डॉक्टर बनने का सपना लेकर बस में साइकिल और दो बैग लेकर गांव से आया शहर, एक साल में मेडिकल एंट्रेस क्वालिफाई करने सेट किया टारगेट
भिलाई नगर 13 अक्टूबर । महासमुंद जिले के छोटे से गांव दूधहीपाली के डॉक्टर दयानंद होता बचपन से डॉक्टर बनने चाहते थे। हेल्थ डिपार्टमेंट में कार्यरत पिता के साथ जब वे हॉस्पिटल जाते तो अक्सर डॉक्टरों से टकराते। इस दौरान मरीजों का इलाज कर रहे डॉक्टरों को देखकर वे मन ही मन उनके जैसे बनने का सपना सजाने लगे। जब 11 वीं में विषय चयन की बारी आई तो उन्होंने बायो लिया। साथ ही साथ मेडिकल एंट्रेस क्वालिफाई करने के लिए खुद को तैयार करने लगे। 12 वीं बोर्ड के बाद जब पहली बार एग्जाम दिया तब समझ में आया कि तैयारी में अभी बहुत कमी है। इसलिए किसी तरह गांव से दो बैग और बस में साइकिल लेकर भिलाई आ गए। उस वक्त परिवार की आर्थिक स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं थी। ऐसे में दयानंद ने तय किया जो भी करना है इस एक साल में ही करना है। हिंदी मीडियम और गांव के स्कूल से पढऩे के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और कड़ी मेहनत करते रहे। एक साल के ड्रॉप के बाद ऑल इंडिया और सीजी पीएमटी दोनों क्वालिफाई कर लिया। साल 2007 में जगदलपुर मेडिकल कॉलेज में एडमिशन लेकर एमबीबीएस की पढ़ाई की। डॉ. होता कहते हैं कि हर स्टूडेंट को अपनी गलती से सीख लेनी चाहिए। खुद से इन गलतियों को दोबारा न दोहराने का वादा भी करना चाहिए।
नहीं आता था कुछ भी समझ, सोचता था कहीं पीछे न रह जाऊं
शिशु रोग विशेषज्ञ और एम्स रायपुर में सीनियर रेसीडेंट के पद पर काम कर रहे डॉक्टर होता ने बताया कि जब वे पहली बार शहर आए तो उन्हें कुछ भी समझ नहीं आता था। कोचिंग में इंग्लिश मीडियम स्टूडेंट के साथ बैठने में भी डर लगता था। मैं सोचता था कि कहीं इनसे पीछे तो नहीं रह जाऊंगा। धीरे-धीरे माहौल में ढलने की कोशिश की। एक ही टॉपिक को दस-दस बार पढ़ता था ताकि एग्जाम में सबकुछ साल्व कर सकूं। घर के हालात को देखकर पहले ही पता था कि दूसरा चांस नहीं मिलेगा इसलिए इस मौके को गंवाना नहीं चाहता था। शुरूआत में बायो काफी टफ लगता था, क्योंकि बायो में रटने का पार्ट ज्यादा था। कैमेस्ट्री-फिजिक्स को इजी ट्रिक्स के साथ पढऩे में मजा आने लगा। कभी-कभी मन निराश भी होता था कि पता नहीं सलेक्ट हो पाऊंगा भी कि नहीं पर दूसरे ही पल पढऩे बैठ जाता। घर से पहली बार बाहर निकलने के कारण मेस का खाना सूट नहीं करता था जिसके कारण कई बार बीमार भी हुआ।
सचदेवा में फीस माफ होने से पढऩे का उत्साह हुआ दोगुना
डॉ. होता ने बताया कि सचदेवा में आने से पहले उन्होंने सुना था कि 12 वीं बोर्ड में अच्छे रिजल्ट वाले बच्चों की आधी फीस माफ कर दी जाती थी। इसी उम्मीद में अपने चचेरे भाई और दोस्तों के साथ भिलाई पहुंच गया। सचदेवा के बारे में जो सुना था वो यहां आकर वाकई सच निकला। फीस में छूट मिलने से मेरा उत्साह दोगुना बढ़ गया। सचदेवा के टीचर्स और यहां के पॉजिटिव माहौल में अपने सपने को पूरा होता हुआ देखने लगा। टेस्ट सीरिज में जब टॉपर का नाम स्टेज से लिया जाता था तब मैं भी खुद को उन्हीं टॉपर्स के साथ खड़ा हुआ पाता था। सदचेवा के डायरेक्टर चिरंजीव जैन सर ने न सिर्फ पढ़ाई बल्कि आर्थिक रूप से भी काफी मदद की। उनकी बदौलत ही मैं एक साथ दो एग्जाम क्वालिफाई कर पाया।
कितना भी बुरा हो जाए नेगेटिव बातों से बनाएं दूरी
नीट की तैयारी कर रहे स्टूडेंट्स ये कहना चाहता हूं कि लाइफ में कितना भी बुरा क्यों न हो जाए आपको नेगेटिव बातों से दूरी बनाकर ही रखना है। अपने आप पर भरोसा करना सीखे। हर स्टूडेंट को अपनी सफलता पर शक होता है, बार-बार मन भटकता है कि पता नहीं सलेक्शन होगा कि नहीं। ऐसे समय में शांत रहकर अपनी तैयारी को और भी ज्यादा पुख्ता करते रहें। सफलता आपकी सोच से कहीं ज्यादा बेहतर होगी। हर पढ़े हुए चीज का रिविजन जरूर करें ।