🟦 भारतीय संस्कृति के संयुक्त परिवार की अनूठी मिसाल
🟦 21वीं सदी से ज्वाइंट फैमिली का कांसेप्ट जो हम भूलते जा रहे
सीजी न्यूज आनलाईन डेस्क, 17 नवंबर। आज हम भारतीय संस्कृति के एक ऐसे अद्भुत परिवार से आप सभी का परिचय करवा रहे हैं जो इन दिनों सोशल मीडिया पर छा गया है। हम भारतीयों ने 21वीं सदी की शुरुआत में संयुक्त परिवार के जिस कॉन्सेप्ट को खो दिया है उसी पर आधारित और हिट यह जानकारी सचमुच आज नेम फेम के सारे रेकार्ड तोड़ रही है।
इस परिवार की चार पीढ़ियां एक साथ, एक घर में ही रहती हैं। परिवार की महिला सदस्यों का कहना है कि शुरुआत में वो परिवार में सदस्यों की संख्या से डरती थीं लेकिन अब वो इसमें घुल मिल गई हैं। इस संयुक्त परिवार में 72 सदस्य हैं, जो छत के नीचे हंसी-खुशी रहते हैं। आपको जानकर हैरानी भी होगी कि इस दोईजोडे़ परिवार में 1000 से 1200 रुपये तक की सब्जियों की खपत प्रतिदिन होती है। महाराष्ट्र के सोलापुर का यह परिवार अपनी एकजुटता और पारिवारिक प्रेम की वजह से इन दिनों सुर्खियों में है। इस संयुक्त परिवार में 72 सदस्य हैं, जो कि एक छत के नीचे हंसी-खुशी रहते हैं। इनके यहां 10 लीटर दूध एक दिन में लग जाता है। मूल रूप से कर्नाटक से आने वाला दोईजोडे परिवार लगभग 100 साल पहले सोलापुर आया और यहीं का रह कर हो गया। इस व्यापारी परिवार की चार पीढ़ियां एक साथ, एक घर में ही रहती है। परिवार की महिला सदस्यों का कहना है कि शुरुआत में वो परिवार में सदस्यों की संख्या से डरती थीं। लेकिन अब वो इसमें घुल मिल गई हैं। ट्विटर पर @Ananth_IRAS यूजर ने इस परिवार का विडियो शेयर किया है। इस वीडियो को बीबीसी ने शूट किया है। परिवार के एक सदस्य अश्विन दोईजोडे कहते हैं- ‘हमारा इतना बड़ा परिवार है कि हमें सुबह और शाम मिलाकर 10 लीटर दूध की जरूरत होती है. हर दिन खाने में लगभग 1200 रुपये की सब्जियां लग जाती हैं। नॉनवेज खाना इससे तीन से चार गुना अधिक महंगा पड़ता है। हम साल भर का चावल, गेहूं और दाल खरीदते हैं। करीब 40 से 50 बोरी, हमें इतनी बड़ी मात्रा की आवश्यकता होती है, इसलिए हम थोक में खरीदते हैं क्योंकि यह थोड़ा किफायती होता है। संयुक्त परिवार की बहू नैना दोईजोडे कहती हैं- इस परिवार में पैदा हुए और पले-बढ़े लोग आसानी से रहते हैं लेकिन जो महिलाएं इसमें शादी कर आई हैं, उन्हें शुरू में थोड़ा मुश्किल होती है। शुरुआत में मुझे इस परिवार के संदर की संख्या से डर लगता था लेकिन सबने मेरी मदद की। मेरी सास, बहन और देवर ने मुझे घर में एडजस्ट करने में मदद की। अब सबकुछ सामान्य इस परिवार के बच्चे आपस में ही एन्जॉय करते हैं। उन्हें खेलने कूदने के लिए मोहल्ले के दूसरे बच्चों के साथ नहीं जाना पड़ता। परिवार की युवा सदस्य अदिति दोईजोडे कहती हैं- ‘जब हम बच्चे थे, तो हमें कभी खेलने के लिए बाहर नहीं जाना पड़ता था। हमारे पास परिवार के इतने सारे सदस्य हैं कि हम आपस में ही खेल लेते थे। इसने हमें किसी और के साथ बात करने के लिए काफी हिम्मती बनाया है। इतने सारे लोगों को एक साथ रहते देखकर मेरे दोस्त बहुत खुश होते हैं।