गांव से आया था पीईटी और पीएमटी में नहीं पता था फर्क, सिर पर सवार था डॉक्टर बनने का जुनून, फेल्यिर देखकर किसान माता-पिता होते थे निराश, भरोसा था बेटे की मेहनत लाएगी रंग

गांव से आया था पीईटी और पीएमटी में नहीं पता था फर्क, सिर पर सवार था डॉक्टर बनने का जुनून, फेल्यिर देखकर किसान माता-पिता होते थे निराश, भरोसा था बेटे की मेहनत लाएगी रंग


पढि़ए घोर नक्सल प्रभावित कोयलीबेड़ा में सेवा दे रहे डॉक्टर की कहानी, जिसने सीखा गरीबी में भी मुस्कुराकर पढऩा

भिलाईनगर 31 अगस्त । दुर्ग जिले के धमधा ब्लॉक के पिछड़े गांव खिलौराकला के रहने वाले डॉ. परमेश्वर साहू आज किसी पहचान के मोहताज नहीं है उनके गांव में यदि किसी डॉक्टर का जिक्र होता है तो पहला नाम डॉक्टर परमेश्वर आता है। लोग बड़े फक्र से अपने बच्चों को कहते हैं कि बेटा तू भी बड़ा होकर परमेश्वर की तरह डॉक्टर बनना। एक गरीब किसान के बेटे का डॉक्टर बनने का सफर सही मायने में बेहद अभाव और संघर्षों से भरा रहा। अपनी स्टूडेंट लाइफ का जिक्र करते हुए डॉ. परमेश्वर कहते हैं कि जब पहली बार मैं गांव से निकलकर भिलाई पढऩे आया तो पीएमटी और पीईटी एग्जाम के बीच का फर्क तक नहीं पता था। मन में एक दृढ़ संकल्प था कि डॉक्टर बनकर ही घर जाऊंगा। 

बचपन में दादा जी की तबीयत खराब थी। उन्हें समय में उपचार नहीं मिल पाया। उस दिन पता चला कि डॉक्टर की जिंदगी में क्या अहमियत होती है। इसलिए मन ही मन डॉक्टर बनने का सपना देखने लगा। 11 वीं में बायो लेकर पढ़ाई शुरू की। 12 वीं बोर्ड भी अच्छे नंबर से पास हुआ। साथ में पढऩे वाले दोस्तों से पता चला कि डॉक्टर बनने के लिए कोई परीक्षा देनी पड़ती है। इसलिए किसी तरह पता करके कोचिंग में पहुंच गया। यही से इस सफर की शुरूआत हुई। हिंदी मीडियम और ग्रामीण बैकग्राउंड के कारण पहले कोई भी विषय ठीक से समझ नहीं आता। धीरे-धीरे मेहनत करते गया पर सफलता जैसे रूठी हुई थी। एक के बाद एक तीन साल तक फेल्यिर का सामना करना पड़ा। इसी बीच वेटरनरी कॉलेज भी ज्वाइन किया लेकिन डॉक्टर बनने की उम्मीद नहीं छोड़ी थी। इसलिए चौथे साल एक कोशिश और की और साल 2014 में नीट क्वालिफाई करके बिलासपुर मेडिकल कॉलेज पहुंचा। जैसे गांव में पता चला कि मेरा एमबीबीएस में सलेक्शन हो गया पूरा गांव जश्न में डूब गया। माता-पिता ने गांव भर में मिठाइयां बांटी थी। क्योंकि पहली बार उस गांव का कोई बच्चा उच्च शिक्षा की दिशा में कदम बढ़ा रहा था। 

रिश्तेदारों से पैसे उधार लेकर पढऩे भेजा था माता–पिता ने

डॉ. परमेश्वर ने बताया कि किसान परिवार से ताल्लुक रखने के कारण उनकी आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी। माता-पिता ने किसी तरह रिश्तेदारों से पैसा उधार लेकर शहर पढऩे भेजा। मैं भी यहां दिन रात मेहनत करता लेकिन बार-बार असफलता से टूटने लगा था। ऐसे में मातापिता का संघर्ष यादकर खुद को फिर परीक्षा के लिए नए सिरे से तैयार करता। गरीबी में मुस्कुरा कर पढऩे की प्रेरणा मिलती थी। एक वक्त ऐसा भी आया जब बारबार असफलता देखकर परिवार भी निराश हो गया लेकिन मैंने मन में ठाना था कि डॉक्टर से कम कुछ भी मंजूर नहीं। इसलिए आखिरी दम तक कोशिश करता रहा। कोचिंग में बाकी बच्चों को मेहनत करता देख उनके साथ-साथ पढऩे की कोशिश करता था। 

सचदेवा के टीचर्स कहते थे तुम्हारा सलेक्शन जरूर होगा

डॉ. परमेश्वर ने बताया कि वे अपने दोस्तों के साथ सदचेवा पहुंचे थे। यहां की पढ़ाई की चर्चा उस वक्त पूरे छत्तीसगढ़ में थी। इसलिए मेडिकल एंट्रेस की तैयारी के लिए सचदेवा को चुना। यहां के टीचर्स इतने फ्रेंडली और हेल्पिंग नेचर है कि उन्होंने कभी परिवार की कमी महसूस नहीं होने दी। पढ़ाई के साथ-साथ हर सुख-दु:ख में साथ में खड़े रहे। खासकर सचदेवा के डायरेक्टर चिरंजीव जैन सर मेरी बार-बार काउंसलिंग करते थे। वे हमेशा कहते थे कि तुम कर सकते हो बेटा जी, तुम्हें हारने की जरूरत नहीं है। शुरूआत में सीजी पीएमटी की तैयारी कर रहा था। अचानक नीट आने के बाद मैं काफी निराश हो गया। सीजी से सीबीएसई बोर्ड की पढ़ाई काफी मुश्किल थी। ऐसे में सचदेवा के टीचर्स ने बेसिक से पढ़ाई करवाकर एग्जाम के पैटर्न को समझने में काफी मदद की। टेस्ट सीरिज से भी आत्म आंकलन का मौका मिला। टीचर्स के बताए छोटे नुस्खे बहुत काम आते थे।