गांव के स्कूल से पढ़कर रखी अपनी सोच बड़ी, डॉक्टर के अलावा जीवन में नहीं रखा कोई दूसरा ऑप्शन, बीएससी की पढ़ाई छोड़कर लिया तीन साल ड्रॉप, आज हैं छत्तीसगढ़ के जाने-माने न्यूरो सर्जन
भिलाईनगर 18 सितंबर । पटवारी की नौकरी करने वाले पिता का ट्रांसफर होते रहता था, परिवार और बच्चों को लेकर पिता शहर दर शहर और गांवों में घूमते रहते।एक दिन विपरीत परिस्थिति में उन्हें महसूस हुआ कि घर में बेटा अगर डॉक्टर बन जाए तो परिवार के साथ समाज के लिए भी कुछ अच्छा कर पाएगा। इसलिए पिता ने बेटे से कहा अब तुम्हें जीवन में सिर्फ डॉक्टर बनना है। पिता की बात मानकर बेटे नरेश कुमार ने भी जी तोड़ मेहनत शुरू कर दी। ग्रामीण परिवेश के कारण 12 वीं के बाद जानकारी के अभाव में कंन्फ्यूज हो गए। इसी बीच पिता रोड एक्सीडेंट के कारण बिस्तर में आ गए। तब मजबूरी में नरेश को बीएससी ज्वाइन करना पड़ा। कहते हैं जिस चीज में दिल लग जाए उस सपने को कोई हालात छीन नहीं सकता। फिर क्या नरेश ने बीएससी की पढ़ाई बीच में छोड़ी और मेडिकल एंट्रेस की तैयारी शुरू कर दी। एक दो नहीं पूरे तीन साल बाद आखिरकार सीजी पीएमटी क्वालिफाई करके बिलासपुर मेडिकल कॉलेज पहुंच गए। कड़ी मेहनत की बदौलत पहले एमबीबीएस और बाद में पीजी करके आज छत्तीसगढ़ के जाने-माने न्यूरो सर्जन के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। बलौदाबाजार जिले के छोटे से गांव टुंडरा के रहने वाले डॉ. नरेश कुमार देवांगन कहते हैं कि जीवन में आगे बढऩे के लिए हमेशा अपनी सोच बड़ी रखनी चाहिए। अगर मैं अपने दोस्तों की तरह शिक्षाकर्मी की नौकरी ज्वाइन कर लेता तो आज शायद डॉक्टर नहीं बन पाता।
इंग्लिश में पढ़ाते थे सबकुछ निकल जाता था सिर के ऊपर से
डॉ. नरेश ने बताया कि जब पहली बार मैं कोचिंग पहुंचा तब इंग्लिश में पढ़ाई होती थी। मैं ठहरा हिंदी मीडियम और सीजी बोर्ड का स्टूडेंट कुछ पल्ले ही नहीं पड़ता था। कोचिंग में आधा साल तो क्या पढ़ा रहे हैं यही समझने में निकल गया। जब थोड़ा कॉन्फिडेंस आया तब पढ़ाई में मन लगा। मैं हमेशा से बैकबैंचर रहा हूं। क्लासरूम में भी डाउट पूछने में बहुत झिझक होती थी। कई बार मन में सवाल रहते हुए भी उसे पूछ नहीं पाता था तब दोस्त क्लास के बाद उस टॉपिक को समझाते थे। बेसिक कमजोर होने के कारण दूसरों बच्चों से ज्यादा मेहनत करनी पड़ी। तीनों ही विषयों की जीरो से पढ़ाई शुरू की। पहले अटेम्ट में नंबर कम आया लेकिन विश्वास हो गया कि थोड़ी और तैयारी करूंगा तो सलेक्शन हो जाएगा। इसलिए दूसरा और तीसरा ड्रॉप लेने की हिम्मत जुटाई। साल 2006 में सीजी पीएमटी क्वालिफाई किया।
सचदेवा के टेस्ट सीरिज से बढ़ा कॉन्फिडेंस
तीनों साल कोचिंग के लिए सचदेवा कॉलेज भिलाई को चुनने वाले डॉ. नरेश ने बताया कि यहां के टेस्ट सीरिज से खुद के ऊपर कॉन्फिडेंस आया। भले ही कोचिंग में मैं बैकबैंचर था लेकिन सचदेवा के टीचर्स की नजर हमेशा मुझ पर रहती थी। वे क्लासरूम में हर बच्चे पर बराबर फोकस करते हैं, चाहे बच्चा आगे बैठे या फिर पीछे। बीच-बीच में सचदेवा के डायरेक्टर चिरंजीव जैन का मोटिवेशनल क्लास अपने आप में बहुत इंटरेस्टिंग रहता था। उनकी छोटी-छोटी कहानियां जीवन और सफलता का सार समझाने वाली होती थी। टेस्ट सीरिज से सेल्फ असेसमेंट का मौका मिलता था क्योंकि सचदेवा के अलावा बाकी कोचिंग से भी बच्चे टेस्ट दिलाने आते थे। ऐसे में तैयारी कितनी है इसका भी पता चल जाता था। फिजिक्स और कैमेस्ट्री पढ़ाने में यहां के टीचर्स को महारत हासिल है। फिजिक्स का पी भी नहीं जानने वाला स्टूडेंट इजी ट्रिक्स से फिजिक्स को इंज्वाय करने लगता है।
सेकंड ऑप्शन नहीं रखना चाहिए
नीट की तैयारी कर रहे स्टूडेंट्स से कहना चाहूंगा कि जब आप मेडिकल एंट्रेस की तैयारी कर रहे हो तब कभी भी खुद के लिए सेकंड ऑप्शन नहीं रखना चाहिए इससे पढ़ाई में फोकस नहीं हो पाताआधा ध्यान इसी बात में रहता है कि ठीक है मेडिकल कॉलेज की सीट नहीं मिली तो बीएएमएस या फिर डेंटल से काम चला लेंगे। ऐसी थिकिंग के साथ नीट कभी क्वालिफाई नहीं किया जा सकता। एक सोच में अडिग रहकर उसी सोच के साथ आगे बढऩा चाहिए।