मन में दृढ़ विश्वास और कुछ कर गुजरने का जुनून हो तो सफल होने से दुनिया की कोई ताकत नहीं रोक सकती, बस खुद पर हो भरोसा पढ़ें गवेल के सफलता की कहानी

मन में दृढ़ विश्वास और कुछ कर गुजरने का जुनून हो तो सफल होने से दुनिया की कोई ताकत नहीं रोक सकती, बस खुद पर हो भरोसा पढ़ें गवेल के सफलता की कहानी


मन में दृढ़ विश्वास और कुछ कर गुजरने का जुनून हो तो सफल होने से दुनिया की कोई ताकत नहीं रोक सकती, बस खुद पर हो भरोसा पढ़ें गवेल के सफलता की कहानी

भिलाई. शहर के बच्चों के साथ पढऩे में काफी झिझक होती थी। ग्रामीण परिवेश और गांव के स्कूल से पढ़ाई के कारण बेसिक कान्सेप्ट भी क्लीयर नहीं था। शहरी बच्चों की नॉलेज देखकर सोचता था कि क्या मैं कभी इनकी बराबरी कर पाऊंगा। इसी सोच के कारण हर दिन घंटों बैठकर किताबों की खाक छानता था। किसान पिता रेगहा की जमीन पर खेती करते हैं, उन्होंने किसी तरह कर्ज लेकर पढऩे के लिए शहर भेजा था। ऐसे में एमबीबीएस की सीट हासिल करना ही एक मात्र मकसद था। पहले साल जानकारी के अभाव और माइनस मार्किंग के कारण सलेक्शन नहीं हुआ। कॉन्फिडेंस जरूर आ गया कि अगर ड्रॉप लेकर तैयारी करूंगा तो मेडिकल एंट्रेस क्वालिफाई कर लूंगा। लगातार दो ड्रॉप और कड़ी मेहनत के बाद आखिरकार साल 2014 में ऑल इंडिया पीएमटी में सलेक्शन हो गया। जब पहली बार रायगढ़ मेडिकल कॉलेज पहुंचा तो पूरी रात नींद नहीं आई थी। ये कहानी है रायगढ़ जिले के जंगलों के बीच स्थित परसकोल ग्राम निवासी डॉ. परमानंद गवेल की, जिन्होंने अभाव में जीवन काटते हुए अपने और माता-पिता के सपने को चिकित्सक बनकर साकार किया। डॉ. गवेल कहते हैं कि अगर मन में दृढ़ विश्वास और कुछ कर गुजरने का जुनून हो तो आपको सफल होने से दुनिया की कोई ताकत नहीं रोक सकती। इसलिए दुनिया की परवाह करना छोड़कर सिर्फ खुद पर भरोसा रखो। 

मां चाहती थी मैं डॉक्टर बनूं इसलिए बेच दिए गहने

डॉ. गवेल ने बताया कि उनकी मां गृहिणी है। वह बचपन से चाहती थी कि बेटा डॉक्टर बने। जब कोचिंग के लिए शहर जाने की बारी आई तो पैसों की तंगी देखकर मां ने अपने गहने बेच दिए। वो कहती है कि आर्थिक तंगी से मेरे बेटे का सपना नहीं टूट सकता। मां का ही दृढ़ विश्वास था कि मैं डिप्रेशन के दौर में भी टूट नहीं पाया। लगातार आठ से नौ घंटे पढ़ाई करके खुद को अपना लक्ष्य याद दिलाता था। 12 वीं  तक तो ये भी नहीं पता था कि मेडिकल एंट्रेस जैसी कोई चीज होती है। स्कूल के प्राचार्य ने मेरा फार्म भरकर एग्जाम देने के लिए भेजा था। एग्जाम सेंटर के बाहर सचदेवा का बैनर देखकर पता चला कि इसके लिए कोचिंग भी होती है। जिसके बाद घर आकर पैरेंट्स से बातचीत की और पढऩे के लिए भिलाई आ गया। 

माइनस मार्किंग ने खासा किया परेशान

मेडिकल एंट्रेस की तैयारी के लिए सचदेवा न्यू पीटी कॉलेज को चुनने वाले डॉ. गवेल ने बताया कि उन्हें शुरुआत से ही माइनस मार्किंग ने खासा परेशान किया। बेसिक लेवल की पढ़ाई और कॉन्सेप्ट क्लीयर नहीं होने के कारण मैं हर प्रश्न का अंदाजे से जबाव टिक कर देता था। सचदेवा में पहुंचकर यहां के टीचर्स ने बताया कि सिर्फ उन्हीं प्रश्नों के जवाब देना है जिसका उत्तर आपको पता है। नहीं तो माइनस मार्किंग के कारण रैंक और भी पीछे चला जाएगा। सचदेवा की टेस्ट सीरिज में हजारों बच्चों के साथ एग्जाम देने से एग्जाम फीवर भी कम हो गया था। जब कभी डिप्रेशन में जाता तो सचदेवा के डायरेक्टर चिरंजीव जैन सर की मोटिवेशन बातें याद करता था। कई बार उनकी काउंसलिंग क्लास भी अटेंड की थी जिससे मैंटल हेल्थ को दुरूस्त रखने में काफी मदद मिली। फाइनेंशियल कंडीशन खराब होने के बावजूद सचदेवा में फीस को लेकर भी छूट मिली। 

रेगुलर पढ़ाई करें यही है सक्सेस मंत्र

नीट की तैयारी करने वाले स्टूडेंट्स से कहना चाहता हूं कि आप अपनी पढ़ाई रेगुलर करें। कल पर किसी भी चीज को न टालें। कई बार हम ये सोच लेते हैं कि आज रहने दो कल दो घंटे ज्यादा पढ़ाई कर लूंगा ऐसे में हम बाकी लोगों से पीछे हो जाते हैं। इसलिए आज की पढ़ाई को कल पर कभी न टालें। डाउट पूछने में कभी भी झिझके नहीं क्योंकि सवाल आपके जीवन भर के सपने का है। अपने माता-पिता की अपेक्षाओं का सम्मान करें।