*रैंक आने के बाद भी नहीं मिला मेडिकल कॉलेज में सीट, लाइफ के इस टफ स्टेज में धैर्य से खुद को संभाला, 10 किमी. साइकिलिंग कर जाता था कोचिंग, इसलिए समझता हूं पैसों की अहमियत*

*रैंक आने के बाद भी नहीं मिला मेडिकल कॉलेज में सीट, लाइफ के इस टफ स्टेज में धैर्य से खुद को संभाला, 10 किमी. साइकिलिंग कर जाता था कोचिंग, इसलिए समझता हूं  पैसों की अहमियत*


रैंक आने के बाद भी नहीं मिला मेडिकल कॉलेज में सीट, लाइफ के इस टफ स्टेज में धैर्य से खुद को संभाला, 10 किमी. साइकिलिंग कर जाता था कोचिंग, इसलिए समझता हूं  पैसों की अहमियत

 

भिलाई नगर 10 फरवरी । दुर्ग जिले के उतई निवासी डॉ. चंद्रेश कुमार मिश्रा सरकारी स्कूल में एक एवरेंज स्टूडेंट थे। बड़े भाई को डॉक्टर बनता देख उनके मन भी एमबीबीएस करने की इच्छा जागी और यहां से शुरू हो गया उनके जीवन का संघर्ष। 12 वीं के बाद ड्रॉप लेकर जब डॉ. चंद्रेश ने तैयारी की तो रैंक तो बहुत अच्छा आया लेकिन दुर्भाग्यवश उन्हें उस साल मेडिकल कॉलेज की सीट नहीं मिल पाई। कड़ी मेहनत के बाद भी अपनी सफलता को यूं हाथ से फिसलता हुए देखना उनके जीवन का सबसे कठिन दौर था फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी और खुद को दूसरा मौका दिया। ये दूसरा मौका भी आसान नहीं था। पहले की अपेक्षा कॉम्पिटिशन दस गुना ज्यादा बढ़ गया था ऐसे में खुद को निराशा से दूर रखकर उन्होंने सिर्फ पढ़ाई पर फोकस किया और फाइनली सीजी पीएमटी क्वालीफाई करके रायपुर मेडिकल कॉलेज पहुंच गए एमबीबीएस करने। एमबीबीएस के बाद फिर उन्होंने फॉर्माकोलॉजी में पीजी की पढ़ाई की। अपने स्टूडेंट लाइफ के दिनों को याद करते हुए डॉ. चंद्रेश कहते हैं कि घर में यदि किसी बड़े ने एक मुकाम तय कर लिया तो उसके जैसे खुद का मुकाम बनाने के लिए बहुत मेहनत और धैर्य की जरूरत पड़ती है।

10 किमी. साइकिल चलाकर जाता था कोचिंग

डॉ. चंद्रेश ने बताया कि उनकी 12 वीं तक की स्कूलिंग उतई के सरकारी स्कूल में हुई। उस दौर में वहां के बच्चे मेडिकल एंट्रेंस की तैयारी के लिए भिलाई कोचिंग के लिए आते थे। सुविधाओं का अभाव था इसलिए दस किमी. साइकिल चलाकर रोजाना उतई से भिलाई कोचिंग के लिए आता था। उस समय दस किमी. साइकिल चलाकर भी थकान महसूस नहीं होती थी क्योंकि दिल, दिमाग में डॉक्टर बनने का जुनून हावी था। गांव के स्कूल से पढऩे के कारण शुरुआत में दिक्कत बहुत होती थी। बेसिक कमजोर था, चीजें समझ नहीं आती थी। कई बार लगता था कि पता नहीं मैं कर पाऊंगा या नहीं, लेकिन खुद को पापा के बचत के पैसों का हवाला देकर साहस देता था कि उनका पैसा वेस्ट नहीं होना चाहिए।

सचदेवा में जाकर पता चला कॉम्पिटिशन बेस तैयारी

मेडिकल एंट्रेंस की कोचिंग के लिए सचदेवा को चुनने वाले डॉ. चंद्रेश ने बताया कि स्कूल में पढ़ते हुए मेडिकल एंट्रेंस के बारे में थोड़ी बहुत जानकारी तो थी लेकिन कॉम्पिटिशन बेस तैयारी कैसे करनी है यह सचदेवा में जाकर पता चला। यहां के टीचर्स के मार्गदर्शन और मोटिवेशन के कारण मैं खुद को दूसरा मौका दे पाया। जब रैंक आने के बाद भी मेडिकल कॉलेज नहीं मिल पाया तो मैं बुरी तरह से टूट गया था ऐसे समय में सचदेवा के डायरेक्टर चिरंजीव जैन सर ने मेरी पर्सनल काउंसलिंग की उन्होंने कहा कि मेहनत करना हमारे हाथ में है इसलिए एक चांस और लो। उनकी बातें सुनकर दूसरे ड्राप के लिए खुद को तैयार कर पाया। यहां का हेल्दी माहौल हमेशा एक सकारात्मक दिशा में आगे बढऩे की प्रेरणा देता है।

बेसिक कभी नहीं बदलता इसलिए शुरुआत से पढ़ें

नीट की तैयारी करने वाले स्टूडेंट्स से कहना चाहूंगा कि बेसिक कभी नहीं बदलता बस थ्योरी में थोड़ा बहुत चेंजेस होता है। इसलिए शुरुआत हमेशा बेसिक से करनी चाहिए। इंटरनेट में बहुत सारी अच्छी और बुरी जानकारी उपलब्ध है। इसलिए आपको खुद तय करना है कि आपको किस दिशा में आगे बढऩा है। पढ़ाई के लिए खुद का पोटेंशियल डेवलेप करें। हमेशा खुद को चैलेंज दे और उसे पूरा करना के लिए खूब सारी मेहनत करें।