🛑 गलत लोग अक्सर लोकेशन रखते हैं “आफ”
🛑 जानिए कैसे करती है पुलिस लोकेशन “ट्रेस”
सीजी न्यूज आनलाईन डेस्क, 19 दिसंबर। अपराधियों तक पहुंचने में मोबाईल लोकेशन ट्रेसिंग टेक्निक जहां पुलिस महकमे के लिए विभिन्न वारदातों में काफी अहम साबित हो रही है वहीं बड़े बड़े अपराधी ऐसे तरीके भी ढूंढने में लगे रहते हैं जिनसे उनकी लोकेशन पुलिस को पता न चले लेकिन उनकी तमाम कोशिश के बावजूद भी वो पकड़ में आ ही जाते हैं। अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर पुलिस कैसे अपराधियों की लोकेशन का पता लगा लेती है?
तो आइए आज हम आपको यही बताने जा रहे हैं कि पुलिस यह काम कैसे करती है। सबसे पहले पुलिस की साइबर टीम आरोपी के मोबाइल की लोकेशन निकालती है और इसी नेटवर्क के जरिये पुलिस की सर्च टीम कंटीन्यू लोकेशन फाॅलो करती हुई आरोपी तक पहुँचती है।
🟪 कोर्ट की परमिशन बाद ही लोकेशन और जानकारी होती है साझा
दरअसल साईबर टीम को यह लोकेशन टेलीकॉम कंपनियों से मिलती है। आप किस लोकेशन पर रहकर, किससे मोबाइल पर बात करते हैं, इसकी सारी जानकारी टेलीकॉम कंपनी के पास रहती है लेकिन वो ये जानकारी गुप्त रखती है।
पुलिस और सरकारी एजेंसी किसी नंबर की जानकारी मिलने के बाद उस नंबर के लिए टेलिकॉम कंपनी से संपर्क करती है। टेलीकॉम कंपनी पुलिस या एजेंसी को भी कोर्ट की परमिशन के बाद ही किसी नंबर की जानकारी प्रदान करती है।
🟪 मोबाईल टाॅवर आपके हर मोमेंट की पल पल देते हैं जानकारी
टेलीकॉम कंपनी के पास अपने यूजर्स की जानकारी मोबाइल टावर के जरिये पहुँचती है। मोबाइल पर जब भी कोई बात करता है तो वो नजदीकी मोबाइल टावर के सहारे ही कर पाता है। इससे कंपनी के पास वो लोकेशन उपलब्ध हो जाती है जहां वो टावर लगा हुआ है। टेलीकॉम कंपनियों के पास एक ऐसा सॉफ्टवेयर होता है जो उन्हें मोबाइल टावर की लोकेशन बता देता है। इसके बाद पुलिस ट्रैंगुलेशन मैथड का भी इस्तेमाल करती है जिससे मोबाइल की सटीक लोकेशन उसे लगातार मिलती रहती है। इस मैथड से पहले मैन टावर की जानकारी के बाद पुलिस उस दायरे में आने वाले 2 अन्य टावर की जानकारी इकट्ठा करती है। इसके बाद इस मेथड का प्रयोग कर पहले टावर से 2 किलोमीटर, दूसरे टावर से 3 किलोमीटर और तीसरे टावर से करीब ढाई किलोमीटर दूरी का हिसाब लगाकर सटीक लोकेशन तक पहुँचती है।
🟩 चोरी के मामलों में मोबाईल के आईएमईआई नंबर की अहम् भूमिका
गौरतलब हो कि हर मोबाइल का एक आईएमईआई नंबर होता है। पूरी दुनिया में ऐसा कोई मोबाइल नहीं हो सकता जिसका आईएमईआई नंबर न हो। आईएमईआई को इंटरनेशनल मोबाईल इक्वीपमेंट आइडैंटिटी कहा जाता है। चोर किसी का फोन चुराने के बाद उसका सिम फेंककर उसमें अपना सिम डाल देते हैं लेकिन जैसे ही चोरी हुए फोन में दूसरा सिम डाला जाता है उसकी जानकारी टेलिकॉम कंपनी के पास पहुँच जाती है। इसी का इंतज़ार पुलिस भी कर रही होती है क्योंकि इसके बाद आईएमईआई नंबर को ट्रैस कर पुलिस उस चोर तक पहुँच जाती है।
वैसे गूगल भी हर एंड्राईड फोन में लोकेशन सेवाएँ देता है जिसे ऑन रखने से आपकी लोकेशन की जानकारी गूगल तक जाती रहती है। इस पर रियल टाइम में लाइव लोकेशन की जानकारी मिल जाती है लेकिन गलत लोग अक्सर अपनी लोकेशन बंद रखते हैं जबकि लोकेशन आन रखने से जब आप किसी भी अनचाही वारदात और परेशानी में फँसते हैं मदद के लिए आप तक पहुंचना पुलिस महकमे के लिए आसान होता है।