किये जाने संबंधी प्रयास आरंभ किये जा चुके है। डॉ. पाण्डेय ने कहा कि देश में प्रांतों की भाषा के आधार पर वर्गीकृत किये जाने का प्रयास सदैव किया जाता रहा हैं, परंतु हम सभी को मिलकर इसे विफल करना होगा।

कार्यक्रम में प्रबुध्द परिषद के प्रांत संयोजक अतुल नागले विद्या भारती के दीपक सोनी विभाग समन्वयक राद्यवेन्द्र नाथ मिश्रा विभाग प्रमुख दीपक यादव सह विभाग समन्वयक तथा शत्रुध्न देवांगन जिला समन्वयक भी उपस्थित थे।


शासकीय नवीन संगीत महाविद्यालय, दुर्ग के अतिथि प्राध्यापक गजेन्द्र यादव एवं छात्र-छात्राओं द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना एवं छत्तीसगढ़ के राज्य गीत की प्रस्तुति के साथ आरंभ हुये इस कार्यक्रम की संचालक इतिहास विभाग की डॉ. ज्योति धारकर ने भारतीय भाषायें एवं उनकी एकात्मता पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम में अतिथियों का स्वागत अपर संचालक, उच्चशिक्षा डॉ. राजेश पाण्डेय एवं साईंस कालेज, दुर्ग के प्राचार्य डॉ. अजय सिंह तथा वरिष्ठ प्राध्यापक डॉ. एस.एन. झा ने किया। कार्यक्रम के दौरान विभिन्न भाषाओं के प्राध्यापकों ने अपनी-अपनी भाषाओं में संक्षिप्त प्रस्तुति देते हुये भाषा का महत्व समझाया। इन प्रस्तुति देने वाले में संस्कृत में डॉ. जनेन्द्र दीवान, तमिल में डॉ. शीला विजय, कश्मीरी डोगरी में राहुल सिंह, पंजाबी में डॉ. मोनिका शर्मा, बंग्ला में डॉ. बिपाशा, भोजपुरी में डॉ. अम्बरीश त्रिपाठी, मैथिल में कुंदन कुमार यादव, तेलगू में डॉ. पी. वसंतकला, मराठी में श्रीमती नीलिमा सगदेव, सिंधी में डॉ. सीमा पंजवानी शामिल थे। कार्यशाला के दौरान सांस्कृतिक प्रस्तुतियां भी आयोजित हुई, जिनमें भिलाई नायर समाजम सेक्टर-8 के विद्यार्थियों द्वारा प्रस्तुत छत्तीसगढ़ी नृत्य, खालसा कालेज मालवीय नगर, दुर्ग द्वारा प्रस्तुत पंजाबी शस्त्रों के चलाने की विद्या पर आधारित गटका, गुजराती गरबा तथा मलयाली संस्कृति से जुड़ी प्रस्तुति शामिल थी। कार्यक्रम के अंत में सभी अतिथियों को स्मृति चिन्ह भेंटकर सम्मानित किया गया। राष्ट्रगीत के गायन एवं महाविद्यालय के वरिष्ठ प्राध्यापक डॉ. अभिनेष सुराना द्वारा दिए गए धन्यवाद ज्ञापन के साथ कार्यक्रम समाप्त हुआ। कार्यक्रम के दौरान दुर्ग जिले के समस्त महाविद्यालयों के प्राचार्य एवं बड़ी संख्या में प्राध्यापकगण उपस्थित थे।