Brother-Sister Marriage: यहां भाई ही कर लेता है बहन से शादी, पहले कलाई पर बंधवाता है राखी, फिर उसी को कर देता है प्रेग्नेंट!

Brother-Sister Marriage: यहां भाई ही कर लेता है बहन से शादी, पहले कलाई पर बंधवाता है राखी, फिर उसी को कर देता है प्रेग्नेंट!


छत्तीसगढ़ में एक ऐसी अनोखी जनजाति है, जिसमें भाई-बहनों की शादी करवाई जाती है. चचेरे-फुफेरे भाई-बहन शादी के बाद पति-पत्नी बन जाते हैं.

भारत में कई तरह की परम्पराएं हैं. लेकिन कुछ ऐसे रिवाज हैं, जो हर जगह एक से ही होते हैं. ये रिवाज या मान्यताएं ज्यादातर परिवार से जुड़ी होती हैं. भारत में लगभग हर धर्म में भाई-बहन का रिश्ता काफी पाक माना जाता है. भाई अपनी बहन को हर मुसीबत से बचाने के लिए कसमें खाता है. बहन भी अपने भाई की लंबी उम्र के लिए दुआएं करती है. लेकिन शायद ही आपने कभी ऐसा सुना होगा, जहां भाई-बहन शादी करते हैं.

लेकिन छत्तीसगढ़ में एक ऐसी जनजाति रहती है, जहां भाई और बहन की शादी का रिवाज है. जी हां, इस जनजाति के लोग आराम से भाई-बहनों की शादी करवा देते हैं. इस शादी को समाज से आशीर्वाद भी मिलता है. इसमें ज्यादातर चचेरे भाइयों से या फिर फुफेरे भाइयों से शादी करवाई जाती है. सबसे हैरानी की बात तो ये है कि अगर कोई शादी से इंकार करता है तो उसे सजा दी जाती है.

बेहद अजीब है ये प्रथा

आमतौर पर भाई-बहन की शादी को लोग गलत नजरिये से देखते हैं. एक ही आंगन में साथ पले-बढ़े भाई-बहन बचपन से एक दूसरे के साथ खेलकर बड़े होते हैं. लेकिन छत्तीसगढ़ के धुरवा आदिवासी आगे चलकर भाई-बहनों की ही शादी करवा देते हैं. अगर चाचा अपने बेटे की शादी का रिश्ता लेकर आए और उसे ठुकरा दिया जाता है, तब सामने वाले पर जुर्माना लगाया जाता है.

अब बदल रहे हैं हालात

अपने ही भाई-बहन में शादी के कई तरह के नुकसान भी देखने को मिलते हैं. जेनेटिक बीमारियां इस वजह से तेजी से बढ़ती है. साथ ही आने वाली पीढ़ियों पर भी इसका दुष्परिणाम देखने को मिलता है. इन सब ज्ञान के बाद अब इस जनजाति के युवा इस परंपरा से पीछे हट रहे हैं. कई लोग अपने पेरेंट्स से बगावत कर इस परंपरा को दरकिनार कर रहे हैं. बता दें कि धुरवा जनजाति छत्तीसगढ़ के सबसे बड़ी जनजातियों में से एक है. यहां शादी में अग्नि नहीं बल्कि पानी को साक्षी मानकर फेरे लिए जाते हैं.

कौन है धुरवा जनजाति के लोग?

धुरवा जनजाति आज के समय में छत्तीसगढ़ के अलावा ओडिशा के कुछ इलाकों में रहते हैं. इसकी बोली पारजी होती है लेकिन ते ओड़िया और छत्तीसगढ़ी भी बखूबी बोल लेते हैं. इसके अलावा अब इस जनजाति के युवा हिंदी भी अच्छे से बोलने लगे हैं. छत्तीसगढ़ के धुरवा जनजाति के लोगों को अक्सर गोंद जनजाति में शामिल कर लिया जाता है लेकिन ओडिशा में इन्हें अलग जनजाति का दर्जा दिया जाता है. बात परम्पराओं की करें तो धुरवा जनजाति में विवाह नृत्य का काफी महत्व है. इसमें वर-वधु दोनों की तरफ से नृत्य किया जाता है. विवाह नृत्य तेल-हल्दी चढ़ाने की रस्म से प्रारंभ कर पूरे विवाह में किया जाता है. इसमें पुरूष और स्त्रियां समूह में गोल घेरा बनाकर नृत्य करते हैं.