फटा लोवर देखकर चिढ़ाते थे, टेस्ट सीरिज में मिले इनाम के पैसे से पहली बार अपने लिए खरीदा कपड़ा, हिंदी मीडियम में पढ़कर भी नहीं कम होने दिया खुद का कॉन्फिडेंस, पढ़ें डॉ जानकी के सफलता की कहानी
भिलाई नगर 30 मई । छत्तीसगढ़ के कवर्धा जिले के पिछड़े गांवों में से एक ग्राम निंदापुर के रहने वाला जानकी बचपन से डॉक्टर बनना चाहता था। जिस गांव में सड़क नहीं वहां जान बचाने वाला डॉक्टर किसी भगवान से कम नहीं था। इसलिए जानकी ने तीसरी कक्षा में ही तय कर लिया था कि अगर गांव के लिए कुछ करना है तो कड़ी मेहनत से डॉक्टर बनना पड़ेगा। गरीब किसान का बेटा अपने इस सपने को लेकर गांव के स्कूल में पढ़ता चला गया। बचपन से होनहार रहे स्टूडेंट के सामने जब विषय चुनने की बारी आई तो सबने कहा तुम्हार गणित बहुत अच्छा है इसलिए तुम इंजीनियर ही बनना। जानकी के बाल मन में अपने दादा की वो तस्वीर सामने आ गई जब बीमार होने पर उन्हें अस्पताल पहुंचाने के लिए कीचड़ भरे रास्तों से गुजरना पड़ा। हालत ये थे कि कीचड़ में धसे चारपहिया गाड़ी को ट्रैक्टर से खींचकर शहर पहुंचाना पड़ा। अगर उस दिन थोड़ी देर हो जाती तो शायद दादा जी स्वर्ग सिधार जाते। इसलिए 11 वीं में बायो लेकर डॉक्टर बनने के पहले पड़ाव पर कदम रखा। गांव के स्कूल में ये बताने वाला भी कोई नहीं था कि आखिर डॉक्टर बनने के लिए कौन-कौन सी परीक्षाएं देनी पड़ती है। इसलिए आगे की पढ़ाई के लिए कवर्धा आ गया। यहां एक दिन अपने कोचिंग का प्रचार करने पहुंचे टीचर्स ने बताया कि मेडिकल एंट्रेस नाम की कोई चीज होती है। तभी से जानकी के मन में ये बात बैठ गई कि एक साल के अंदर मेडिकल एंट्रेस क्लीयर करना है। बोर्ड परीक्षा देने के बाद सीधे भिलाई आ गए। सालभर के ड्रॉप और कड़ी मेहनत ही थी कि हिंदी मीडियम, सीजी बोर्ड में पढऩे वाले स्टूडेंट ने साल 2015 में नीट क्वालिफाई करके इतिहास रच दिया। गांव और परिवार के पहले डॉक्टर बनकर आज डॉ. जानकीशरण चंद्रवंशी जरूरतमंद मरीजों की सेवा कर रहे हैं।
ग्रामीण परिवेश से होने के कारण ड्रॉप इयर में फेल होने से लगता था डर
डॉ. जानकी ने बताया कि एक साल का ड्रॉप लेकर वे पढऩे के लिए भिलाई तो आ गए थे लेकिन फेल होने का डर उन्हें बार-बार परेशान करता था। ऐसे में सचदेवा कोचिंग के डायरेक्टर चिरंजीव जैन सर ने कई बार मेरी पर्सनल काउंसलिंग की। उन्हें मुझ पर इतना भरोसा था कि पहले टेस्ट सीरिज में टॉप करते ही कह दिया कि तुम इस साल अच्छे रैंक से मेडिकल एंट्रेस क्लीयर करोगे। गांव से आकर भिलाई में पढऩे और यहां के माहौल में ढलने में थोड़ी दिक्कत हुई लेकिन धीरे-धीरे सब ठीक हो गया। मुझे आज भी याद है कई दोस्त फटी लोवर देखकर कहते कि कोई दूसरा ले ले। पैसों की तंगी के कारण हिम्मत नहीं होती। ऐसे में सचदेवा के टेस्ट सीरिज में टॉप करने के कारण पहली बार एक हजार रुपए का इनाम मिला। इसी इनाम के पैसे से लोवर लिया जिसे आज भी संभालकर रखा है।
सचदेवा के टीचर्स का मिला सबसे ज्याद सपोर्ट
डॉ. जानकी ने बताया कि उन्होंने जब कोचिंग करने की सोची तो उस वक्त सचदेवा काफी फेमस हुआ करता था। रिजल्ट अच्छा था इसलिए कॉम्पिटिशन भी काफी था। सचदेवा की क्लास में जब पहली बार पहुंचा तो यहां टीचर्स से मेंटली सपोर्ट मिला। जो चीजें समझ में नहीं आती उसे बार-बार मैं पूछता था फिर भी वो परेशान नहीं होते थे। सचदेवा की पढ़ाई की तारीफ के लिए शब्द नहीं है। क्या पढऩा है, कैसे पढऩा है, कैसे एग्जाम देना है इसकी गाइडेंस सचदेवा से बेहतर और कहीं नहीं मिल सकता। सचदेवा के डायरेक्टर चिरंजीव जैन सर ने हमेशा हौसला बढ़ाया। उनकी काफी उम्मीदें थी। जिसे पूरा करने की मैंने कोशिश की। काउंसलर के साथ ही वे पैरेंट्स की तरह हमेशा मेरे साथ खड़े रहे।
मेहनत करने से सब हो जाता है आसान
नीट की तैयारी करने वाले स्टूडेंट्स से यही कहना चाहूंगा कि मेहनत करने से सबकुछ आसान हो जाता है। ज्यादा स्ट्रेस लेकर पढ़ाई नहीं करनी है। खुद को ब्रेक भी देना है। मैं पढ़ाई के बीच-बीच में ब्रेक लेकर कभी घूमने तो कभी क्रिकेट मैच खेलने चला जाता था। जब रिफ्रेश होकर लौटता तो दोगुनी एनर्जी से पढ़ाई करता। अपना लक्ष्य हमेशा बड़ा रखना है। ताकि उस लक्ष्य तक पहुंचने की कोशिश भी बड़ी हो सके। खुद को कमतर नहीं आंकना है।