नर्स मां के शरारती बेटे ने कड़ी मेहनत से हासिल किया सफलता का मुकाम
भिलाईनगर 11 जुलाई । मेडिकल एंट्रेस की तैयारी के दौरान पूरा कोचिंग एक वक्त पर कल्याण की शरारतों से तंग रहता था। पढ़ाई में होनहार होने बाद भी सीरियसनेस की कमी कोचिंग के डायरेक्टर को खलने लगी। एक दिन उन्होंने कल्याण को बुलाकर कहा कि अपनी हाइपर एनर्जी का सही इस्तेमाल करो। इसे वेस्ट मत करो। अगर ये एनर्जी पढ़ाई में लगाओगे तो तुम्हें एमबीबीएस की सीट हासिल करने से कोई नहीं रोक सकता। उस एक घंटे की काउंसलिंग ने कल्याण के मन में इतनी गहरी छाप छोड़ी कि अपने दूसरे अटेम्ट में कल्याण ने सीजी पीएमटी 107 रैंक से क्वालिफाई कर लिया। बिलासपुर मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस के बाद सीजी पीएसएसी में सलेक्ट होकर आज दल्लीराजहरा के सरकारी अस्पताल में मेडिकल ऑफिसर के पद पर अपनी सेवा दे रहे हैं। ये रियल लाइफ की रियल कहानी है दल्लीराजहरा के रहने वाले डॉ. कल्याण कुमार सिंगा की। अपनी स्टूडेंट लाइफ को याद करते हुए डॉक्टर कल्याण कहते हैं कि जीवन में सही मार्गदर्शन मिलना बहुत जरूरी है। अगर सही समय पर चिरंजीव जैन सर ने मेरी काउंसलिंग नहीं की होती तो शायद मुझे एक साल और भी ड्रॉप लेना पड़ जाता।
नर्स मां ने देखा बचपन से बेटे के डॉक्टर बनने का सपना
डॉ. कल्याण ने बताया कि उनकी मां पेशे से नर्स है। वो बचपन से सपना देखती थी कि मेरा बेटा बहुत बड़ा डॉक्टर बने। चूंकि घर में मेडिकल फील्ड की बातें होती थी इसलिए मेरी भी दिलचस्पी इस पर आ गई। दसवीं के बाद बायो लेकर पढऩा शुरू किया। अच्छे नंबरों के कारण हायर सेकंडरी स्कूल की पढ़ाई के लिए भिलाई में एडमिशन मिल गया। शुरूआत में 12 वीं बोर्ड के बाद मैंने क्रैश कोर्स करके पीएमटी दिया था। उस वक्त लगा कि अगर थोड़ा मेहनत करूं तो सलेक्शन हो सकता है। इसलिए एक साल ड्रॉप लेकर कोचिंग में एडमिशन ले लिया। उम्र का पड़ाव और शरीरिक बदलाव के कारण दोस्तों के साथ मस्ती ज्यादा होने लगी। कुछ समय बाद अपने लक्ष्य पर पुन: ध्यान केंद्रित किया और सफलता मिल गई।
मां को जब कैंसर हुआ तब लगा मेरा डॉक्टर होना कितना जरूरी था
एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी करने के बाद मैंने जॉब करना शुरू कर दिया। इसी बीच मां के कैंसर पीडि़त होने का पता चला। उस वक्त कैंसर का इलाज भिलाई के बीएसपी सेक्टर 1 अस्पताल में होता था। मैं मां को लेकर जब अस्पताल आता था तो डॉक्टर कई तरह की दवाइयों और मां की स्थिति के बारे में बताते थे। मैं खुद पेशे से डॉक्टर हूं इसलिए इन बातों को आसानी से समझकर मां का बेहतर ढंग से ख्याल रख पाया। वहीं दूसरे पेशेंट के परिजनों को डॉक्टर की बातें और बीमारी के स्टेज से जुड़ी जानकारी ज्यादा समझ नहीं आती थी। तब एहसास हुआ कि मेरा डॉक्टर बनना कितना जरूरी था।
जैन सर की काउंसलिंग ने बदल दी जिंदगी
सीजी पीएमटी की तैयारी के लिए जब एक साल का ड्रॉप लिया तब सारे दोस्तों ने सचदेवा कॉलेज भिलाई में एडमिशन लिया। मैं भी दोस्तों के साथ कोचिंग करने पहुंच गया। कोचिंग में रोज-रोज की शरारतों से तंग आने के बजाय चिरंजीव जैन सर ने न सिर्फ मुझे समझाया बल्कि एहसास भी कराया कि मैं क्यों भिलाई आया हूं। उनकी काउंसलिंग ने मेरी जिंदगी बदल दी। फिजिक्स और केमेस्ट्री में थोड़ा कमजोर था तो यहां के टीचर्स ने हर डाउट क्लीयर करते हुए मुझे आगे बढऩे के लिए प्रेरित किया। साल 2002 में न मोबाइल फोन थे और न ही इंटरनेट की सुविधा तब अगर सबसे ज्यादा काम आई तो टीचर्स की नोट्स। इस साल जो बच्चे नीट की तैयारी कर रहे उनसे यही कहूंगा कि सफलता हासिल करने के लिए आपको पढऩे के समय में इजाफा करना होगा। अगर आप सोचते हैं कि कम समय में पढ़कर सलेक्शन हो जाएगा तो ये गलत है। जितना ज्यादा खुद की पढ़ाई को समय देंगे उतनी बढिय़ा आपकी तैयारी होगी।