मन में ठान लिया था बनूंगा तो डॉक्टर नहीं तो बेचूंगा मूंगफली, बीएएमएस की काउंसलिंग छोड़कर की एमबीबीएस की तैयारी, आज सर्जन बनकर दे रहें लोगों को नई जिंदगी
भिलाई नगर 28 अप्रैल । कोरिया जिले के चिरमिरी से निकलकर रायपुर पढऩे पहुंचे डॉ. ताज मोहम्मद सिद्दकी को शुरुआत में बड़ा शहर एक जंगल की तरह लगता था। यहां के बच्चों का नॉलेज और तैयारी देखकर सोचता था कि क्या मैं कभी डॉक्टर बन पाऊंगा। अपने लोगों के लिए मन में जिज्ञासा और कुछ कर गुजरने की चाहत थी । इसलिए 12 वीं बोर्ड के बाद दो साल ड्रॉप लेकर तैयारी की और साल 2010 में सीजी पीएमटी क्वालिफाई कर लिया। ये कहानी उस स्टूडेंट की है जिसने मन में ठान लिया था कि अगर बनूंगा तो डॉक्टर नहीं तो सड़क पर मंूगफली बेचूंगा। कटक मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में बतौर सर्जन अपनी सेवाएं दे रहे डॉ. सिद्दकी ने बताया कि उनका बचपन सीमित संसाधनों के बीच गुजरा। 11 वीं तक तो पता भी नहीं था कि मेडिकल एंट्रेस जैसी कोई चीज होती है। 10 वीं बोर्ड में अच्छे पर्सेटेंज आए तो पिता जी ने अपने साथ काम करने वाले अंकल से गाइडलाइन लिया। उनके कहने पर ही
पिता जी ने मुझसे कहा कि अब तुम्हें डॉक्टर बनना है और उसी दिन से मेरा सफर शुरू हो गया। जिंदगी में कड़ी मेहनत आपके सारे सपने पूरे कर देती है। आज जब खुद को मान, सम्मान, प्रतिष्ठा, ऐशो आराम और गाड़ी, बंगला के बीच देखता हूं तो एक सुकून महसूस होता है। परिवार और खासकर पिता जी के प्रति एक अलग सम्मान मन में जागृत होता है, क्योंकि आज मैं जो कुछ भी हूं, सब उन्हीं की बदौलत हूं। एक समय ऐसा भी था जब मैं बीएएमएस करने के लिए राजी हो गया था। काउंसलिंग में लोगों की भीड़ देखकर वहां से लौट आया। पिता जी ने समझाते हुए कहा कि एक बार और कोशिश करो तुम एमबीबीएस डॉक्टर जरूर बनोगे और आज उनकी बात सौ फीसदी सही साबित हुई है।
कॉम्पिटिशन टफ था लेकिन मन में क्योरिसिटी हमेशा बनी रही
छोटे जगह से पढऩे के लिए शहर आया था यहां कॉम्पिटिशन तो बहुत टफ था लेकिन में मन में क्योरिसिटी हमेशा बनी रही। यही कारण था कि मैं इंटरवेल में भी कोचिंग के टीचर्स को डाउट पूछ-पूछकर परेशान करता था। एग्जाम के लिए एक-एक दिन काउंट करता था क्योंकि मैं अपना समय वेस्ट नहीं करना चाहता था। हमेशा खुद को पॉजिटिव रखता था। मन में फीलिंग आती थी मैं कर सकता हूं। शुरुआत में जब तैयारी शुरू की उस वक्त जूलॉजी बहुत टफ लगता था। बाकी सब्जेक्ट की तैयारी के लिए सौ फीसदी समय देता था। परिवार ने बहुत संघर्ष करके पढऩे के लिए शहर भेजा था इसलिए मन में किसी तरह की गिल्ट से बचने कड़ी मेहनत करता था। आज उसका परिणाम भी सबके सामने है। पहले मैं आंत को देख नहीं पाता था लेकिन जब पहली बार सर्जरी की तो खुद पर यकीन नहीं हो रहा था। इसलिए मां को कॉल करके बताया कि मैं सर्जन बन गया उनकी खुशी को कोई ठिकाना नहीं था।
सचदेवा में आकर मिला सही गाइडलाइन
मेडिकल एंट्रेस की तैयारी के लिए सचदेवा न्यू पीटी कॉलेज को चुनने वाले डॉ. सिद्दकी कहते हैं कि गाइडलाइन के अभाव में कई होनहार बच्चे अपने मंजिल तक नहीं पहुंच पाते हैं। मैं लक्की रहा कि समय रहते सचदेवा पहुंच गया। यहां के टीचर्स और खासकर डायरेक्टर चिरंजीव जैन सर की गाइडलाइन से काफी मदद मिली। जैन सर, क्लास के बाद बुलाकर अक्सर बोलते थे कि बेटा जी आप मेहनत कीजिए देखना परिणाम जरूर अच्छा आएगा। उनकी काउंसलिंग और मोटिवेशन से दूसरे ड्रॉप में काफी मदद मिली। पैरेंट्स को भी बुलाकर उन्होंने कई बार समझाया। यहां पढऩे का माहौल बहुत अच्छा है। मैं यहां के टीचर्स से क्लास के बाद भी डाउट पूछता था। टीचर्स भी बिना कुछ कहे सारे डाउट क्लीयर करते थे। सिलेबस के अनुरूप पढ़ाई और सलेक्टिव स्टडी मटेरियल सचदेवा को बाकी कोचिंग से खास बनाता है।
अपना बेस्ट दीजिए, रिजल्ट जरूर अच्छा आएगा
नीट की तैयारी करने वाले स्टूडेंट्स से कहना चाहता हूं कि आप अपना बेस्ट दीजिए। रिजल्ट जरूर अच्छा आएगा। इतनी मेहनत करिए कि खुद के अंदर कभी ये सोचकर गिल्ट न हो कि काश मैंने ठीक से कोशिश की होती। रिजल्ट क्या होगा ये सोचकर डरिए नहीं। जिस दिन आपने अपने डर पर काबू पा लिया उस दिन आप सफलता के और भी करीब पहुंच जाते हैं।