फेलियर को करता था इंज्वाय, हर सफलता देती थी आगे बढऩे की प्रेरणा हिंदी मीडियम स्कूल से पढ़कर किया एमबीबीएस और पीजी में टॉप पढ़िए आकाश की डॉक्टर बनने तक के सफलता की कहानी

फेलियर को करता था इंज्वाय, हर सफलता देती थी आगे बढऩे की प्रेरणा हिंदी मीडियम स्कूल से पढ़कर किया एमबीबीएस और पीजी में टॉप पढ़िए आकाश की डॉक्टर बनने तक के सफलता की कहानी


फेलियर को करता था इंज्वाय, हर सफलता देती थी आगे बढऩे की प्रेरणा हिंदी मीडियम स्कूल से पढ़कर किया एमबीबीएस और पीजी में टॉप पढ़िए आकाश के डॉक्टर बनने तक की सफलता की कहानी

भिलाईनगर 21 जुलाई। लिखने वाले लिख देते हैं टूटी कलम से भी अपनी किस्मत इस बात को दिल, दिमाग और जेहन में बिठाकर जांजगीर चांपा के हिंदी मीडियम स्कूल में पढऩे वाले आकाश ने इतनी मेहनत की कि आज वो देश के टॉप 10 में से एक लेडी हार्डी मेडिकल कॉलेज दिल्ली से एमबीबीएस के बाद पीजी की पढ़ाई कर रहे हैं। पढ़ाई के साथ समाज सेवा के प्रति आकाश का बचपन से झुकाव था। इसलिए दसवीं बोर्ड के बाद बायो लेकर डॉक्टर बनने की दिशा में आगे कदम बढ़ाया। डॉ. आकाश सिंह राणा कहते हैं कि पहला कदम हमेशा मुश्किल होता है। शुरूआत में ये तक पता नहीं था कि डॉक्टर बनने के लिए कौन-कौन सी परीक्षाएं देनी पड़ती है। बस एक जुनून था कि अगर जीवन में कुछ बनना है तो वो है डॉक्टर। इसी जुनून ने कारण ही पहली दो असफलताओं से सीख लेकर तीसरे अटेम्ट में सीजी पीएमटी क्वालिफाई कर पाया। रायपुर मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस करने के बाद फिलहाल पीजी की पढ़ाई कर रहा हूं। 

फेल होकर भी आता था मजा

डॉ. आकाश ने बताया कि वे एक मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखते हैं। बावजूद परिवार ने ड्रॉप के दो साल में कभी नहीं कहा कि कुछ दूसरा ट्राय करो। पहले अटेम्ट में तो फिजिक्स वीक होने के कारण अच्छे से पेपर नहीं दे पाया। दूसरे अटेम्ट में रैंक में सुधार हुआ और तीसरे अटेम्ट में क्वालिफाई। हर बार असफलता कुछ सीखाकर जाती थी इसलिए फेल होने पर निराशा की बजाय और हिम्मत बढ़ती थी। मेडिकल एंट्रेस की तैयारी के दौरान पढऩे में बहुत मजा आता था। कभी ध्यान ही नहीं गया कि अगर एमबीबीएस क्वालिफाई नहीं होगा तो क्या करूंगा। पापा हमेशा कहते थे कि चिंता मत कर सलेक्शन जरूर होगा। उनका विश्वास ही था जिसने मुझे सतत आगे बढऩे की प्रेरणा दी। 

अंग्रेजी नहीं बनी पढ़ाई में बाधा

हिंदी मीडियम, सीजी बोर्ड स्कूल से पढऩे वाले डॉ. आकाश ने बताया कि मेडिकल एंट्रेस में अंग्रेजी कभी बाधा नहीं बनी। शुरुआत से ही मैं हिंदी और अंग्रेजी दोनों को साथ-साथ लेकर पढ़ता था। क्योंकि जानता था कि भागने से नहीं बल्कि जूझने से काम बनेगा। सचदेवा के फैकल्टी का तो जवाब ही नहीं है। यहां टीचर्स हर कठिन चीज को भी इतने सरल तरीके से पढ़ाते हैं कि बच्चा चाहकर भी उस टॉपिक को भूल नहीं सकता। फिजिक्स में मेरा बेसिक कमजोर था, सचदेवा के टीचर्स से ही पढ़कर बेसिक मजबूत हुआ जो पीजी में भी काम आ रहा है। सचदेवा के डायरेक्टर चिरंजीव जैन सर की पर्सनाल्टी ऐसी है कि उनसे मोटिवेट हुए बिना कोई रह नहीं सकता। टेस्ट सीरिज और सेशन के बीच-बीच में वे बच्चों की पर्सनली काउंसलिंग करते थे। मेरी भी कई बार काउंसलिंग की, वे हमेशा कहते थे कि प्रेशर को हावी होने मत दो बल्कि प्रेशर की पावर का इस्तेमाल करो। 

एनसीईआरटी की किताबों को पढ़ें

एमबीबीएस और पीजी में गोल्ड मेडल हासिल करने वाले डॉ. आकाश कहते हैं कि आज के दौर में नीट की तैयारी के लिए एनसीईआरटी की किताबों से बेहतर कुछ नहीं है। कोचिंग का चुनाव भी जांच परखकर करें। वीक टॉपिक के साथ बाकी सब्जेक्ट की भी निरंतर पढ़ाई करें। पढऩे के साथ रिविजन बहुत जरूरी है। सबकुछ पढ़कर अगर रिविजन नहीं किया तो स्कोर पर काफी असर पड़ेगा। इसलिए टाइम टेबल बनाते वक्त रिविजन के लिए एक्सट्रा टाइम जरूर निकालें।