अंतरिक्ष में लंबे समय तक रहने से अंतरिक्ष यात्रियों को गुरुत्व की आदत नहीं रह जाती है. इसके अलावा उन्हें सेहत संबंधी समस्याएं भी पैदा हो जाती हैं. जिनकी वजह से उनका शरीर भी पृथ्वी पर लौटने पर उनका उस तरह से साथ नहीं देता जैसा पृथ्वी पर देता था और उन्हें चलने में परेशानी होती है.

अंतरिक्ष में बहुत सारे दिन गुजारने के बाद जब अंतरिक्ष यात्री पृथ्वी पर लौटते हैं तो उन्हें चलने में बहुत ज्यादा परेशानी होती है. वे चलना ही भूल चुके होते हैं. वहीं बीमारी या दुर्घटना के कारण कभी लंबे समय तक बिस्तर पर रहने के बाद इंसान चलना नहीं भूलता है और जल्दी ही चलने लगता है. लेकिन अंतरिक्ष यात्रा के बाद ऐसा नहीं है. अंतरिक्ष यात्रियों को पृथ्वी पर वापस आने के बाद खासी समस्याओं का सामना करना पड़ता है. इस पर वैज्ञानिको ने गहन अध्ययन किए हैं और अब भी कर रहे हैं. इन अध्ययनों में उन्होंने कुछ खास वजह पाई हैं जिससे अंतरिक्ष यात्रियों को पृथ्वी पर लौटने पर चलने में खासी परेशानी होती है.

दरअसल इंसान का शरीर अंतरिक्ष के चरम हालात को झेलने में सक्षम नहीं है. वहां गुरुत्व का अभाव अंतरिक्ष यात्रियों की सेहत पर बहुत ज्यादा दुष्प्रभाव डालता है और कम लोग यह जानते हैं कि सबसे बड़ा असर हड्डियों और मांसपेशियों पर होता है. यही वजह है कि जब अंतरिक्ष यात्री पृथ्वी पर लौटते हैं तो आमतौर यही देखने को मिलता है कि उन्हें स्ट्रैचर पर या किसी कुर्सी पर ही ले जाया जाता है. वे चलते हुए नहीं दिखते हैं.

अंतरिक्ष में सूक्ष्म गुरुत्व का महौल होता है यानि वहां अंतरिक्ष यात्री पृथ्वी की तुलना में 89 फीसद कम गुरुत्व बल महसूस करते हैं. लेकिन इसकी वजह से वे हर समय भारहीनता महसूस करते हैं. इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में भी यह हाल होता है और यात्री हमेशा तैरते रहते हैं. गुरुत्व के अभाव में उनकी मांसपेशियों और हड्डियों का ज्यादा श्रम करने की जरूरत नहीं होती है.

इन हालात में समय के साथ अंतरिक्ष यात्रियों को मांसपेशियों और हड्डियों के भार की हानि होने लगती है. कूल्हे, पैर और रीढ़ की हड्डियां कमजोर हो जाती है, कैल्शियम की कमी उन्हें ज्यादा कमजोर कर देती है और पृथ्वी पर आने पर उनके चोटिल होने की संभावना भी बहुत ज्यादा हो जाती है. हड्डियों के अलावा पैर और बाकी शरीर की मांसपेशियां भी कमजोर हो जाती हैं इससे भी धरती –पर लौटने के बाद चलने में खासी परेशानी होती है.

मानव शरीर में दिल भी मांसपेशियों का बना होता है जिसका काम खून को पम्प करना होता है. सूक्ष्म गुरुत्व के महौल में दिल को खून को पम्प करने के लिए बहुत मेहनत नहीं करनी होती है. इस वजह से समय के साथ दिल की मांसपेशियों के आकार और ताकत कम हो जाती है जो धरती पर लौटने पर एक समस्या बन जाती है. इससे यात्रियों को यहां आने पर चक्कर आने लगते हैं औक गुरुत्व में ढलने में समय लगता है.

एक और समस्या अंतरिक्ष यात्रियों को जिसका सामना करना होता है वह हमारे संतुलन बनाने की क्षमता से है. गुरुत्व पर निर्भर इंसानी संवेदनशीलताओं का असर अंतरिक्ष में खत्म होने से अंतरिक्ष यात्रियों की संतुलन करने और स्थिति सुनिश्चित करने की दिमागी प्रक्रिया प्रभावित होती है. उन्हें मोशन सिकनेस महसूस होती है. वेअंतरिक्ष में गर्म शरीर, ठंडक और पसीना साथ आना, भूख का खत्म होना, थकान, उल्टी, सिरदर्द, आदि समस्याएं महसूस करते हैं. पृथ्वी पर लौटने पर दिमाग और बाकी अंग पुरानी अवस्था में लौटने की कोशिश करते हैं, इससे उन्हों सुंतुलन जैसी कुछ समस्याओं का सामना करना पड़ता है.